Sunday, 15 February 2015

भागती दौड़ती ज़िन्दगी

 भागती दौड़ती
ज़िन्दगी
जहाँ देखा भीड़ ही भीड़
हर कोई
है भाग रहा 
मंज़िल कहाँ मालूम नही
है अंतहीन यह 
दौड़ इच्छाओं की 
चाहतों  तृष्णाओं की
रूकती नही
है भागती जाती

रेखा जोशी

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