तैरते
बादल नील गगन पे
रूप
अपना भिन्न भिन्न
आकृतियों में
बदलते
हवा संग
उड़ता जाये
पागल मनवा मेरा
सपनो
को संजोये
उभरती
आकृतियों में
पिघल गई आकृतियाँ
बादलो की
बूँद बूँद बरसती
धरा पे
सपने मेरे घुल गये
मोती से
अश्को में झड़ने लगे
नैनो से
बरसती जलधारा में
रेखा जोशी
बादल नील गगन पे
रूप
अपना भिन्न भिन्न
आकृतियों में
बदलते
हवा संग
उड़ता जाये
पागल मनवा मेरा
सपनो
को संजोये
उभरती
आकृतियों में
पिघल गई आकृतियाँ
बादलो की
बूँद बूँद बरसती
धरा पे
सपने मेरे घुल गये
मोती से
अश्को में झड़ने लगे
नैनो से
बरसती जलधारा में
रेखा जोशी
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