Friday, 30 May 2014

हाइकु


यादें सुहानी 
है मिलती खुशियाँ 
प्यारी कहानी 
............. 
घर अंगना 
यादें बचपन की 
रोना हँसना 

रेखा जोशी 

Thursday, 29 May 2014

एक किरण सत्य की

अन्धकार को प्रकाशित करती
सूरज की किरणे
जगत में  उजियारा  फैलाती
सूरज की किरणे
ज़िंदगी हमारी तुम्हारी
मन आत्मा को भी
प्रकाशित कर सकती
सत्य की किरणे
पढ़ ली बहुत पुस्तक पोथी
लेकिन ऊर्जा से कर देगी
परिपूर्ण हमें
एक किरण सत्य की
बदल देगी ज़िंदगी
हमारी तुम्हारी
एक किरण सत्य की

रेखा जोशी


तेरी महिमा का गुणगान हम सब कर रहे

दया हम पर करने वाले तुम दयावान हो
प्रभु कृपा करने वाले तुम कृपानिधान हो
तेरी महिमा का गुणगान हम सब कर रहे
बल निर्बल को देने वाले तुम बलवान हो
रेखा जोशी

कुछ भी तो नही तेरे बिन ज़िन्दगी

जब से तुम ज़िन्दगी में आये हो सनम 
कुछ तो उम्मीद दिल में लाये  हो सनम  
थी  कुछ भी तो  नही तेरे बिन  ज़िन्दगी 
इन  सुन्दर  वादियों  में छाये  हो सनम 

रेखा जोशी

तूफ़ान छुपाये सीने में अपने


लहरें गिरती उठती 
सागर की
शोर मचाती आती
और 
साहिल के पग चूमती
फिर
वापिस लौट जाती
झिलमिलाती
विशाल सीने पर चमकती 
सुनहरी रश्मियाँ अरुण की 
असीमित नीर
समेट अपने में
अथाह शक्ति
फिर भी
शांत है विस्तृत सागर 
तूफ़ान छुपाये
सीने में अपने 
मत करना विचलित इसे 
हो क्रोधित
बहा ले जायेगा सब कुछ 
संग अपने 
तोड़ कर सीमायें सब 
बन सुनामी 
कर देगा तहस नहस 
सब ओर 

रेखा जोशी 

Wednesday, 28 May 2014

चलती रहे यूँ ही ज़िन्दगी


वक्त जो गुज़र जाता है 
छोड़ जाता पीछे कई यादें 
कुछ खट्टी तो कुछ मीठी 
भर आती है आंखे कभी 
याँ लब पे मुस्कान कभी 
बीते  हुए हमारे वही पल 
नीव बन संवारते  है जो 
आने वाले जीवन के पल 
भरता है ज़िन्दगी में रंग 
देकर जाता नई सीख हमे 
भुला कर दर्द जो है छिपे 
अतीत के आंचल के तले 
चलती रहे यूँ ही ज़िन्दगी 
होंठों पर  मुस्कान लिये 

 रेखा जोशी 

Tuesday, 27 May 2014

दोहे


मन को बस कर ले मना ,मन से बड़ा न कोय । 
मन में  मना  जोत  जला ,जग उजियारा होय ॥ 

जानकी के राम भये ,राधा के गोपाल । 
मीरा घनश्याम भजे ,भजे नंदगोपाल  ।। 

छलके नीर नैनो से ,बिन बादल बरसात । 
पिया तो परदेस गये ,याद आए दिन रात ॥ 

समय बलवान सभी से ,समय  की तेज़ धार । 
राजा  रंक बन जाये ,रंक है  महाराज ॥ 

चार दिनो की चांदनी ,फिर अन्धेरी  रात । 
सबसे प्यार तुम  कर लो ,जीवन का यह सार 

रेखा जोशी 

क्यों नमक घावों पर छिड़क दिया तुमने ज़िंदगी

किसको सुनायें 
हम अपनी दुःख भरी 
दास्तान 
इतनी बेरहम नही 
थी कभी  
ज़िंदगी हमारी 
थे मिले ज़ख़्म 
पहले भी 
सह लिये 
जो कभी 
हँस  कर हमने 
कुरेद कर फिर उन्हें 
क्यों नमक घावों पर 
छिड़क दिया 
तुमने 
ज़िंदगी 

रेखा जोशी 

Sunday, 25 May 2014

सलामत रहो यही दुआ करते हम सदा

न जाने क्यों भाती तेरी हमे हर अदा
पास रहो याँ दूर चाहें तुझे हम सदा
पलके बंद करें तो महकती है यादें 
सलामत रहो यही दुआ करते हम सदा
रेखा जोशी

समय परिवर्तनशील है इक दिन जायेगा बदल

दुख से गुज़रना है कठिन बहुत नही होगा सरल
समय के चलते कभी कभी पीना पडेगा गरल 
धैर्य रख  छोड़ दो तुम ईश्वर के हवाले सब 
समय परिवर्तनशील है इक दिन जायेगा बदल
रेखा जोशी

Friday, 23 May 2014

चाहें तो कर सकते दुनिया मुट्ठी में

हौंसलों में हमारे अभी भी दम है 
बुलंद इरादे और बढ़ते कदम है
चाहें तो कर सकते दुनिया मुट्ठी में
छू लेंगे आसमान फिर भी कम है
रेखा जोशी

गीतिका



हे श्याम साँवरे  गौ मात के रखवाले तुम ।
गौ रक्षा कर गोवर्धन पर्वत उठाने वाले तुम ।
दया करो दया करो सुनो फिर मूक पुकार तुम ।
कटती बुचड़खाने में आ कर उद्धार करो तुम ।।

हे श्याम साँवरे खाने को मिले  घास  नही ।
खा रही कूड़ा करकट कोई उसके पास नही ।
डोलती है  लावारिस कोई उनका वास नही।
दीनदयाला अब तेरे सिवा कोई आस नही ।।

हे  श्याम साँवरे सुनो  पुकार कामधेनु की।
संवारों तुम ज़िन्दगी माँ तुल्य कामधेनु की।
जर्जर  काया  बह रहे  आँसू  तुम्हे  पुकारें ।
याद आयें धुन मधुर बंसी की तुम्हे पुकारें ।।

रेखा जोशी 







Thursday, 22 May 2014

आजा झलक कभी तो अपनी सजन दिखा जा

अब तो सनम लगी दिल की  है नयन मिला जा 
तुमसे  चहक उठा  आँगन अब चमन खिला जा 
राहे    फलक  तलक   फूलों  से  महक   उठी है 
आजा झलक  कभी तो अपनी सजन  दिखा जा 

 रेखा जोशी

पूर्ण हो उनकी सब कामनाएँ

बहुत बड़ा वृक्ष हूँ मै
खड़ा सदियों से यहाँ
बन द्रष्टा देख रहा 
हर आते जाते
मुसाफिर को
करते विश्राम
कुछ पल यहाँ
फिर चल पड़तें 
अपनी अपनी मंज़िल
आते अक्सर यहाँ
प्रेमी जोड़े
पलों में गुज़र जाते  घण्टे
संग उनके
सजी हाथो में पूजा की थाली
कुमकुम लगा माथे पर मेरे
मंगल कामना करती
अपने सुहाग की
और मै बन द्रष्टा
मूक खड़ा मन ही मन
प्रार्थना करता परमपिता से
पूर्ण हो उनकी 
सब कामनाएँ 

रेखा जोशी


Wednesday, 21 May 2014

भारत माँ का बेटा करे हमेशा सेवा


देश चल पड़ा है चाहे  कोई चलें न चलें 
हुए भावुक मोदी आँखों से आँसू निकले 
भारत  माँ  का  बेटा  करे  हमेशा  सेवा 
महँगाई होगी दूर  औ  देश  फूले  फले 

रेखा जोशी 

Tuesday, 20 May 2014

प्यार का स्वरूप है तुम्हारी मुस्कुराहट




खिली खिली सी धूप हैतुम्हारी मुस्कुराहट 
ईश्वर  का  ही रूप है तुम्हारी   मुस्कुराहट 
भूल जाते है देख  कर तुम्हे दुनिया को हम 
प्यार  का  स्वरूप  है  तुम्हारी  मुस्कुराहट 

 रेखा जोशी   

बुने ख़्वाब हमने थे कभी


बुने ख़्वाब हमने थे कभी 
टूट गए जो सपने थे कभी 
हम भी हारे नही  जहाँ से  
पाएँगे  जो अपने थे कभी 

रेखा जोशी 

यह घड़ी ही सँवार सकती है ज़िंदगी

 

वक्त के हाथों  में  ढलती  है ज़िंदगी 
कभी ख़ुशी कभी गम देती है ज़िंदगी 
पर अनमोल है ज़िंदगी का यही घड़ी 
यह घड़ी ही सँवार सकती  है ज़िंदगी 

रेखा जोशी 

Monday, 19 May 2014

चीर घोर अन्धकार को वह रोशनी दिखाता है

चीर घोर अन्धकार को वह रोशनी दिखाता है

अँधेरे से उजाले में वह बाहँ पकड़ लाता है

करते है नमन ऐसे महान गुरू को हम सब मिल

ज़िंदगी जीने के लिए नव राह जो दिखलाता है


रेखा जोशी

सिसकियाँ भरता जर्जर मकान

यादें चिपकी हुई
उस जर्जर मकान की
दीवारों से
ढह रहा जो
धीरे धीरे
घर था कभी जो
खिलखिलाती थी जहाँ
पीढ़ी दर पीढ़ी
न जाने कितनी
ज़िन्दगियाँ
याद दिलाती होली की
देख इन पर पड़े
लाल गुलाबी
रंगों के छींटे
गूँजती थी जहाँ
बच्चों की किलकारियाँ
गम के आँसू भी
बहते रहे जहाँ
आज कैसे सूना सूना
बेरंग सा खड़ा
सिसकियाँ भरता हुआ

रेखा जोशी

Sunday, 18 May 2014

गुनगुना रहीं है हवाएं मुस्करा उठी फिजायें



खुशबू  तेरी  बसी  ख्वाबों  में मेरी  यादों में 
महकने लगी  मेरी तन्हाई  बदलती  रुत में 
गुनगुना रहीं है  हवाएं मुस्करा उठी फिजायें
बस कुछ ही पल इंतज़ार के बाकी है आने में 

रेखा जोशी 

Saturday, 17 May 2014

हर दिन हर घड़ी तेरी यादों में ही गुज़ारा करते है

नयन मेरे थामे दिल तेरी राहें निहारा करते है
न जाने क्यों दिल ही में सनम तुम को पुकारा करते है
कुछ भी करें हम पर बाँवरे दो नैन यह जो है हमारे
हर दिन हर घड़ी तेरी यादों में ही गुज़ारा करते है
रेखा जोशी

जीवन में ख़ुशी के सिले और भी है

फूल इस बगिया में खिले और भी है
न हो तुम उदास मंज़िलें और भी है
माना कि भरी राहे यहाँ काँटों से
जीवन में ख़ुशी के सिले और भी है
रेखा जोशी

बयाँ क्या करें दर्द दिल का सनम अब

बहुत प्यार हमें  सनम जब दिया है 
वफा ऐ मुहब्बत सनम जब किया है 
ब्यान  क्या करें दर्द दिल का सनम अब 
किनारा तुम्ही ने कर जब  लिया है

रेखा जोशी

Friday, 16 May 2014

मन तेरा तो आईना ज़िंदगी का

मन  तेरा  तो  आईना  ज़िंदगी  का 
मुहब्बत है पर अंत नहीं नफरत का 
डूब  जाए  भावनाओं  के  सागर  में 
आँसू  बहाये  गीत  गाये  खुशी  का 

रेखा जोशी 

Thursday, 15 May 2014

समाज में बढ़ते नैतिक अवमूल्यन


 पूरे विश्व में आज भारत की छवि धूमिल हो चुकी है कारण बलात्कार ,भ्रष्टाचार ,लूटपाट ,दहेज उत्पीड़न और न जाने कितनी  अपराधिक गतिविधियां इस देश में अपनी जड़े जमा चुकी है जो लगातार  दिनोदिन फैलती ही चली जा रही है | एक समय था जब भारत में रामराज्य हुआ करता था जिसकी मिसाल हम आज भी देतें है | युग बदले , समय के चलते   संस्कारहीन और संवेदनशून्य  समाज उभर कर आ गया है जो दिशा भ्रमित हो चुका  है ,,न तो माँ बाप के पास समय है अपनी संतान को सही दिशा दिखाने का  और न ही संतान के पास समय है अपने माँ बाप के लिए | हम सब जानते है  कि माँ बच्चे की  प्रथम गुरु होती है ,माँ द्वारा दिए हुए संस्कार उसकी औलाद का जीवन संवार सकते है ,लेकिन बहुत दुःख की बात है कि आज भी  नारी को वह सम्मान नही मिल पाया जिसकी वह हकदार है अगर नारी सशक्त है तो वह अपनी संतान को नैतिकता का पाठ पढ़ा कर सम्पूर्ण राष्ट्र को सशक्त बना सकती है | कहने को तो नारी सशक्तिकरण पर लम्बे लम्बे भाषण दिए जाते है ,कार्यक्रम किये जाते है परन्तु अगर उनके घर में देखा जाए तो अधिकतर घरों में नारी की आज भी वही स्थिति है ,उसे ऊपर उठने ही नही दिया जाता , पुरुष का अहम नारी को सदा दबा कर रखता है और ऐसी दयनीय स्थिति में  कुंठित हुई नारी अपनी संतान को जो दिशा दिखानी चाहिए वह ऐसा नही कर पाती ,पति पत्नी के आपसी झगड़ों के  कारण  भी नन्हे कोमल बच्चों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव पड़ता  है ,जब कोई पुरुष नशे में धुत अपनी पत्नी से गाली गलौज याँ  मार पीट करता है तो उस घर में नारी के साथ साथ बच्चों के  सुकोमल मन पर भी गहरी चोट लगती है और वह अंदर ही अंदर घुट कर रह जाते है ,लेकिन उनके भीतर दबा हुआ आक्रोश एक दिन ज्वालामुखी बन फूट पड़ता है ,और अगर वहां आर्थिक परेशानी हो तो भावी पीढ़ी का भटकाव सुनिश्चित हो जाता है ,उनका आक्रोश अपराधिक  प्रवृति की ओर उनकी दिशा  बदल लेता है |

 हमारे देश में अमीर ओर गरीब के बीच खाई जैसी असमानता ,लूटपाट को जन्म देती है ,एक के पास इतनी धन दौलत और दूसरे के पास दो जून खाने के लिए निवाला तक नही ,ऊपर से महंगाई की मार , बेरोज़गारी ,आखिर कहाँ तक इंसान नैतिकता को झूला झूलता रहेगा ,जब उसके बच्चे रोटी मांगेगे तो वह क्या करेगा ,याँ तो चोरी करेगा याँ  आत्महत्या ,उसके पास और कोई विकल्प नही बचता | अगर देखा जाए तो आज पूरा देश भ्रष्टाचार में बुरी तरह से लिप्त है ,हर कोई अपनी जेब भरने में लगा है ,चाहे वह कोई बड़ा अफसर हो याँ फिर एक चपड़ासी ,हर कोई लालच में अंधा हो रहा है ,इसी लालच के चलते दहेज की आग में न जाने कितनी मासूस युवतियों को झोंक दिया जाता है |

कहते है यथा राजा तथा प्रजा ,,जब हमारे नेता इतने धोटाले कर रहे है तब कोई चपड़ासी क्यों नही रिश्वत ले सकता  है ,आज हम सब व्यवस्था परिवर्तन की बात करते है ,अपने स्थान पर यह सही भी है  ,लेकिन इसके साथ साथ हमे भी अपने विचारो एवं आचार को भी बदलना होगा ,नैतिकता का पाठ पढ़ाना तो  बहुत आसान है ,लेकिन उस पर चलना भी अग्नि परीक्षा से कम नही है ,नैतिक अवमूल्यन हमारे घरो से गुज़र कर समाज और फिर राष्ट्र को  दागदार  कर रहा  है | अगर हम नैतिक  मूल्यों को अपने जीवन का आधार बनाना चाहते है तो हमे घर ,समाज और राष्ट्र सब ओर से अनैतिकता पर प्रहार कर हर ओर एक स्वच्छ वातावरण प्रदान करना पड़ेगा |

रेखा जोशी
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गुनगुनाती फिज़ा खिली ज़िन्दगी


आप जब से मिले मिली ज़िन्दगी 
प्रेम से अब यहाँ  खिली ज़िन्दगी 
आ  गयी  अब  यहाँ गुलों से हवा 
गुनगुनाती फिज़ा खिली ज़िन्दगी 

रेखा जोशी

Wednesday, 14 May 2014

शहद सी मीठी बोली पर है वह छलावा




है कुहक रही कोयल अंबुआ पऱ डोलती 
बोल मीठे बोले  कानो  मे  रस  घोलती
शहद सी मीठी बोली पर है वह छलावा
भली उससे है कर्कश कागा की बोलती

रेखा जोशी 

Tuesday, 13 May 2014

तुम्ही को चुरा लेंगें तुम से देख लेना

अपना बना लेंगें हम तुम्हे देख लेना
दिलो जिगर लुटा देंगें तुम पे देख लेना 
सपनो में आते रहेंगे सदा तुम्हारे
तुम्ही को चुरा लेंगें तुम से देख लेना
रेखा जोशी

Monday, 12 May 2014

निकल गया जनाज़ा मेरी वफ़ा का

उसका भोला सा 
मुस्कुराता हुआ चेहरा 
देख कर 
प्यार से मैने 
उसे गले लगाया 
सुख दुःख का अपने 
उसे साथी बनाया 
पर फितरत मे उसकी 
था फरेब और धोखा 
घोंप दी  छुऱी 
पीठ पर मेरी 
और 
कर दिया खून 
दोस्ती का मेरी 
निकल गया जनाज़ा 
मेरी वफ़ा का 
और वो ज़ालिम 
रहा मुस्कुराता 

रेखा जोशी 

Sunday, 11 May 2014

मनमोहक नज़ारों से सज रही है धरा ह्मारी

बिखेर कर रंग सिंदूरी आसमाँ लाल हुआ हैं
विचरते पंछियों से चहकता उषाकाल हुआ है
मनमोहक नज़ारों से सज रही है धरा ह्मारी
रवि के आगमन से जीवन यहाँ खुशहाल हुआ है
रेखा जोशी

Saturday, 10 May 2014

कविता

हाल ऐ  दिल  हमारा  ब्यान  करती है कविता 
दिल के अनकहे जज़्बात भी कहती है कविता 
झकझोर  कर  रख  देती  यह दिल के तारों को 
कभी  कभी तो  कहर  बनीं  बरसती है कविता 

रेखा जोशी 

HAPPY MOHER'S DAY माँ

HAPPY MOHER'S DAY
माँ

छोटा सा शब्द
माँ
समाया जिसने
सम्पूर्ण ब्रह्मांड
आधार विश्व का
माँ
है रूप ईश्वर का
इस जग में
माँ
छत्रपति शिवाजी
की
चरित्र निर्मात्री
जीजाबाई
माँ
है बना  सकती
माँ
संतान देश की 
को
पाठ पढ़ा कर
स्वाभिमान का
देशभक्ति का
वीरता का
मानवता का
माँ
है महान
उस माँ को
कोटि कोटि
प्रणाम
कोटि कोटि
प्रणाम

रेखा जोशी





Friday, 9 May 2014

जियें चाहे हम एक दिन पर शेर जैसे



ज़िंदगी हमारी अपनी कुछ हो ऐसे 
चाहे कितनी भी छोटी सी हो वैसे 
कायरता भरा जीवन क्या जीना हैं 
जियें चाहे हम एक दिन पर शेर जैसे 

रेखा जोशी 

Thursday, 8 May 2014

दिखा दो माँ करुणा और शक्ति प्रेम की

समझ सकती
मै पीड़ा तुम्हारी
खून के प्यासे
दो भाईयों को देख कर
तिलमिला उठी दर्द से
यह कोख मेरी
माँ हूँ न
रचना जो की उनकी
रचयिता जो तुम हो
संपूर्ण जग के
महसूस कर रही मै
तड़प तुम्हारे मन की
क्या गुज़रती होगी
सीने में तुम्हारे
नाम तेरा ले कर
जब लड़ते बच्चे तेरे
धर्म के नाम
देख लाल होती धरा
धमाकों की गूँज से
कालिमा पुत गई
नील गगन पर
मर रही संतान तेरी
अपने बंधुजनों से
दिखा के शक्ति प्रेम की
हे जगदम्बा
मिटा दे वो घृणा
कालिमा  लिए हुए
सांस सुख की ले सकें
फिर नीले अम्बर तले
पोंछ दो वो आँसू
खून बन जो टपक रहे
दिखा दो माँ
करुणा और शक्ति प्रेम की

रेखा जोशी



Wednesday, 7 May 2014

तितली

है हरा भरा 
इनका संसार  
रंग चुराने फूलो का 
उड़ती है यह 
डाली डाली 
है खेल अजब 
प्रकृति का 
लाल पीले 
बैंजनी नीले 
सुन्दर रंगों से 
अपना  
रूप सजाती 
है मुग्ध देख 
सब 
इनकी कला 
फिर सुन्दर से 
रंग बिरंगे पंख लिए 
कैसे बगिया में 
इठलाती इतराती 
हूँ छोटी सी तितली 
तो क्या हुआ 
चित्रकार हूँ मै 
सबसे महान

रेखा जोशी 

Tuesday, 6 May 2014

आजा रे ओ मीत मेरे

गीत

आजा रे ओ  मीत मेरे
सूने तुम बिन गीत मेरे

हर आहट पर धड़के जिया
घर आजा रे  मोरे पिया
तुम बिन अब हम कैसे जियें 

आजा रे ओ  मीत मेरे
सूने तुम बिन गीत मेरे

रात सारी नींद न आये
धड़कन दिल की तुझे बुलाये
दिल पुकारे आ भी जा रे


आजा रे ओ  मीत मेरे
सूने तुम बिन गीत मेरे

रेखा जोशी 

Monday, 5 May 2014

कभी रुलाती है तो कभी हँसाती यह जिंदगी

पल पल यूँ ही गुज़र जाती  हमारी यह जिंदगी
छोड़ पुराना नए पल में ढल जाती  यह जिंदगी
जीतें यहाँ हम सब ख़ुशी और गम के अनेक पल
कभी  रुलाती  है तो कभी हँसाती  यह जिंदगी

रेखा जोशी

रह जाती शेष बस माटी ही माटी

यौवन को यहाँ हमने ढलते देखा 
लोहे को भी हमने  पिघलते देखा 
रह जाती  शेष बस माटी ही माटी 
यहाँ पर पर्वतों को भी गिरते देखा 

रेखा जोशी 

तुम ही तुम हो इस सृष्टि में

पिघल जाता 
लोहा भी
इक दिन
चूरा हो जाता 
पहाड़ भी 
ले बहा जाता
समय संग अपने
रह जाती
बस माटी
समाया बस तू
कण कण में
छू नही सकता 

जिसे
समय कभी

भी 
तुम ही तुम 
हो बस 
इस सृष्टि में 

रेखा जोशी 


पटक दिया धरती पर तुमने मुझे

उकेरी है जब से 
मन में 
तस्वीर तेरी 
काबू में 
रहा नही 
दिल हमारा 
पर 
बहुत अलग 
निकली 
तस्वीर तेरी तुमसे 
सुन्दर सा मुखौटा ओढ़े 
छलते रहे 
उम्र भर मुझे 
उतर गया 
वो नकाब 
लगा यूँ 
पटक दिया 
धरती पर 
तुमने 
मुझे 

रेखा जोशी 

Saturday, 3 May 2014

जी उठेगी ज़िंदगी फिर से इक बार

जीना चाह रही
पर
जी नही पा रही
ज़िंदगी
निराशा के चक्रव्यूह
से
निकलना चाह  रही
पर
निकल नही पा रही
ज़िंदगी
घेर लिया उसे
घोर निराशा ने
है
छाया अन्धकार
चहुँ  ओर
और
किरण आशा की
कहीं से भी
नज़र नहीं आ रही
पर
यह तो है ज़िंदगी
जियेगी
चीर सीना कालिमा
का
बादलों की ओट
से
निकले गा
रथ अरुण का
सात घोड़ों पर सवार
विलुप्त
होगा तब अंधकार
बिखरेंगी
उसकी रश्मियाँ तब
जी
उठेगी ज़िंदगी
फिर से
इक बार

रेखा जोशी


बेवफा है दुनिया

ख़ुदग़रज़ दोस्तों पे तुम जान अपनी निसार न करो 
बेवफा  है  दुनिया  किसी का  यहाँ  ऐतबार  न करो 
झूठ  और फरेब  जिन लोगों की फितरत में  है सदा  
उन लोगों से तुम  वफ़ा का कभी भी इज़हार न करो 

रेखा जोशी 

Friday, 2 May 2014

श्रम दिवस पर


मज़दूर  हूँ मेहनत  कर  पेट  भरता हूँ 
बह  जाये  खून  पसीना  नहीं डरता हूँ
श्रम सदा करना ही कर्म और धर्म मेरा 
संघर्ष इस जीवन में हर रोज़  करता हूँ 

रेखा जोशी 

टूट गई सपनों की दुनिया

बहुत छोटी
मेरे सपनों की दुनिया
टूट गई
बुनते ही
रख दिया
हाथ क्यों
तुमने
मेरी दुखती रग पर
सुना दिया
तुमने तो
फैसला अपना
क्यों नही सुनी
आह
इस दिल की
बेबस तड़प
हमारी
पुकारती रही
और
तुम दूर
बहुत दूर
चले गए हमसे
और
देखते रहे
हम
लाचार निगाहों से
जाते हुए
तुम्हे
दूर तक

रेखा जोशी



Thursday, 1 May 2014

जीवन मृत्यु

जीवन मृत्यु
ज़िंदगी के दो पहलू
दो रूप
एक ही सिक्के के
आज जीवन
तो
कल मृत्यु
लुप्त
हो जाती
न जाने कहाँ
छोड़ जड़ को
चेतना कहीं
लेकिन
वह पल
वह हसीं लम्हे
कभी
गुज़रे थे जो
साथ
दे जाते
इक टीस और 
कुछ महकती हुई
यादें
जीवन भर के लिए

रेखा जोशी