कैसे प्रभाषित करूँ
प्रेम अपना
नही तोड़ सकता
आसमान के तारे
न ही पास अपने
अम्बार दौलत के
देखता हूँ जब भी
तुम्हे मुस्कुराते
खिल उठता दिल मेरा
तड़प उठता मन मेरा
देख नम आँखे तेरी
तुम्हारा
हॅंसना खिलखिलाना
महका देता अँगना मेरा
गुलाब की
खुश्बू से जिसके
है भर जाता
अंग अंग मेरा
लेकिन रहती
ज़ुबान
खामोश मेरी
तुम ही बताओ
कैसे प्रभाषित करूँ
प्रेम अपना
रेखा जोशी
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