Saturday 15 August 2015

रह जाये गा सब कुछ यहीं पर इक दिन

किस बात का गरूर बंदे तू करता है 
चार दिन की चांदनी पर इठलाता है 
रह जाये गा सब कुछ यहीं पर इक दिन 
जब यहाँ से प्राण पखेरू हो जाता है


रेखा जोशी 

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