लहरें गिरती उठती
सागर की
शोर मचाती आती
और
साहिल के पग चूमती
फिर
वापिस लौट जाती
झिलमिलाती
विशाल सीने पर चमकती
सुनहरी रश्मियाँ अरुण की
असीमित नीर
समेट अपने में
अथाह शक्ति
फिर भी
शांत है विस्तृत सागर
तूफ़ान छुपाये
सीने में अपने
मत करना विचलित इसे
हो क्रोधित
बहा ले जायेगा सब कुछ
संग अपने
तोड़ कर सीमायें सब
बन सुनामी
कर देगा तहस नहस
सब ओर
रेखा जोशी
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