Wednesday, 3 August 2016

कर दो अवनी का आँचल हरा

श्वेत बादल
तुम नील नभ पर
आज तुम
क्यों खड़े हो अविचल
आओ रंग भर दूँ  गहरे
बना दूँ मै बदरा कारे कारे
दूर जोह  रहे बाट  तेरी
पुत्र  धरती के
तेरे दरस  को तरस रहे
है नैना उनके
अंर्तघट  तक  जहाँ
है प्यासी प्यासी धरा
उड़ जाओ संग पवन के
बरसा दो अपनी
अविरल जलधारा
तृप्त कर दो  धरा वहाँ
कर दो  अवनी  का
आँचल हरा
धरतीपुत्र को हर्षित कर
बिखेर दो खुशियाँ वहाँ

रेखा जोशी


No comments:

Post a Comment