श्वेत बादल
तुम नील नभ पर
आज तुम
क्यों खड़े हो अविचल
आओ रंग भर दूँ गहरे
बना दूँ मै बदरा कारे कारे
दूर जोह रहे बाट तेरी
पुत्र धरती के
तेरे दरस को तरस रहे
है नैना उनके
अंर्तघट तक जहाँ
है प्यासी प्यासी धरा
उड़ जाओ संग पवन के
बरसा दो अपनी
अविरल जलधारा
तृप्त कर दो धरा वहाँ
कर दो अवनी का
आँचल हरा
धरतीपुत्र को हर्षित कर
बिखेर दो खुशियाँ वहाँ
रेखा जोशी
तुम नील नभ पर
आज तुम
क्यों खड़े हो अविचल
आओ रंग भर दूँ गहरे
बना दूँ मै बदरा कारे कारे
दूर जोह रहे बाट तेरी
पुत्र धरती के
तेरे दरस को तरस रहे
है नैना उनके
अंर्तघट तक जहाँ
है प्यासी प्यासी धरा
उड़ जाओ संग पवन के
बरसा दो अपनी
अविरल जलधारा
तृप्त कर दो धरा वहाँ
कर दो अवनी का
आँचल हरा
धरतीपुत्र को हर्षित कर
बिखेर दो खुशियाँ वहाँ
रेखा जोशी
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