Sunday, 15 November 2015
कब तक झुलसे गी मानवता आतंक के धमाकों से
बिछी लाशें रोती आँखें चारो ओर मचा चीत्कार
अब छिन गया सबका सुख चैन है मच रहा हाहाकार
कब तक झुलसे गी मानवता आतंक के धमाकों से
करना होगा मिलकर सबको इन दरिंदों का संहार
रेखा जोशी
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