Tuesday, 9 August 2016

उतर आई उषा मेरे द्वार

भर उठा नील नभ
अलौकिक आभा से 
शीतल पवन के झोंकों से 
सिहर उठा 
मेरा तन बदन 
सातवें आसमान से 
उतर रहा 
धीरे धीरे दिवाकर 
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर
पार सब करता हुआ
अलौकिक आभा से जिसकी
जगमगाने लगा 
सारा जहान  
थिरकने लगी अम्बर में
अरुण की रश्मियाँ
चमकी धूप सुनहरी सी
उतर आई उषा 
मेरे द्वार  
भोर ने दी दस्तक
स्फुरित हुआ मन
खिलखिलाने लगा 
मेरा आँगन 

रेखा जोशी 

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