है संघर्ष यह जीवन
कब गुज़रा बचपन
याद नही
आया होश जब से
तब से
हूँ भाग रहा
संजों रहा खुशियाँ
सब के लिए
थे अपने कुछ थे पराये
उम्र के इस पड़ाव में
आज निस्तेज
बिस्तर पर पड़ा
हूँ समझ रहा
अपनों को और परायों को
था कल भी
हूँ आज भी
संघर्षरत
तन्हा सिर्फ तन्हा
रेखा जोशी
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