धूप यहाँ फिसलती जा रही है
दिन ढलते ही चली जा रही है
बगिया से फिसलती दीवार पे
देख धूप सिमटती जा रही है
महकता था चमन जहाँ प्यार से
महक प्यार की चली जा रही है
न समझ पाये मुझे तुम कभी भी
तड़प अब बढ़ती ही जा रही है
कब तक निहारें हम राह तेरी
हवा रुख बदलती जा रही है
रेखा जोशी
दिन ढलते ही चली जा रही है
बगिया से फिसलती दीवार पे
देख धूप सिमटती जा रही है
महकता था चमन जहाँ प्यार से
महक प्यार की चली जा रही है
न समझ पाये मुझे तुम कभी भी
तड़प अब बढ़ती ही जा रही है
कब तक निहारें हम राह तेरी
हवा रुख बदलती जा रही है
रेखा जोशी
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