Thursday, 31 March 2016

जख्म दिल के जो मिले नासूर बन चुके आज

नींद से  तुम हमें जगाते रहे बार बार
ख्वाबों में तुम हमें सताते रहे बार बार
....
चैन ओ सकून लेकर कहाँ चले  हमारा
हाल ऐ दिल अपना सुनाते  रहे बार बार
....
रात दिन खिलते रहे दिल में कमल यादों के
यादों  में   आकर   रुलाते   रहे   बार   बार
....
जो जख्म दिल को  मिले नासूर  हो गये आज
मुहब्ब्त  में  दिल  को   जलाते  रहे  बार  बार
....
क्या करें तुम्हे न भूल पायें गे ज़िंदगी भर
दर्द ऐ दिल अपना छिपाते रहे बार बार

रेखा जोशी 

कर्मयोगी बन करते रहना पुरषार्थ

कर्मयोगी   बन सदा करना  पुरुषार्थ
राह चाहे हो कठिन धीरज रखना  साथ
तकदीर पर न रखना आस ओ मूर्ख मन
रेखायें   बदल  देता   कर्म  करता  हाथ

रेखा जोशी 

Wednesday, 30 March 2016

मनोरम छन्द

ध्यान कर प्रभु वंदना में 
धूप उतरी  अंगना में 
ज़िंदगी फिर मुस्कुराई 
प्यार खुशियाँ घर आई

रेखा जोशी 

बिगाड़ा रूप हमने मिलकर तरंगिनी का

पर्वतों  से  मिला  हमें जल नवल धवल
जहाँ  बहती थी सुन्दर सरिता कल कल
बिगाड़ा रूप हमने मिलकर तरंगिनी का
है प्रदूषित  काला अब  नदिया   का जल

रेखा जोशी 

आओ मिलकर सुलझायें उलझी हुई डोर

जीवन  में  हमारे  आज  आई  नई  भोर
लेकिन तकदीर पर चलता नहीं भई जोर
थे  उलझ  गये   धागे  ज़िंदगी  में हमारे
आओ मिलकर सुलझायें उलझी हुई डोर

 रेखा जोशी

गुलशन की महक संग बागबान ले गया

धरा  के    संग   सारा  आसमान  ले गया
रँग  चुरा  कर  जीने   का  सामान ले गया 
सिसकती  रही कली कली याद  में उसकी
गुलशन की महक  संग  बागबान ले गया

रेखा जोशी 

Tuesday, 29 March 2016

आये यहाँ तेरी महफ़िल में हम भी सनम

बादलों  की  ओट से  मुस्कुराता  है चाँद
तारों के  सँग अम्बर  पे चमकता है चाँद
आये यहाँ तेरी महफ़िल में हम भी सनम
रास्ते पर आज रश्मियाँ बिखेरता है चाँद 
रेखा जोशी 

Monday, 28 March 2016

धोनी का छक्का

मैच  विजय 
धूम मचाये टीम 
भारत जय 
.... 
छाया विराट
क्रिकेट का मैदान
लगा दी वाट 
..... 
धोनी कप्तान
टी  ट्वेंटी के  वीर 
देश की शान 
,,,,,
चौके पे चौका 
बढ़ते  रहे रन 
धोनी का छक्का 
.... 
ख़ुशी मनाते 
नाम ऊँचा देश का 
चले पटाखे 

रेखा जोशी 





चाह नहीं शान शौकत भरी ज़िंदगी हो कभी


ज़िंदगी  दी  प्रभु  ने  करेँ  उसे  नमन जीवन में
शीश महल न चाहा कभी भव्य भवन जीवन में
चाह  नहीं  शान  शौकत  भरी ज़िंदगी  हो  कभी
स्नेह  भरा  मिले  ऐसा  कोई  सजन  जीवन में

रेखा जोशी  

Sunday, 27 March 2016

मन में विश्वास लिये ढूँढ रहे पागल नैना


जाने  कहाँ   चले  गये   सजन   मै   भई  उदास
ऐसे  में    मिला  न  मोहे   कहीं से भी     दिलास
मन   में   विश्वास   लिये  ढूँढ   रहे  पागल  नैना
आनन फानन निकल पड़ी पिया मिलन की आस

रेखा जोशी 

निशब्द


मै खामोश हूँ
भीतर हलचल 
शांत सागर
..................
इक हूक जो
है सीने में उठती 
ज्वालामुखी सी
..................
प्यार किया था
हूँ पर तन्हा तन्हा 
दिल से चाहा
...................

 हो काश कोई 
समझ पाता मुझे 
जी तो लेती मै
...................
लब जो खुले 
दिल की कहने को 
आवाज़ गुम
...................
शब्द नही है 
धड़कन में तुम
हुई  निशब्द  

 रेखा जोशी 

संतुष्टि [कहानी ]

सुशीला गुप्ता ,अपने प्रोफेसर पति गुप्ताजी और अपने दोनों बेटों नीरज और सौरभ के साथ पंजाब के जालन्धर शहर में अपने छोटे से घर में बहुत खुश थी |हर रोज़ सुबह नहा धो कर ईश्वर की पूजा आराधना कर वह उस परमपिता परमात्मा का धन्यवाद करती और अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करती |उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा ,जब नीरज को इंजीनियरिंग करने के बाद एक अच्छी कम्पनी में नौकरी मिल गई और सौरभ को मेडिकल कालेज में दाखिला मिल गया |उसने और उसके पति प्रोफेसर गुप्ता जी ने मिल कर अपने दोनों बेटों की अच्छी परवरिश की थी और उसी का यह फल था जो आज उसका परिवार सफलता की सीढीयाँ चढ़ रहा था ,लेकिन कब अनहोनी ने दबे पाँव उसकी जिंदगी में दस्तक दे दी ,जिसकी कभी उसने कल्पना तक नही की थी |अंग्रेजी लिटरेचर के प्रोफेसर गुप्ता जी का दीवाना दिल उनकी ही एक क्रिश्चयन छात्रा तारा पर आ गया ,उनके बीच की दूरियाँ कब नजदीकियों में बदल गई ,किसी को भी इसकी भनक तक नही पड़ी |जिस दिन दोनों ने चर्च में जा कर शादी कर ली ,तब यह खबर आग की तरह पूरे शहर में फैल गई और उड़ते उड़ते सुशीला और उसके बेटों के कानो में पड़ी | क्रोध के मारे नीरज और सौरभ का खून खौल उठा और सुशीला पर तो जैसे बिजली गिर पड़ी ,उस दिन उसे पहली बार अपनी हार का अहसास हुआ और उस क्रिश्चयन लड़की की जीत का ,जो न जाने क्यों और कहाँ से उसकी जिंदगी बर्बाद करने ,उसके और गुप्ता जी के बीच आ गई थी | 

सुशीला ,नीरज और सौरभ सहित उनके रिश्तेदारों ने प्रोफेसर साहब को बहुत समझाने की कोशिश की ,लेकिन सब बेकार ,गुप्ता जी तारा के इश्क में इस कदर पागल हो चुके थे कि उन्होंने घर छोड़ दिया ,परन्तु उसका साथ नही छोड़ा और उस दिन के बाद से गुप्ता जी गुप्तारा के नाम से मशहूर हो गए | सुशीला अपनी नीरस जिंदगी में सदा पराजय की भावना लिए अपने बच्चों के साथ ,उनकी ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी ढूंढने की कोशिश में लगी रहती लेकिन उसके मन के किसी कोने में सदा अपने प्यार के छिन  जाने की कसक असहनीय पीड़ा देती रहती थी ,वह अपने पति की बेवफाई को  भूल नही पा रही थी,आक्रोश की एक चिंगारी हमेशा उसे भीतर से कटोचती रहती थी।  उधर अधेड़ उम्र के गुप्ता जी को भी तारा का साथ ज्यादा दिन नसीब न हो सका और एक दिन दिल का दौरा पड़ने पर वह इस दुनिया को छोड़ कर उपर चले गए |तारा के सारे रिश्तेदार ,दोस्त उसके पार्थिव शरीर को दफ़नाने की तैयारी में जुट गए |
कई बार इंसान अपनी आत्म तुष्टि के लिए पता नही किस सीमा तक पहुंच जाता है जिसके कारण आत्मग्लानि के भरे हुए अपराधबोध के साथ  सारी  ज़िंदगी तड़पता रहता है ,ऐसा की कुछ सुशीला के साथ हुआ  ,जैसे ही उसे अपने पति की मौत का पता चला तो वह भी अपने रिश्तेदारों को इकट्ठा कर गुप्ता जी के पार्थिव शरीर को लेने वहां पहुँच गई ,और हिन्दू धर्म की दुहाई देते हुए गुप्ता जी के पार्थिव  शरीर पर अपना हक़ जताने लगी । सबने मिल कर  तारा एवं उसके रिश्तेदारों को समझाया  कि गुप्ता जी के अंतिम संस्कार करने का अधिकार केवल उसके बड़े बेटे नीरज का ही है |गुप्ताजी के पार्थिव शरीर को ले कर पादरियों और पंडितों के बीच ज़ोरदार बहस छिड़ गई ,ईसाई दफनाना चाहते थे और हिन्दू उनके पार्थिव शरीर को जलाना चाहते थे |आख़िरकार फैसला हो गया ,पहले गुप्तारा को ताबूत में डाल कर ईसाई धर्म के अनुसार दफनाया गया फिर ताबूत को मिटटी से खोद कर बाहर निकाला गया ,उसके बाद गुप्ता जी के पार्थिव शरीर को श्मशानघाट ले जाया गया और उनके बेटे नीरज ने अपने पिता की चिता को अग्नि दे कर बेटे होने का कर्तव्य निभाया |आँखों में आंसू लिए जलती चिता की ओर लगातार निहारते हुए सुशीला को मन ही मन अपनी जीत पर गर्व हो रहा था,आज उसकी आत्मा अपना कर्तव्य निभा कर पूर्ण रूप से संतुष्ट थी । 

रेखा जोशी 

Saturday, 26 March 2016

तुम ज़िंदगी हमारी , यह काश जान लेते

तुम  दूर जा रहे हो  , मत फिर हमे बुलाना 
अब प्यार में सजन यह ,फिर बन गया फ़साना 
...  
शिकवा नहीं  करेंगे ,कोई नहीं  शिकायत 
जी कर क्या करें अब ,दुश्मन हुआ ज़माना 
.... 
तुम  खुश रहो सजन अब ,चाहा सदा यही है 
मत भूलना हमें तुम ,वादा पिया निभाना 
.. 
किस बात की सज़ा दी ,क्यों प्यार ने दिया गम 
कोई हमें बता  दे , क्यों फिर जिया जलाना 
... 
तुम ज़िंदगी हमारी , यह  काश जान लेते 
हमने  न  प्यार पाया ,झूठा किया बहाना 

रेखा जोशी 

Friday, 25 March 2016

पग पग खाये हमने धोखे दुनिया में

दुख हमने साजन जीवन भर देखे है 
बनते  गिरते  हमने  तो  घर  देखे है 
पग पग  खाये हमने धोखे दुनिया में
मिलते जीवन में गम अक्सर देखे है 

रेखा जोशी 

गूँजने लगी कानों में मधुर खिलखिलाती हसी

देख जलमहल नैनो में कुछ  बिम्ब उभरने लगे 
कपाट  गुज़रे  ज़माने  के  अचानक खुलने  लगे 
गूँजने लगी  कानों में  मधुर खिलखिलाती हसी 
जीवंत  हो  उठे   बीते   पल  आज  महकने लगे 

रेखा  जोशी 



नशा यह कैसा छाया मौसम का


चाँद तारे तो  आज  सब सो गये
इन हसीं वादियों में हम खो गये
नशा यह कैसा छाया मौसम का
सारे    नज़ारे    हमारे   हो   गये

रेखा जोशी 

Thursday, 24 March 2016

है आते जीवन में क्षण ऐसे भी

होती पीड़ा कितनी
जब शूल से
चुभते पल कुछ
आते जीवन में
क्षण ऐसे भी
जब छा जाता तिमिर
चहुँ ओर
सूझती नही
कोई भी राह
जब बन जाते ह
फूल भी कांटे
चाह हो उड़ने की
जब
है पंख कट जाते 
तब

रेखा जोशी 

अधूरे है हम तुम बिन सुन साथी मेरे

जीवन की राहों में ले हाथों में हाथ
साजन मेरे चल रहे हम अब साथ साथ

अधूरे  है हम  तुम बिन सुन साथी  मेरे
आओ जियें जीवन का हर पल साथ साथ

हर्षित हुआ  मन देख  मुस्कुराहट तेरी
खिलखिलाते हम  दोनों अब  साथ साथ

आये कोई मुश्किल कभी जीवन पथ पर
सुलझा लेंगे  दोनों मिल कर  साथ साथ

तुमसे बंधी हूँ मै  साथी यह मान ले
निभायें गे इस बंधन को  हम साथ साथ

छोड़ न जाना तुम कभी राह में अकेले
अब जियेंगे और मरेंगे हम साथ साथ

रेखा जोशी

Tuesday, 22 March 2016

बनी रहे छाँव आँचल की सर पर सदा

कुछ  और  हमारी  ज़िंदगी  में   हो न हों
कुछ  और  सिवा  तेरे  प्यार के  हो न हो
बनी  रहे  छाँव  आँचल की सिर  पर सदा
कुछ और बस माँ की ममता के हो न हो

रेखा जोशी

Monday, 21 March 2016

होली का त्यौहार,

होली का त्यौहार, 
बरसे रंग गुलाल अब  । 
भूल गिले  कर प्यार 
जीवन को संवार ले । 

रेखा जोशी 

दिल में प्यार लिये आज आई होली

दिल में प्यार  लिये आज आई होली
मस्ती चहुँ और सँग आज लायी होली
.
रंगों  में  उमंग  रंग  है  उमंगों भरे 
लाल ,हरे  नीले , पीले  रंग  से रंगे
.
लुभा रहें  है  सब आज हो के बदरंग
ढोल   मंजीरा    औ    बाजे     रे  मृदंग
.
है  बगिया सूनी   बिन फूलों  के जैसे
अधूरी  है  होली  बिन  गाली के वैसे
.
प्यार  भरी  गाली से ऐसा हुआ कमाल
गाल  हुये  गोरी  के लाल बिन गुलाल
.
गुलाबों  का  मौसमहै बगिया बहार पे
कुहक  रही  कोयल अंबुआ की डाल पे
.
थिरक  रहें आज  सभी   हर्षौल्लास में
है  झूम रहें  सब  फागुन की बयार में

रेखा जोशी 


.. 


Sunday, 20 March 2016

रँग रंगोली से सजा अँगना

तुमको हम पल पल है निहारें
आये  तुम सँग  लाये  बहारें
रँग  रंगोली से सजा अँगना 
दीवाना दिल तुमको पुकारे 

रेखा जोशी 

है मदमस्त चल रही यहाँ फागुन की बयार

गुलाबों  का  मौसम आया बगिया में बहार 
है  कुहकती कोयलिया  अब अंबुआ की डार 
हर्षौल्लास  से  थिरकते झूम रहे आज सब 
है  मदमस्त चल रही यहाँ फागुन की बयार 

रेखा जोशी 

Friday, 18 March 2016

लूट खसोट में डूबा देश

महँगाई   हो  या   भ्रष्टाचार
घोटाले    होते    बार    बार
लूट   खसोट  में  डूबा   देश
सदा पड़ती  जनता को  मार

रेखा जोशी 

है झूम रहें सब फागुन की बयार में

दिल में  प्यार  लिये आज आई होली
मस्ती चहुँ और सँग आज लायी होली
रंगों  में  उमंग   रंग  है उमंगों भरे 
लाल,  हरे  ,नीले, पीले  रंग  से रंगे
लुभा रहें  है  सब आज हो के बदरंग
ढोल   मंजीरा   औ   बाजे    रे  मृदंग
है बगिया सूनी   बिन फूलों  के जैसे
अधूरी  है  होली  बिन गाली के वैसे
प्यार भरी गाली से ऐसा हुआ कमाल
गाल  हुये गोरी के लाल बिन गुलाल
गुलाबों का मौसम है बगिया बहार पे
कुहक रही कोयल अंबुआ की डाल पे
थिरक  रहें आज सभी  हर्षौल्लास में
है झूम रहें  सब फागुन की बयार में

रेखा जोशी 


Thursday, 17 March 2016

जमीं आसमान को रंगीन बनाता

कल्पना की  सीढ़ी पर
हो कर सवार
छू लिया आज सतरंगी
आसमान
खेलता  छुपा छुपी
बादलों से कभी
बन मेघ कभी भिगो देता
आँचल धरा का
चुरा कर इन्द्रधनुष के
रँग कभी
सजाता मांग
अवनी की अपनी
कल्पना के सागर में
गोते  लगाता
जमीं आसमान को
रंगीन बनाता
बरसाता ख़ुशी आसमान से
लहराती धरा पर
अमृत ले आता

 रेखा जोशी


ध्वजावरोहन समारोह वाघा बार्डर--. एक संस्मरण [पूर्व प्रकाशित रचना ]

ध्वजावरोहन समारोह  वाघा  बार्डर--. एक संस्मरण [पूर्व  प्रकाशित रचना  ]

दिन धीरे धीरे साँझ में ढल रहा था ,हमारी कार अमृतसर से लाहौर की तरफ बढ़ रही थी ,वाघा  के नजदीक बी एस एफ के हेडक्वाटर से  थोड़ी दूर आगे ही  दो बी एस एफ के जवानो ने हमारी कार को रोका ,मेरे पतिदेव गाडी से नीचे उतरे और उन्हें अपना आई कार्ड दिखाया और उनसे आगे जाने की अनुमति ली |आगे भी कड़ी सुरक्षा के चलते हम तीन चार बार अनुमति लेने के बाद वाघा   बार्डर पहुच गये | कार पार्किंग में ,छोड़ हम भारत पाक सीमा की ओर पैदल ही  बढने लगे| सूरज की तीखी धूप सामने से हमारे चेहरों पर पड़ रही थी ,उधर से लाउड स्पीकर पर जोशीला गाना ,''चक दे ,ओ चक दे इण्डिया ''हम सब की रगों में एक अजब सा जोश भर रहा था | जैसे ही हमने सीमा के प्रांगण में कदम रखा ,तो वहाँ कुछ नन्ही बच्चियां और कुछ नवयुवतियां उस जोशीले गाने पर थिरक कर अपना राष्ट्रीय प्रेम व्यक्त कर रही थी |एक बी एस एफ के जवान ने हमें उस प्रांगण की सबसे आगे वाली पंक्ति में बिठा दिया ,ठीक मेरी बायीं ओर भारत पाकिस्तान की सीमा दिखाई दे रही थी ,दोनों ओर के फाटक साफ़ नजर आ रहे थे और बीच में था कुछ खाली स्थान जिसे ,''नो मेन'स लेंड'' कहते है |फाटक के बाएं और दायें ओर बी एस एफ के जवान काले जूतों से ले कर लाल ऊँची पगड़ी तक पूरी यूनिफार्म में तैनात थे |सीमा के इस ओर भारत का तिरंगा लहरा रहा था और सीमा के दूसरी ओर पाकिस्तान का झंडा था । 

इस ओर का प्रांगण खचाखच  भारतवासियों से भरा हुआ था ,करीब आठ ,दस हजार लोग उस समारोह में शामिल थे   देश प्रेम के गीतों पर जोर जोर से तालियाँ बज रही थी और शायद उतने लोग सीमा पार ढोलक की थाप पर नाच रहे थे |पाकिस्तान के सीमा प्रहरी काली वेशभूषा में तैनात थे ,शाम के साढ़े पांच बज रहे थे ,समारोह की शुरुआत हुई भारत माता की जय से ,गूंज उठा सीमा का प्रांगण ,वन्देमातरम और हिन्दोस्तान की जय के नारों से ,कदम से कदम मिलाते हुए ,बी एस एफ की दो महिला प्रहरी काँधे पे रायफल लिए मार्च करती हुई सीमा के फाटक की ओर बढती चली गयी |एक ध्वनि लोगों को होशियार करती हुई ''आ आ .......अट'' के साथ कदम मिलाते हुए  दो जवान फाटक पर पाक सीमा की और मुख किये जोर से अपनी दायीं टांग सीधी उपर कर सर तक लेजाते हुए फिर उसे जोर से नीचे कर '' अट'' की आवाज़ के साथ पैर नीचे को पटक कर सलामी देते है |भारत माता ,वन्देमातरम और हिन्दोस्तान की जय जयकार के जोशीले  नारे लगातार हवा में गूंज रहे थे, यह पूरी प्रक्रिया तीन,चार बार दोहराई गयी  ,सीमा पार से लगातार ढोलक बजने की आवाज़ आ रही थी |

शंखनाद के साथ  श्रीमद भगवत गीता का एक श्लोक ,''यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिरभवति भारत |अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम || ''की लय पर भारतमाता के जवान प्रहरी कदम मिलाते हुए ,फाटक की ओर बढ़ते हुए उसे खोल दिया गया |,यही प्रक्रिया सीमा पार के प्रहरियों ने करते हुए अपनी ओर का फाटक पकिस्तान की जय जयकार करते हुए खोल दिया |रिट्रीट सैरिमोनी में दोनों ओर के सिपाहियों ने  ,अपने अपने देश के झंडों को सलामी देते हुए ,ध्वजावरोहन की प्रक्रिया शुरू की |दोनों ओर के दर्शकों की तालियों से वातावरण गूंज उठा |राष्ट्र प्रेम की भावना से ओतप्रोत वहा बैठा  हर भारतीय अपने दिल से जय जयकार के नारे लगा रहा था |राष्ट्रीय गान के साथ दर्शकों ने खड़े हो कर सम्मानपूर्वक ,बी एस एफ  के जवानो के साथ राष्ट्रीय ध्वज का अवरोहन किया| तालियों और नारों के मध्य दो जवानो ने सम्मानपूर्वक तिरंगे की तह को अपनी कलाइयो और हाथों पर रख कर सम्मान के साथ परेड करते हुए उसे वापिस लेते हुए चल पड़े |

अन्य दो जवान मार्च करते हुए फाटक की तरफ बड़े और उसे बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो गई |सूर्यास्त होने को था ,आसमान में आज़ाद पंछी सीमा के आरपार उड़ रहे थे ,लेकिन इस आधे घंटे की प्रक्रिया ने सीमा के इस पार हम सबके दिलों को राष्ट्रीय प्रेम के भावना से भर दिया और मै भावविभोर हो नम आँखों से वन्देमातरम का नारा लगते हुए बाहर की ओर चल  पड़ी |

रेखा जोशी 

Wednesday, 16 March 2016

रूठ कर हमसे न जाना तुम कहीं

आज फिर मौसम सुहाना आ गया 
ज़िंदगी  को  मुस्कुराना  आ गया 
रूठ  कर हमसे  न जाना तुम कहीं 
प्यार  से  साजन  मनाना आ गया 
रेखा जोशी 

हसरतों को अपनी लगा पँख उड़ चले हम आज

हौंसलों  में भर कर दम  धमाल  कर दिखायेंगे
जो  ठान  लिया  उसको  हर हाल कर दिखायेंगे
हसरतों को अपनी लगा पँख उड़ चले हम आज
 हाथ   बेबस   पैरों   से कमाल   कर  दिखायेंगे

 रेखा जोशी


प्यार के काबिल नहीं वह तुम्हारे


धोखेबाज़  को   मनाना  छोड़  दे
याद  में   आँसू   बहाना  छोड़  दे
प्यार के काबिल नहीं वह तुम्हारे
बेवफा  से  दिल  लगाना  छोड़ दे
रेखा जोशी

Tuesday, 15 March 2016

धूम मचाने अब यहाँ , आया है मधुमास

फूलों से बगिया खिली ,छाया हर्षोल्लास
धूम मचाने अब यहाँ , आया है मधुमास
आया है मधुमास ,  चलती शीतल पवन
पिया मिलन की आस  ,महकती कलियाँ उपवन
जीवन ले सँवार ,बांटे ख़ुशी मिल सबसे
छाई आज बहार ,  खिली बगिया फूलों से

रेखा जोशी 

कहानी घर घर की[पूर्व प्रकाशित रचना ]


मीनू रसोई में दोपहर के खाने की तैयारी  में अभी जुटी ही थी कि उसके मोबाईल की  घंटी बज उठी ,कानो पर मोबाईल रख वह सब्जी काटने लगी ,''हाँ मम्मी  बोलो'' ,''क्या कर रही हो ''दूसरी तरफ से आवाज़ आई,'कुछ ख़ास नही ,'बस मम्मी खाना बना रही हूँ ''मीनू ने जवाब दिया |यह सुनते ही मीनू की  माँ वहीं फोन पर शुरू हो गई ,''कैसे है तेरे ससुराल वाले सारा वक्त तुम्हे ही किचेन में झोंके रखते है और वह दोनों माँ बेटी पलंग तोडती रहती है ,तेरी सास या तेरी लाडली  नन्द  कोई काम धाम नही करती क्या ? |

मोबाईल फोन जी हाँ विज्ञानं की इस देन ने कई घरों को तोड़ कर रख दिया , अपने ससुराल की हर छोटी बड़ी बात बेटी के मायके तक झट से पहुंच जाती है और शुरू हो जाती है बेटी के घर में मायकेवालों की दखल अंदाजी जो ससुराल में आपसी रिश्तों  में कड़वाहट  भर देती है , .वो तो मीनू समझदार थी ,उसने अपनी माँ को समझा दिया और स्थिति को बिगड़ने नही दिया लेकिन सभी लडकियाँ मीनू जैसी समझदार तो नही होती ,कई बार तो ऐसी छोटी छोटी बाते इतनी बड़ी बन जाती है और अंजाम होता है तलाक ,यही तो हुआ मीनू की सखी रीना के साथ ,माँ बाप की  लाडली संतान ,शादी हो गई एक भरे पूरे परिवार में ,हर समय रीना की मम्मी उसे हिदायते देती रहती और आज यह हाल है कि रीना का तो तलाक हो गया लेकिन उसकी माँ का अपने घर में रोक टोक के कारण उसके भैया और भाभी ने उनसे  अलग हो कर अपनी गृहस्थी बसा ली |

अब रीना की माँ को कौन समझाये कि जब बच्चे बड़े हो जाते है तो उन्हें स्वतंत्र रूप में अपनी जिंदगी की निर्णय और जिम्मेदारियां उठाने देना चाहिए , उसके लिए माँ बाप को ही अपने बच्चों को भावी जिंदगी के लिए तैयार करना चाहिए | 

रेखा जोशी 

Monday, 14 March 2016

कान्हा के रँग में रँग ली राधा


भर  पिचकारी कान्हा ने मारी
भीगी चुनरिया राधा की सारी
कान्हा के  रँग में रँग ली राधा
सुध बुध अपनी राधा  ने हारी

रेखा जोशी 

ले चल मुझे माझी तू उस पार

कर  रहा मेरा  सजन इंतज़ार
है  बहती नदिया की तेज धार
बीच  मझधार डोल  रही नैया 
ले चल मुझे माझी तू उस पार

रेखा जोशी

कोयल कुहक रही अंबुआ की डार सखी

कोयल   कुहक रही  अंबुआ की डार सखी
फागुन की चलने लगी मस्त बयार सखी
फूलों  की   महक   छाई  अँगना   में  मेरे
है   आये  सजन  आज  मेरे  द्वार  सखी

रेखा जोशी 

Sunday, 13 March 2016

मचलते इस मौसम में चल रहे तुम साथ साथ मेरे

अपने सपनों में
खोई
आ गई मै कहाँ
चाँद तारों से सजा
खुला आसमाँ
है चूम  रहा आँचल
धरा का
लहराती  दुधिया चाँदनी से
जगमगा रही अवनी
शीतल
हवा के झोंकों से
सिहरता तन मन
महकती वादियों में
थिरक रहे पाँव मेरे
जाने क्यों
गीत गुनगुना रहे
आज सारे नज़ारे
संग संग मेरे
शायद
मचलते इस मौसम में
चल रहे तुम
साथ साथ मेरे

रेखा जोशी




प्यार में पाई सजन जब वफ़ा हमने

कभी तो  मिलें गें  हम ज़िन्दगी तुमसे
कहीं तो  मिलोगी तुम ज़िन्दगी  हमसे
प्यार  में  पाई  सजन  जब वफ़ा हमने 
गिला शिकवा न कोई  ज़िन्दगी तुमसे

रेखा जोशी 

Friday, 11 March 2016

जाम से जाम टकराते रहे


जाम  से जाम  टकराते  रहे
महफ़िलें पी  कर सजाते रहे
भूल जाते मधुशाला  आकर
सच जीवन का दफनाते रहे
 रेखा जोशी

आँगन में तुलसी महकने लगी


बाती  दिये की  अब  जलने लगी
घंटियाँ   मंदिर   की  बजने लगी
जल अर्पण कर  रोज पूजा  करूँ
आँगन  में तुलसी महकने लगी

रेखा जोशी

Thursday, 10 March 2016

मचा रहे उंत्पात आज बंदर यहाँ

चहकते   थे  पँछी    जहाँ  शाम  सवेरे
नाचते   थे   मोर   रंगीं    पँख   बिखेरे
मचा   रहे   उंत्पात   आज  बंदर  यहाँ
किसकी नज़र लगी गुलसिताँ  को मेरे

 रेखा जोशी

ज़िंदगी तुम बहार बन आओ



प्यार में गीत गुनगुनाते है 
आज साजन  हमे  रिझाते है 
... 
ज़िंदगी तुम  बहार बन आओ 
याद पल वह हसीन  आते है 
.... 
आशिकाना हुआ यहाँ  मौसम 
यह  नज़ारे  हमे  बुलाते  हैं 
.... 
आज छुप कर पिया चले आओ 
प्यार दिल में सजन बसाते है 
... 
मिल गया प्यार ज़िंदगी में जब  
प्रीत अपनी सदा निभाते है 

रेखा जोशी 











Wednesday, 9 March 2016

चाह हो जीवन में अगर कुछ पाने की


नही बिछे मिलते कभी  राहों में फूल
नहीं देंगे  आने  कभी सपनो पे  धूल
चाह हो जीवन में अगर कुछ पाने की
छूँ  लें    ऊँचाईयाँ  चाहे   मिलें   शूल

 रेखा जोशी

गूँज उठे तराने बुलबुल के उपवन में

,बार बार निहारती छवि आज दर्पण में 
गूँज  उठे  तराने  बुलबुल के उपवन में
पुष्पित  डालियाँ  भी  झूमने  लगी संग
जब  से आप  आये  हो  मेरे  जीवन में
रेखा जोशी 





Monday, 7 March 2016

अर्धांगिनी हूँ मै तुम्हारी[Happy Women's Day]

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर 

यूँही सदियों से
चल रही पीछे पीछे
बन परछाई तेरी
अर्धांगिनी हूँ मै तुम्हारी
पर क्या
समझा है तुमने
बन पाई मै कभी
आधा हिस्सा तुम्हारा
बहुत सहन कर चुकी
अब मत बांधो मुझे
मत करो मजबूर
इतना कि तोड़ दूँ
सब बंधन
मत कहना फिर तुम
विद्रोही हूँ मै
नही समझे तुम
मै तो बस अपना
हक़ मांग रही हूँ
तुम्हारी
अर्धांगिनी होने का
रेखा जोशी

प्यार में गीत गुनगुनाते है

आधार छन्द - लौकिक अनाम 

प्यार   में  गीत   गुनगुनाते  है 
आज  साजन   हमे   रिझाते  है 
मिल गया प्यार ज़िंदगी में जब  
प्रीत  अपनी   सदा   निभाते  है 

रेखा जोशी 

पूर्ण हो सभी कामनाएँ उनकी

हूँ बड़ा वटवृक्ष मै
खड़ा यहाँ सदियों से
बन द्रष्टादेख रहा
हर आते जाते मुसाफिर को
करते विश्राम कुछ पल यहाँ
और फिर चल पड़तें
अपनी मंज़िल की ओर
अक्सर यहाँ
आते  प्रेमी जोड़े
पलों में गुज़र जाते घण्टे
संग उनके
पूजा की थाली हाथों में लिए
कुमकुम लगा माथे पर मेरे
मंगल कामना करती
अपने सुहाग की
और मै
बन द्रष्टा मूक खड़ा
मन ही मन
करता प्रार्थना
परमपिता से
पूर्ण हो सभी
कामनाएँ उनकी

रेखा जोशी

Sunday, 6 March 2016

[महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें ]शायद मेरी आयु पूर्ण हो गई [पूर्व प्रकाशित रचना ]

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
शायद मेरी आयु  पूर्ण हो गई [पूर्व प्रकाशित रचना]

देहरादून की सुंदर घाटी में स्थित प्राचीन टपकेश्वर मन्दिर , शांत वातावरण और उस पावन स्थल के पीछे कल कल बहती अविरल पवित्र जल धारा, भगवान आशुतोष के इस निवास स्थल पर दूर दूर से ,आस्था और विशवास लिए ,पूजा अर्चना करने हजारो लाखों श्रदालु हर रोज़ अपना शीश उस परमेश्वर के आगे झुकाते है और मै इस पवित्र स्थान के द्वार पर सदियों से मूक खड़ा हर आने जाने वाले की श्रधा को नमन कर रहा हूँ |

लगभग पांच सौ साल से साक्षी बना मै वटवृक्ष इसी स्थान पर ज्यों का त्यों खड़ा हूँ |आज मेरी शाखाओं से लटकती ,इस धरती को नमन करती हुई ,मेरी लम्बी लम्बी जटायें जो समय के साथ साथ मेरा स्वरूप बदल रहीं है , मुझे अपना बचपन याद दिला रही है ,उस बीते हुए समय की,जब इस पवित्र भूमि का सीना चीर कर ,मै अंकुरित हुआ था ,अनगिनत आंधी तूफानों ,जेष्ठ आषाढ़ की तपती गर्मियों और सर्दियों की लम्बी ठंडी सुनसान रातों की सर्द हवाओं के थपेड़े सहते सहते मै आज भी वहीँ पर,चारो ओर ,अपनी लम्बी जड़ों के सहारे ,टहनियां फैलाये हर आने जाने वाले भक्तजन को ,चाहे तपती धूप हो यां बारिश हो ,कैसा भी मौसम हो ,उनको अपनी घनी शाखाओं की ठंडी छाया देता हुआ अटल सीना ताने खड़ा हूँ |

मैने माथे पर बिंदिया लगाये ,सजी धजी उन सुहागनों की पायल की झंकार के साथ वह हर एक पल जिया था जिन्होंने अपने सुहाग की दीर्घ आयु की कामना करते हुए भोले बाबा के इस मंदिरमें नतमस्तक होकर भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त किया था और आज भी पायल की सुरीली धुन पर अनगिनत सुंदर सजीले चेहरे मेरे सामने अपने आंचल में श्र्धाकुसुम लिए छम छम करती ‘ॐ नमः शिवाय ‘के उच्चारण से इस शांत स्थल को गुंजित कर मंदिर के भीतर जाने के लिए एक एक सीढ़ी उतरते हुए उस पभु ,जो देवों के देव महादेव है उनके चरणों में अर्पित कर अपनी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करने का आशीर्वाद लेते देख रहा हूँ |कोई नयी नवेली दुल्हन अपने पति संग ,अपनी होने वाली संतान की आस लिए और कोई अपने प्रियतम को पाने की आस लिए ,हर कोई अपने मन में कल्याण स्वरूप भगवान विश्वनाथ की छवि को संजोये उस प्राचीन मंदिर के पावन शिवलिंग पर टपकती बूंद बूंद जल के साथ दूध और जल अर्पित कर विश्वास और आस्था को सजीव होते हुए मै सदियों से देख रहा हूँ |

आज जब मै बूढ़ा हो रहा हूँ ,एक एक कर मेरी शाखाओं के हरेभरे पत्ते दूर हवा में उड़ने लगे है, और वह दिन दूर नही जब मै धीरे धीरे सिर्फ लकड़ी का एक ठूठ बन कर रह जाऊं गा और पता नही कब तक मे अपनी चारों तरफ फैलती जड़ों के सहारे जीवित रह सकूँ गा ,शायद अब मेरी आयु पूरी हो चली है लेकिन मुझे इस बात का गर्व है कि मैने अपनी जिंदगी के पांच सौ वर्ष इस पवित्र ,पावन प्राचीन शिवालय कि चौखट पर एक प्रहरी बन कर जिए है ,मेरा रोम रोम आभारी है उस परमपिता का जिन्होंने मुझे सदियों तक अपनी दया दृष्टि में रखा ,मुझे पूर्ण विशवास है कि सबका कल्याण करने वाले भोलेनाथ बाबा एक बार फिर से मुझे अपने चरणों में स्थान देने की असीम कृपा करेंगे
रेखा जोशी 

भोले भाले बाबा शिव शंकर त्रिपुरारी

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें

वंदन  करें  तेरा सुन  प्रभु  पुकार हमारी
जयजयकार  करें हम सब   भोले भंडारी
दीन हीन दुखियों  के तुम ही हो रखवाले
भोले  भाले  बाबा  शिव  शंकर  त्रिपुरारी

 रेखा जोशी 

Friday, 4 March 2016

ज़िंदगी लगे पीड़ा फिर कभी चले आओ

इंतज़ार करते उम्र भर कभी चले आओ  
राह हम निहारें उम्र भर कभी चले आओ
 ख्वाहिशें  हमारी  साजन  हुई  नहीं  पूरी 
ज़िंदगी  लगे पीड़ा फिर  कभी चले आओ
 रेखा जोशी 

आरक्षण की आग ने मचा दिया बवाल

आरक्षण की आग  ने मचा दिया  बवाल
आपसी   भाईचारे  को    किया    हलाल
जीवन  की  पटरी  से   उखड़ गये अपने
आक्रोश  से  उन  का  बुरा  हो गया हाल

रेखा जोशी 

बिखर कर खिलते फिर बाग़ में फूल


हुई   शाम आज रहा दिन ढल  यहाँ 
जी  उठेगी  ज़िंदगी  फिर  कल यहाँ 
बिखर कर खिलते फिर बाग़ में फूल 
चलता  रहता  जीवन  अविरल यहाँ

रेखा  जोशी 

Thursday, 3 March 2016

तुम निभाना साथ शिव शम्भू मेरा



जलती मन में प्रेम की ज्योति  रहे
मिले  तुमसे  सदा हमें  शक्ति रह
तुम निभाना साथ शिव शम्भू मेरा
चरणो  में  तेरे   सदा   भक्ति  रहे

रेखा जोशी

घर था कभी जो

यादें चिपकी हुई
उस जर्जर  मकान की
दीवारों से
ढह रहा जो
धीरे धीरे
घर था कभी जो
खिलखिलाती थी जहाँ
पीढ़ी दर पीढ़ी
न जाने कितनी
ज़िन्दगियाँ
याद दिलाती होली की
देख
इन पर पड़े लाल गुलाबी
रंगो  के कुछ छींटे
तस्वीर बसी आँखों में
उन ऊँचे बनेरों की 
जहाँ जगमगाई
थी कभी मोमबत्तियाँ
दीपावली की रात को
गूँजती थी जहाँ
बच्चों की किलकारियाँ
गम के आँसू भी
बहते रहे थे जहाँ
आज कैसे सूना सूना
बेरंग सा खड़ा
सिसकियाँ
भरता हुआ

रेखा जोशी

Wednesday, 2 March 2016

था भरता जो उन्मुक्त उड़ान आसमान पर


ढूँढ  रहा  कपोत अपनी प्रिया का प्रोफाइल
करना  शुरू  कर दिया  उसने  भी मोबाईल
था भरता जो उन्मुक्त उड़ान आसमान पर
देख मशीन को अब करता है  वह समाईल

रेखा जोशी 

रस छलकाते दुल्हन के बाँवरे नैना है

चंचल नैना दुल्हन के आँचल की ओट से
मुस्कुराता चाँद जैसे  बादल की  ओट से
रस  छलकाते  दुल्हन  के बाँवरे  नैना है
देखा अपने प्रियतम को पाये न चैना  है

 रेखा जोशी

Tuesday, 1 March 2016

फागुन आया री सखी चली हवायें

फागुन  आया री सखी चली  हवायें
फूल खिले अँगना सजना नहीं आयें
रह गये  सूने  सतरँगी   ख़्वाब  मेरे
पिया के बिना फूल मन के मुरझाये

रेखा जोशी 

उपवन में गुलाब आज महकने लगे


मेरे   अँगना  में  पँछी  चहकने लगे
नज़ारे  भी  आज  यहाँ  बहकने लगे
छाई    खूबसूरत   फूलों   की  बहार
उपवन में गुलाब आज महकने लगे

रेखा जोशी 

भारत के दुश्मन होश में आ जाओ तुम

मत ललकारना  तुम राष्ट्र  की एकता  को
करते  सलाम   हम  अपनी  राष्ट्रीयता को
भारत   के  दुश्मन   होश में आ जाओ तुम
टूटने   न   देंगे   देश   की  अखण्डता   को
जयहिन्द

रेखा जोशी