कल्पना की सीढ़ी पर
हो कर सवार
छू लिया आज सतरंगी
आसमान
खेलता छुपा छुपी
बादलों से कभी
बन मेघ कभी भिगो देता
आँचल धरा का
चुरा कर इन्द्रधनुष के
रँग कभी
सजाता मांग
अवनी की अपनी
कल्पना के सागर में
गोते लगाता
जमीं आसमान को
रंगीन बनाता
बरसाता ख़ुशी आसमान से
लहराती धरा पर
अमृत ले आता
रेखा जोशी
हो कर सवार
छू लिया आज सतरंगी
आसमान
खेलता छुपा छुपी
बादलों से कभी
बन मेघ कभी भिगो देता
आँचल धरा का
चुरा कर इन्द्रधनुष के
रँग कभी
सजाता मांग
अवनी की अपनी
कल्पना के सागर में
गोते लगाता
जमीं आसमान को
रंगीन बनाता
बरसाता ख़ुशी आसमान से
लहराती धरा पर
अमृत ले आता
रेखा जोशी
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