Thursday, 10 March 2016

मचा रहे उंत्पात आज बंदर यहाँ

चहकते   थे  पँछी    जहाँ  शाम  सवेरे
नाचते   थे   मोर   रंगीं    पँख   बिखेरे
मचा   रहे   उंत्पात   आज  बंदर  यहाँ
किसकी नज़र लगी गुलसिताँ  को मेरे

 रेखा जोशी

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