बहुत बड़ा वृक्ष हूँ मै
खड़ा सदियों से यहाँ
बन द्रष्टा देख रहा
हर आते जाते
मुसाफिर को
करते विश्राम
कुछ पल यहाँ
फिर चल पड़तें
अपनी अपनी मंज़िल
आते अक्सर यहाँ
प्रेमी जोड़े
पलों में गुज़र जाते घण्टे
संग उनके
सजी हाथो में पूजा की थाली
कुमकुम लगा माथे पर मेरे
मंगल कामना करती
अपने सुहाग की
और मै बन द्रष्टा
मूक खड़ा मन ही मन
प्रार्थना करता परमपिता से
पूर्ण हो उनकी
सब कामनाएँ
रेखा जोशी
खड़ा सदियों से यहाँ
बन द्रष्टा देख रहा
हर आते जाते
मुसाफिर को
करते विश्राम
कुछ पल यहाँ
फिर चल पड़तें
अपनी अपनी मंज़िल
आते अक्सर यहाँ
प्रेमी जोड़े
पलों में गुज़र जाते घण्टे
संग उनके
सजी हाथो में पूजा की थाली
कुमकुम लगा माथे पर मेरे
मंगल कामना करती
अपने सुहाग की
और मै बन द्रष्टा
मूक खड़ा मन ही मन
प्रार्थना करता परमपिता से
पूर्ण हो उनकी
सब कामनाएँ
रेखा जोशी
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