Wednesday, 12 August 2015

जान अपनी वार दी हमने मगर

मुश्किलें आती यहाँ पर आम है 
ज़िंदगी  जीना  इधर  संग्राम है 
.... 
ढूँढ़ते हम तो रहे तुम्हे  सनम 
ज़िंदगी की आ गई अब शाम है 
… 
रात भर जलता रहा दीपक यहाँ 
भोर ने रौशन किया फिर धाम है 
.... 
मिट चुके है प्यार में जब  फ़ासले 
मत लगाना तुम सजन इल्जाम है 
.... 
जान अपनी वार दी हमने मगर 
हम रहे फिर प्यार में नाकाम है 

रेखा जोशी 

No comments:

Post a Comment