Tuesday, 23 August 2016

साहस

नीले नभ पर 
उड़ चले पंछी 
इक लम्बी उड़ान
संग साथी लिए 
निकल पड़े सब
तलाश में अपनी 
थी मंजिल अनजान 
अनदेखी राहों में
जब हुआ सामना
था भयंकर तूफ़ान
घिर गए चहुँ ओर से 
और फ़स गए वो सब
इक ऐसे चक्रव्यूह में 
अभिमन्यु की तरह 
निकलना था मुश्किल 
पर बुलंद हौंसलों ने 
कर दिया नवसंचार 
उन थके हारे पंखो में 
भर दी इक नयी ताकत 
उस कठिन घड़ी में 
मिलकर उन सब ने 
अपने पंखों के दम पे 
टकराने का तूफान से 
था साहस दिखलाया
अपने फडफडाते परों से
था तूफ़ान को हराया 
हिम्मत और जोश लिए
बढ़ चले वह फिर से
इक अनजान डगर पे 

रेखा जोशी 

No comments:

Post a Comment