Friday, 4 March 2016
बिखर कर खिलते फिर बाग़ में फूल
हुई शाम आज रहा दिन ढल यहाँ
जी उठेगी ज़िंदगी फिर कल यहाँ
बिखर कर खिलते फिर बाग़ में फूल
चलता रहता जीवन अविरल यहाँ
रेखा जोशी
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