सात समुद्र पार कर
आई पिया के द्वार
नव नीले आसमां पर
झूलते इन्द्रधनुष पर
प्राणपिया के अंगना
सप्तऋषि के द्वार
झंकृत हए सात सुर
हृदय में नये तराने |
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उतर रहा वह नभ पर
सातवें आसमान से
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर
पार सब करता हुआ
प्रकाशित हुआ ये जहां
अलौकिक , आनंदित
वो आशियाना दीप्त
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थिरक रही अम्बर में
अरुण की ये रश्मियाँ
चमकी धूप सुनहरी सी
अब आई मेरे अंगना
है स्फुरित मेरा ये मन
खिल उठा ये तन बदन
निभाने वो सात वचन
आई अपने पिया के द्वार
रेखा जोशी
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