मुस्कुरा
उठे है फूल
मन उपवन में मेरे
याद
आते ही वोह
बीता ज़माना
बचपन का
टेढ़ी मेढ़ी
गाँव की पगडंडियाँ
लहलहाते हरे भरे
खेत
सोंधी सोंधी
माटी की महक
खिलखिलाती फसल संग
वोह
खिलखिलाता ज़माना
बचपन का
भरी दोपहरी में
घर के आंगन में
मिल कर नित
खेल नये नये खेलना
गिल्ली डंडा
चोर सिपाही
गोल गोल घूमते
लट्टू से
मचलता मन
याद आता है बहुत
वोह
मचलता ज़माना
बचपन का
बरसाती पानी की
लहरों में
वोह
कागज़ की नाव का
लहलहराना
हिलोरे देता
मन उपवन को मेरे
याद आता है बहुत
वोह
बीता ज़माना
बचपन का
रेखा जोशी
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