Thursday, 29 June 2017

चामर छंद गीतिका

छन्द- चामर
मापनी - 21 21 21 21 21 21 21 2 

मीत आज ज़िन्दगी हमें  रही पुकार है
रूप देख ज़िन्दगी खिली यहाँ बहार है
,
पास पास  हम रहें मिले ख़ुशी हमें सदा
छा रहा गज़ब यहाँ खुमार ही खुमार है

छोड़ना न हाथ साथ साथ हम चले सदा
प्रीत रीत जान ज़िन्दगी यहाँ हमार है
,
मिल गया जहाँ हमें मिले हमें सजन यहाँ
पा लिया पिया यहाँ करार ही करार है
,
दूर हम वहाँ चलें  मिले  जहाँ धरा गगन
प्यार से पुकार लो  मिला हमे सँसार है

रेखा जोशी

गीतिका

आधार छंद - सिन्धु 
मापनी - 1222 1222 1222 
गीतिका
समांत - आती, पदांत - है ।

सजन तेरी हमे जब याद आती है 
ख़ुशी रह रह पिया तब गीत गाती है 
.... 
मचल जाते यहाँ अरमान दिल में जब 
सुहानी रात भी तब गुनगुनाती है 
....
चले आओ पुकारें आज दिल मेरा 
चँदा की चाँदनी भी  अब बुलाती है 
.... 
पुकारे ज़िंदगी जी लो यहाँ हर पल 
सजन अब  ज़िंदगी भी मुस्कुराती है 
.... 
खिले है फूल पल दो पल चमन में अब 
बहारें आज साजन खिलखिलाती है 

रेखा जोशी 

गीत

गीत
झूला झूले श्याम देखो राधा के संग
है आया सावन कान्हा भीगे अंग अंग
……
आसमान में बदरा छाये जिया धड़काये
उड़ती जाये चुनरिया मन में प्रीत जगाये
बंसी मधुर बजाये कान्हा गोपियों के संग
झूला झूले श्याम देखो राधा के संग
है आया सावन कान्हा भीगे अंग अंग
……
रिम झिम बरसता पानी ठंडी पड़े फुहारें
रास रचायें कान्हा गोपियाँ उसे पुकारे
छनाछन बाजे पायल चूड़ी खनके खनखन
झूला झूले श्याम देखो राधा के संग
है आया सावन कान्हा भीगे अंग अंग
रेखा जोशी

Monday, 26 June 2017

टूट जो मोती गये उनको पिरो सकता नही

बहर- रमल मुसम्मन महज़ूफ़
अर्कान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
वज़्न-  2122. 2122. 2122. 212. 

काफ़िया का स्वर- ओ
रदीफ़- सकता नहीं

टूट जो मोती गये उनको पिरो सकता नही
ज़ख्म ऐसे अब मिले आंखे भिगो सकता नही
,
रात दिन हम याद करते है सदा  तुमको पिया
दर्द पाया इस कदर अब रात सो सकता नही
,
तुम हमारे प्यार को समझें नहीअब क्या करें
प्यार का देखा कभी जो ख्वाब खो सकता नही
,
बेवफा से प्यार हमने ज़िन्दगी  में क्यों किया
आँख में आँसू हमारे और रो सकता नही
,
रुक जाओ दूर हमसे तुम नही जाना सजन
ज़िन्दगी में प्यार हमसे दूर हो सकता नही

रेखा जोशी

Friday, 23 June 2017

बेवफाई तो उनकी भूल चुके थे ज़िन्दगी में

आसमान  में आज फिर काली घटा घिर आई है
जाने  क्यों आज  तेरी  याद दिल में फिर आई है
बेवफ़ाई तो   उनकी  भूल चुके  थे   ज़िन्दगी  में
मुद्द्त बाद  आज  हमारी  आँख क्यों भर आई है

रेखा जोशी

है गांव में रहते जो बन्धु भाई

गांव में रहते  जो बन्धु भाई है
देते हम उन को आज बधाई है
रूप बदल रहे है वोह भारत का
सुन्दर तस्वीर गांव की बनाई है

रेखा जोशी

यही तो है ज़िन्दगी

ज़िन्दगी
यही तो है ज़िन्दगी
कहीं धूप,छांव है कहीं
बहती धारा वक्त की
सुख दुख किनारों के बीच
जश्न मानते कहीं
कोई ढोते
गम का बोझ कहीं

ज़िन्दगी
यही तो है ज़िन्दगी
आज ख़ुशी का आलम
तो
कल मातम कहीं
फिर भी
थमती ज़िन्दगी नहीं
दामन में इसके
कोई हँस  रहा है
कोई रो रहा है
सफर ज़िन्दगी का
यूँही
चलता जा रहा है
चलता जा रहा है

रेखा जोशी

बीता ज़माना बचपन का


मुस्कुरा
उठे है फूल
मन उपवन में मेरे
याद
आते ही वोह
बीता ज़माना
बचपन का

टेढ़ी मेढ़ी
गाँव की पगडंडियाँ
लहलहाते हरे भरे
खेत
सोंधी सोंधी
माटी की महक
खिलखिलाती फसल संग
वोह
खिलखिलाता ज़माना
बचपन का

भरी दोपहरी में
घर के आंगन में
मिल कर नित
खेल नये नये खेलना
गिल्ली डंडा
चोर सिपाही
गोल गोल घूमते
लट्टू से
मचलता मन
याद आता है बहुत
वोह
मचलता  ज़माना
बचपन का

बरसाती पानी की
लहरों में
वोह
कागज़ की नाव का
लहलहराना
हिलोरे देता
मन उपवन को मेरे
याद आता है बहुत
वोह
बीता ज़माना
बचपन का

रेखा जोशी

Wednesday, 21 June 2017


है  होती  सास    बहू में   तकरार
फिर भी करती वह आपस मे प्यार
एक का बेटा तो दूसरी का पति
जुड़े जिससे उनके दिलों के तार

रेखा जोशी

Saturday, 17 June 2017

सभी वो तोड़ बन्धन अब उड़े हैं आसमानों में
परिंदे कब रहा करते हैं हर दम आशियानों में
...
न रोको तुम न बांधों आज ज़ंजीरें यहाँ पर तुम
रहेंगे कब तलक छुप कर परिंदे इन मकानों में
....
कहीं तुम दूर उड़ जाना बसा लेना नया घर फिर
न रोकेंगे चले जाना नयें अपने ठिकानों में
....
न भरना आँख में आँसू न मुड़ कर देखना हम को
चले जाना यहाँ से दूर खोये तुम उड़ानों में
....
सदा तेरे लिये हमने खुदा से प्यार ही माँगा
करेंगे याद हम तुमको सदा अपने फसानों में

रेखा जोशी

Friday, 16 June 2017

नाम ले कर पिया करते जाप


नाम ले कर पिया करते जाप
नही मिले फिर भी साजनआप
जब से गये तुम छोड़ कर हमें
जीवन हमारा बना अभिशाप

रेखा जोशी

Tuesday, 13 June 2017

दो मुक्तक

स्तुति

गौरीपुत्र  हे   विघ्नेश्वर   करें   तेरा ध्यान
विघ्नहर्ता   विघ्न   हरो   हम  तेरी सन्तान
स्तुति   वन्दन  कर शीश झुकाते   अपना
बुद्धि में आन विराजो मिले विद्या का ज्ञान
,
निन्दा

बुद्धि बल दिया सभी कुछ भगवान
न करना तुम   किसी  का अपमान
निन्दा किसी की कभी   न कीजिये
है  ईश्वर   की  हम  सभी   सन्तान

रेखा जोशी

Monday, 12 June 2017

झूमता सावन

चलती  ठंडी हवायें झूमता सावन आया
नभ गरजे  बदरा  बिजुरी लहराये
अब छाई हरियाली  मौसम है मन भाया
नाचे मोर आंगन में जियरा हर्षाये
झूला झूलती सखियाँ  गाती कोयलिया गीत
पिया गये परदेस  लागे नाहि जियरा
बरसा पानी नभ से पपीहा गुनगुनाया
आये याद प्रियतम है गोरी शर्माये

रेखा जोशी

रखें देश का मान है प्यारे


रखें देश का मान है प्यारे
दे कर अपनी जान है प्यारे

गोला बारूद आग है सब
मौत का सामान है प्यारे
,
है साया आतंक का छाया
दहशत में अब जान है प्यारे
,
घुस आये आतंकी शहर में
सड़कें अब सुनसान है प्यारे
,
देश की खातिर अब मर मिटना
होना अब कुर्बान है प्यारे

रेखा जोशी

Sunday, 11 June 2017

चमकते नयन तुम्हारे

कुछ खोजते देखते
जिज्ञासा से भरे
ढूंढ रहे कुछ
चमकते नयन तुम्हारे
,
अनगिनत ख्वाब
नैनों में सँजोये
पूरा होना चाह रहे
प्रफुल्लित उत्साहित
कुछ नवसृजन
करने को आतुर
चमकते नयन तुम्हारे
,
लड़कपन की चाह
कुछ कर गुजरने की
तमन्ना 
झलकती नैनों से
तुम्हारे
मन में है विश्वास
पूरे होंगे सपने
जो देख रहे
खुली आँखों से
चमकते नयन तुम्हारे

रेखा जोशी

बहाया क्यों खून गोली से यहाँ


न जाने तेरा है कौन सा ख्वाब
चाहिए बस चंद नोट और शराब
बहाया क्यों खून गोली से यहाँ
देना होगा तुम्हे इसका  जवाब

रेखा जोशी

Saturday, 10 June 2017

ग़ज़ल

212. 212. 212. 212

टूट कर दिल हमारा पिया रह गया
ज़िन्दगी का सजन फलसफा रह गया
,
रात भर देखते हम रहे ख्वाब ही
कब हुई सुबह बस देखता रह  गया
,
उम्र गुज़ारी सजन दर्द दिल मे लिए
अब यहाँ दर्द का सिलसिला रह गया
,
यूँ सताओ न तुम ज़िन्दगी अब हमें
तीर दिल मे हमारे चुभा रह गया
,
काश मिलती हमें ज़िंदगी में  खुशी
ज़िन्दगी से यही  इक गिला रह गया

रेखा जोशी

Friday, 9 June 2017

धरतीपुत्र


धरा  से    सोना उगाता
है   धरतीपुत्र   कहलाता
भर कर सबका पेट कृषक
वह खुद भूखा सो जाता

रेखा जोशी

नदी नाले रहें है सूख सूखा है यहाँ हर वन

1222  1222  1222. 1222

नदी नाले रहे है सूख सूखा है यहाँ हर वन
सरोवर  ताल सूखे तड़पता है अब यहाँ जन जन
धरा सूखी यहाँ पौधे रहे है सूख बिन पानी
हमें है  आस घिर घिर आज  बरसेगा यहाँ सावन

रेखा जोशी

Thursday, 8 June 2017

जब रात में सिमट जाता उजाला सजन

जब  रात में सिमट जाता उजाला सजन
सुबह लाती फिर खुशियों की माला सजन
,
देख   तेरे   नैन  हम  देखते  रह गये
भूल गये फिर सदा  मधुशाला  सजन
,
हर कर्म हम करेंगे साजन साथ साथ
रंग में अपने हमें  रंग डाला सजन
,
सुन्दर सलोना  बनायेंगे घर अपना
संग संग खायेंगे फिर निवाला सजन
,
साथी हाथ बढ़ा कर देना साथ सदा
संग जो तुम हो बना घर शिवाला सजन

रेखा जोशी

प्यार में हमको सजन बहकाने लगे

प्यार में  हमको  सजन  बहकाने लगे
जख्म हम को मिले वोह छिपाने लगे
,
जो  देता  हमे सहारा   मुश्किलों   में
उस सफीने को फिर क्यूँ  डुबाने लगे
,
उनके आने की खबर  सुनते ही हम
फूल राह में सजन  हम बिछाने लगे
,
जीने की तमन्ना नही बिन तेरे पिया
मौत का सामान हम  अब सजाने लगे
,
भूल जायें तुम्हे दम नही है इतना
पर याद तेरी दिल से मिटाने लगे
,
रेखा जोशी

Wednesday, 7 June 2017

है   प्रेम में  श्याम  के  डूबी   राधिका
मुरली की तान सुन झूम उठी राधिका
कान्हा  समाया  राधा  के   अंग अंग
रंग  के कृष्णा  के रंग   गई  राधिका

रेखा जोशी 

Tuesday, 6 June 2017

बेवफा सजन से प्यार क्या करना


बेवफा  सजन से प्यार क्या करना
दर्द ए  गम का इकरार क्या करना
है  रूठी   हमसे   तकदीर  अपनी
टूटे  दिल  का इज़हार क्या करना

रेखा जोशी

है मीत बहुत मिले हमे इस अजीब ओ गरीब दुनिया में

है  मीत बहुत मिले हमें  इस अजीब ओ गरीब दुनिया में
मिला  न हमे   ऐसा  कोई  बने  मेरा  नसीब   दुनिया मे
आज से ,अब से,अभी अभी से,मुझे  तुम्हारा प्यार कबूल
तेरे  सिवा कोई  भी न आया दिल  के करीब  दुनिया में

रेखा जोशी

Saturday, 3 June 2017

वक्त  की धारा  में सदा  बहता जीवन
कहीं दुख के सागर  में  डूबता जीवन
आओ जियें हर ऋतू हर मौसम हम यहाँ
कहीं गागर ख़ुशी से यह भरता जीवन
,
है  शतरंज  की  बिसात  पर  टिकी यह ज़िन्दगी
सोच समझ चलना घात पर टिकी  यह  ज़िन्दगी
न   जाने  कब  चल  दे   कोई    टेढ़ी  चाल  यहां
हमारी शह और  मात पर   टिकी  यह  ज़िन्दगी

रेखा जोशी

Friday, 2 June 2017

न करना कभी अभिमान से तुम प्यार
अपने जीवन  को तुम  लो अब सँवार
तर   जायेगा   इस   जग  से  तू  बन्दे
काम  क्रोध  मद  लोभ का कर संहार

रेखा जोशी

तुमसे  मिले  प्रियतम  हमे जमाना हो गया
प्यार हमारा अब सजन अफसाना हो गया
क्यों अकेले  गये   छोड़   हमें परदेश पिया
रोका  दिल को  कमबख्त दीवाना हो गया

रेखा जोशी

Thursday, 1 June 2017

सुहाना मौसम औऱ नदी का किनारा

सुहाना   मौसम और नदी का किनारा
बहारों   ने   पिया   नाम   तेरा पुकारा
आंखों से हमारी प्यार पढ़ लो  साजन
शायद मिले न फिर यह मौका दोबारा

रेखा जोशी

कैसे जियेंगे मिलकर जहाँ में हंसते हुए

कैसे  जियेंगे  मिलकर जहाँ  में हँसते हुए
टूट जायेंगे  हम  ज़िन्दगी  यह  सहते हुए
बीत जायेगी यह ज़िन्दगी हमारी इक दिन
कभी  दुआ तो कभी बद्दुआ से लड़ते हुए

रेखा जोशी

मुक्तक

है  शतरंज  की  बिसात  पर  टिकी यह ज़िन्दगी
सोच समझ चलना घात पर टिकी  यह  ज़िन्दगी
न   जाने  कब  चल  दे   कोई    टेढ़ी  चाल  यहां
हमारी शह और  मात पर   टिकी  यह  ज़िन्दगी

रेखा जोशी