भर उठा नील नभ
अलौकिक आभा से
शीतल पवन के झोंकों से
सिहर उठा
मेरा तन बदन
.
सातवें आसमान से
उतर रहा
धीरे धीरे दिवाकर
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर
पार सब करता हुआ
अलौकिक आभा से जिसकी
जगमगाने लगा
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर
पार सब करता हुआ
अलौकिक आभा से जिसकी
जगमगाने लगा
सारा जहान
.
थिरकने लगी अम्बर में
अरुण की रश्मियाँ
चमकी धूप सुनहरी सी
उतर आई उषा
अरुण की रश्मियाँ
चमकी धूप सुनहरी सी
उतर आई उषा
मेरे द्वार
भोर ने दी दस्तक
स्फुरित हुआ मन
खिलखिलाने लगा
स्फुरित हुआ मन
खिलखिलाने लगा
मेरा आँगन
रेखा जोशी
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