पिघल जाता
लोहा भी
इक दिन
चूरा हो जाता
पहाड़ भी
ले बहा जाता
समय संग अपने
रह जाती
बस माटी
समाया बस तू
कण कण में
छू नही सकता
जिसे
समय कभी
भी
तुम ही तुम
हो बस
इस सृष्टि में
रेखा जोशी
लोहा भी
इक दिन
चूरा हो जाता
पहाड़ भी
ले बहा जाता
समय संग अपने
रह जाती
बस माटी
समाया बस तू
कण कण में
छू नही सकता
जिसे
समय कभी
भी
तुम ही तुम
हो बस
इस सृष्टि में
रेखा जोशी
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