Saturday, 3 May 2014

जी उठेगी ज़िंदगी फिर से इक बार

जीना चाह रही
पर
जी नही पा रही
ज़िंदगी
निराशा के चक्रव्यूह
से
निकलना चाह  रही
पर
निकल नही पा रही
ज़िंदगी
घेर लिया उसे
घोर निराशा ने
है
छाया अन्धकार
चहुँ  ओर
और
किरण आशा की
कहीं से भी
नज़र नहीं आ रही
पर
यह तो है ज़िंदगी
जियेगी
चीर सीना कालिमा
का
बादलों की ओट
से
निकले गा
रथ अरुण का
सात घोड़ों पर सवार
विलुप्त
होगा तब अंधकार
बिखरेंगी
उसकी रश्मियाँ तब
जी
उठेगी ज़िंदगी
फिर से
इक बार

रेखा जोशी


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