Thursday, 5 February 2015

लहराती थी डाली जहां कभी खिलते थे फूल

सूख  गये  पत्ते  अब  डाली  डाली  भी  सूख  चुकी 
खड़ा फिर भी ठूठ अब  माली की नज़र भी उठ चुकी 
लहराती  थी  डाली   जहां   कभी   खिलते  थे  फूल  
निष्फल जीवन जीने की अब तो आस भी टूट  चुकी 

रेखा जोशी 

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