मन ,जी हाँ मन ,एक स्थान पर टिकता ही नही पल में यहाँ तो अगले ही पल न जाने कितनी दूर पहुंच जाता है ,हर वक्त भिन्न भिन्न विचारों की उथल पुथल में उलझा रहता है ,भटकता रहता है यहाँ से वहाँ और न जाने कहाँ कहाँ ,यह विचार ही तो है जो पहले मनुष्य के मन में उठते है फिर उसे ले जाते है कर्मक्षेत्र की ओर । जो भी मानव सोचता है उसके अनुरूप ही कर्म करता है ,तभी तो कहते है अपनी सोच सदा सकारात्मक रखो ,जी हां ,हमें मन में उठ रहे अपने विचारों को देखना आना चाहिए ,कौन से विचार मन में आ रहे है और हमे वह किस दिशा की ओर ले जा रहे है ,कहते है मन जीते जग जीत ,मन के हारे हार ,यह मन ही तो है जो आपको ज़िंदगी में सफल और असफल बनाता है ।
ज़िंदगी का दूसरा नाम संघर्ष है ,हर किसी की ज़िंदगी में उतार चढ़ाव आते रहते है लेकिन जब परेशानियों से इंसान घिर जाता है तब कई बार वह हिम्मत हार जाता है ,उसके मन का विशवास डगमगा जाता है और घबरा कर वह सहारा ढूँढने लगता है ,ऐसा ही कुछ हुआ था सुमित के साथ जब अपने व्यापार में ईमानदारी की राह पर चलने से उसे मुहं की खानी पड़ी ,ज़िंदगी में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने की जगह वह नीचे लुढ़कने लगा ,व्यापार में उसका सारा रुपया डूब गया ,ऐसी स्थिति में उसकी बुद्धि ने भी सोचना छोड़ दिया ,वह भूल गया कि कोई उसका फायदा भी उठा सकता ,खुद पर विशवास न करते हुए ज्योतिषों और तांत्रिकों के जाल में फंस गया ।
जब किसी का मन कमज़ोर होता है वह तभी सहारा तलाशता है ,वह अपने मन की शक्ति को नही पहचान पाता और भटक जाता है अंधविश्वास की गलियों में । ऐसा भी देखा गया है जब हम कोई अंगूठी पहनते है याँ ईश्वर की प्रार्थना ,पूजा अर्चना करते है तब ऐसा लगता है जैसे हमारे ऊपर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है लेकिन यह हमारे अपने मन का ही विशवास होता है । मन ही देवता मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोई ,अगर मन में हो विशवास तब हम कठिन से कठिन चुनौती का भी सामना कर सकते है |
क्यों न हम नववर्ष पर यह संकल्प लें और अपने मन को ऊपर उठाने वाले शुभ विचार दें , । शांत मन से अपने अंतस की आवाज को सुनते हुए से शुभ कर्म करते जाएँ | इस नववर्ष पर मैने अटल संकल्प लिया है कि मै अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनते हुए मन को ऊपर उठाने वाले शुभ विचारऔर सदा शुभ कर्म करती रहूँ गी|
व्यथित मन
देख बुढ़ापा
चेहरे की झुरियों
में छिपा संघर्ष
जीवन का
सफर कितना था सुहाना
बचपन जवानी का
कर देता असहाय
कितना
यह बुढ़ापा
तड़पता है मन
धुंधला जाती आँखे
पल पल
क्षीण होती काया
मौत से पहले
कई बार है मरता
मन
गुज़रते है दिन
सिर्फ
इंतज़ार में मौत की
यह गीतों की माला गुंथन को
मै सुन्दर से सुन्दर फूल चुनूं
इक इक की मै परखूँ खुश्बू को
औ हर इक फूल सजा कर देखूं
यह गीतों की माला गूँथ रहा
मै रंग बिरंगे फूल सजाऊं
पर है न मिला वह मै खोज रहा
जिस को अब यह माला पहनाऊँ
उत्तर जाऊं दिखे दक्षिण में
और मै फिर दक्षिण को जाऊं
मै पूरब घूमूं फिर पश्चिम में
वह आगे औ मै पीछे जाऊं
इक दिन वह थक कर हारेगा
माला यह मेरी स्वीकारे गा
लाल लिबास टोपी पहन कर
प्यारे बच्चों को देने उपहार
बड़े दिन की थी वह सर्द रात
निकल पड़ा वह घर से बाहर
सुंदर तोहफों को झोली में भर
था सब का प्यारा सांताक्लाज
चुपके से रखता जाता हर घर
सुंदर सुंदर से बढ़िया उपहार
थी ठंडी सर्द वह बर्फीली रात
फुटपाथ पर सोया इक बालक
हैरान था सांताक्लाज उसे देख
वह रहा सिकुड़ थी शीत लहर
झोली से निकाला इक कम्बल
चुपके से ओढ़ा उस बच्चे पर
पाया उसने सुखद अहसास
था सब से बढ़िया वह उपहार
था सब से बढ़िया वह उपहार
गिरती उठती लहरें
सागर की
शोर मचाती
आती पग चूमती
साहिल का
फिर लौट जाती
चमक रही सीने पर
अरुण की सुनहरी रश्मियाँ
असीमित नीर
समेटे अपने में
अथाह शक्ति फिर भी
है शांत विस्तृत सागर
तूफ़ान छुपाये
अपने सीने में
बेटी
भारत की
कर गई
ज़ख्मी
पूरे देश को
थी वह
निर्भया
रही
संघर्षरत
हार गई
जंग जीवन की
कानून बदले
हालात बदले
लेकिन
नही बदली
मानसिकता
नही
बचा पाती
अस्मिता
अभी भी
झेल रही
कहीं
तेज़ाबी हमले
हो रही
शिकार कहीं
खूंखार
दरिंदो का
झेल रही
पीड़ा
जी रही
अभी भी
अपमानित
घुटन भरी
ज़िंदगी
आगोश
अपने में
ले रही
मौत
हर पल
अब
जो है
पल
मिट रहा
जा चुका
वह
काल में
आ रहा
फिर
नव पल
तैयार है
मिटने को
वह पल
पल पल
मिट रही
यह ज़िंदगी
है जो
अपना
बस यही
इक पल
कर ले
पूरी
सभी चाहते
बस
इसी में
इक पल
संवार
सकता है
जीवन
बस
यही
इक पल
सदियों से
खड़ा हूँ मै
दूर दूर तक
फैल चुकी
शाखाएँ मेरी
देता आश्रय
थके हारे
पथिकों को
सुबह शाम
चहचहाते
अनेक परिंदे
बनाते नीड़
मेरी घनी
टहनियों पर
सदियों से
देख रहा हूँ
आती जाती
अनेक
ज़िंदगियाँ
मै वृक्ष हूँ
बरगद का
अमित अपने पर झल्ला उठा ,''मालूम नहीं मै अपना सामान खुद ही रख कर क्यों भूल जाता हूँ ,पता नही इस घर के लोग भी कैसे कैसे है ,मेरा सारा सामान उठा कर इधर उधर पटक देते है ,बौखला कर उसने अपनी धर्मपत्नी को आवाज़ दी ,''मीता सुनती हो ,मैने अपनी एक ज़रूरी फाईल यहाँ मेज़ पर रखी थी ,एक घंटे से ढूँढ रहा हूँ ,कहाँ उठा कर रख दी तुमने ?गुस्से में दांत भींच कर अमित चिल्ला कर बोला ,''प्लीज़ मेरी चीज़ों को मत छेड़ा करो ,कितनी बार कहा है तुम्हे ,''अमित के ऊँचे स्वर सुनते ही मीता के दिल की धड़कने तेज़ हो गई ,कहीं इसी बात को ले कर गर्मागर्मी न हो जाये इसलिए वह भागी भागी आई और मेज़ पर रखे सामान को उलट पुलट कर अमित की फाईल खोजने लगी ,जैसे ही उसने मेज़ पर रखा अमित का ब्रीफकेस उठाया उसके नीचे रखी हुई फाईल झाँकने लगी ,मीता ने मेज़ से फाईल उठाते हुए अमित की तरफ देखा ,चुपचाप मीता के हाथ से फाईल ली और दूसरे कमरे में चला गया ।
अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब हमारी इच्छानुसार कोई कार्य नही हो पाता तब क्रोध एवं आक्रोश का पैदा होंना सम्भाविक है ,याँ छोटी छोटी बातों याँ विचारों में मतभेद होने से भी क्रोध आ ही जाता है |यह केवल अमित के साथ ही नही हम सभी के साथ आये दिन होता रहता है | ऐसा भी देखा गया है जो व्यक्ति हमारे बहुत करीब होते है अक्सर वही लोग अत्यधिक हमारे क्रोध का निशाना बनते है और क्रोध के चलते सबसे अधिक दुःख भी हम उन्ही को पहुँचाते है ,अगर हम अपने क्रोध पर काबू नही कर पाते तब रिश्तों में कड़वाहट तो आयेगी ही लेकिन यह हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत को भी क्षतिगरस्त करता है ,अगर विज्ञान की भाषा में कहें तो इलेक्ट्रोइंसेफलीजिया [ई ई जी] द्वारा दिमाग की इलेक्ट्रल एक्टिविटी यानिकि मस्तिष्क में उठ रही तरंगों को मापा जा सकता है ,क्रोध की स्थिति में यह तरंगे अधिक मात्रा में बढ़ जाती है | जब कोई व्यक्ति पूरी तरह से अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है तब मस्तिष्क तरंगे बहुत ही अधिक मात्रा में बढ़ जाती है और चिकित्सक उसे पागल करार कर देते है | क्रोध भी क्षणिक पागलपन की स्थिति जैसा है जिसमे व्यक्ति अपने होश खो बैठता है और अपने ही हाथों से जुर्म तक कर बैठता है और वह व्यक्ति अपनी बाक़ी सारी उम्र पछतावे की अग्नि में जलता रहता है ,तभी तो कहते है कि क्रोध मूर्खता से शुरू हो कर पश्चाताप पर खत्म होता है |
मीता की समझ में आ गया कि क्रोध करने से कुछ भी हासिल नही होता उलटा नुक्सान ही होता है , उसने कुर्सी पर बैठ कर लम्बी लम्बी साँसे ली और एक गिलास पानी पिया और फिर आँखे बंद कर अपने मस्तिष्क में उठ रहे तनाव को दूर करने की कोशिश करने लगी ,कुछ देर बाद वह उठी और एक गिलास पानी का भरकर मुस्कुराते हुए अमित के हाथ में थमा दिया ,दोनों की आँखों से आँखे मिली और होंठ मुस्कुरा उठे
खेल रहे है मिलजुल कर इस बगिया में नन्हे मुन्ने फूल मेरे आंगन के मस्त मस्त झूल रहें डाली डाली पे हर्षित हो रहा है मन देख कर उन्हें भाग रहे उड़ती तितलियों को पकड़ने फूलों के संग संग कभी मुस्कुराते मेरे घर आंगन में खेलते बच्चे चम्पा चमेली गुलाब सा महका रहे
सुबह सुबह
ठिठुरती
सर्दी
कूड़े का
ढेर
बीनता
सपने
टुकड़ों में
फलों के
रोटी के
नही सोऊँगा
खाली पेट
सिर पर
होगी छत
कह रहा वो
मांगता वोट
दे दूँगा
जीते हारे
बला से
सपना
सच हो
मेरा
ढूँढ रहीं
इक मंदिर
होती है
पूजा जहाँ
तुम्हारी
वह स्थान
जो जोड़े
इक दूजे को
धर्म हो
जहाँ
मानवता
जहाँ
मानव का
मानव से
हो प्यार
न हो
टकराव
उत्थान
हो जहाँ
मानवता का
ढूँढ रहीं
वह मंदिर
नारी जीवन
ममता की मूरत
लुटाती प्रेम
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बन कर माँ
पालन करती है
इस जग का
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
भार्या बनती
कदम कदम है
साथ निभाती
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
औरत एक
है ममता लुटाती
रूप अनेक
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सूना आँगन
जो नही महकता
बिन बिटिया
खूबसूरत थी जिन्दगी जब हाथो में हाथ था तुम्हारा
खूबसूरत थी जिंदगी जब प्यार भरा साथ था तुम्हारा
दे कर दर्द कहाँ चले गए हमे अपनी यादों में छोड़ के
पाते है हम चैन औ सुकून ख्याल आता है जब तुम्हारा
संघर्ष है
यह ज़िंदगी
कब गुज़रा
बचपन
याद नही
आया
होश
जब से
तभी से
भाग
रहा हूँ
संजों
रहा हूँ
खुशियाँ
सब के
लिए
थे अपने
कुछ
थे पराये
आज
निस्तेज
बिस्तर पर
पड़ा देख
रहा हूँ
समझ
रहा हूँ
अपनों को
और
परायों को
था कल भी
और
हूँ आज भी
संघर्षरत
तन्हा
सिर्फ
तन्हा
सुबह सुबह अखबार खोला तो निगाह पड़ी एक छोटी सी खबर ,''आत्महत्या के आंकड़ों पर ,जिसमे एक वर्ष में भारत में अस्सी हज़ार पुरुष और चालीस हज़ार महिलायों द्वारा आत्महत्या का उल्लेख था '',पढ़ते ही मन खिन्न और उदास सा हो गया। आखिर क्यों करते है लोग आत्म हत्या ,कोई कैसे अपनी ज़िंदगी को समाप्त कर देता है ?
हम सब जानते है कि अपने प्राण सबको प्यारे होते है ,हर कोई एक खुशहाल ज़िंदगी जीना चाहता है ,आखिर फिर कौन सी मजबूरी में इंसान ऐसा घिर जाता है या कौन सा ऐसा दुखों का पहाड़ उस पर टूट जाता है कि उसके सामने ज़िंदगी के कोई मायने नही रह जाते और वह बेबस हो कर मौत को गले लगा लेता है ,यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते है ,अपने ही हाथों अपनी ज़िंदगी को मिटा देना ,आखिर क्या चल रहा होता है उस व्यक्ति के अंतर्मन में उस समय जो उसे खुद को ही मिटा देने पर मज़बूर कर देता है l
जिंदगी माना की चुनौतियों से भरी हुई है और कई बार हम चुनौतियों से निपटने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं, जीवन की कठिनाइयों को झेल नहीं पाते और खुद को मौत के हवाले कर देते हैं, लेकिन अगर उन कमज़ोर लम्हों में अपनी सोच को सकारात्मक दिशा दें और चुनौतियों से जूझने का रास्ता ढूंढने की कोशिश करें तो उन हताश पलों से निकला जा सकता है l
महाकाल ने जब जब भी है रौद्र रूप धरा, था भस्म हुआ सब कुछ जब खुला नेत्र तीसरा। पिघल जाते पत्थर भी धधक रही ज्वाला में बिगड़े गा क्रोधाग्नि से सुन्दर रूप तेरा रेखा जोशी
लालच की अन्धी दौड़ ,एक कमरे वाले को दो चाहिए ,कोठियों ,फ़ार्म हाउसिज़ के मालिकों की निगाहें मुकेश अंबानी पर है | उसका दोस्त हवाई जहाज में सफर कर सकता है तो वो क्यों नही है, ,दीन ईमान को ताक पे रख कर ,चाहिए पैसा, काला हो यां सफ़ेद उफ़ लालच ,भ्रष्टाचार की जड़ ,फैलती जा रही है खरपतवार जैसे ,सींच दिया इसने देश में कई घोटालों को :,देश खोखला हो तो हो ,लालच के अंधों को कोई सरोकार नही|
प्यारे बच्चो मै आप सब से एक सवाल पूछती हूँ ,क्या तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुआ है कि गलती तुम्हारे किसी छोटे भाई बहन से हुई हो और उसकी सजा तुम्हे मिली हो ? ,अगर किसी को ऐसी सजा मिली हो तो उसे कितना गुस्सा आया होगा ,मै इसे खूब समझ सकती हूँ ,जब मै छोटी थी बात तब की है ।
दिवाली से पूर्व जब घर में सफेदी और रंगाई पुताई का काम चल रहा था ,मेरे मम्मी पापा कुछ जरूरी काम से घर से बाहर गए हुए थे ,पूरे घर का सामान बाहर आँगन में बिखरा हुआ था ,घर के सभी कमरे लगभग खाली से थे और मेरे छोटे भाई बहन मस्ती में एक कमरे से दूसरे कमरे में छुपन छुपाई खेलते हुए इधर उधर शोर शराबा करते हुए भाग रहे थे,लेकिन मै सबसे बड़ी होने के नाते अपने आप को उनसे अलग कर लेती थी ,उन दिनों मुझे फ़िल्मी गीत सुनने का बहुत शौंक हुआ करता था ,बस जब भी समय मिलता मै रेडियो से चिपक कर गाने सुनने और गुनगुनाने लग जाती थी ,उस दिन भी मै रेडियो पर कान लगाये गुनगुना रही थी ,उस कमरे में सामान के नाम पर बस एक ड्रेसिंग टेबल और एक मेज़ पर रेडियो था जहां खड़े हो कर मै अपने भाई बहनों की भागम भाग से बेखबर मे संगीत की दुनिया में खोई हुई थी ,तभी बहुत जोर से धड़ाम की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया ,आँखे उठा कर देखा तो ड्रेसिंग टेबल फर्श पर गिर हुआ था और उस खूबसूरत आईने के अनगिनत छोटे छोटे टुकड़े पूरे फर्श पर बिखर हुए थे,वहां उसके पास खड़ी मेरी छोटी बहन रेनू जोर जोर से रो रही थी ,ऐसा दृश्य देख मेरा दिल भी जोर जोर से धडकने लगा था ,मै भी बुरी तरह से घबरा गई थी ,एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा कहीं रेनू को कोई चोट तो नही आई ,लेकिन नही वह भी बुरी तरह घबरा गई थी ,क्योकि वह खेलते खेलते ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुप गई थी और जैसे ही वह बाहर आई उसके कारण ड्रेसिंग टेबल का संतुलन बिगड़ गया और आईना फर्श पर गिर कर चकना चूर हो गया था ।
हम दोनों बहने डर के मारे वहां से भाग कर अपने नाना के घर जा कर दुबक कर बैठ गई ,जो कि हमारे घर के पास ही था ,कुछ ही समय बाद ही वहां पर हमारी मम्मी के फोन आने शुरू हो गए और फौरन हमे घर वापिस आने के लिए कहा गया ,मैने रेनू को वापिस घर चलने के लिए कहा परन्तु वह डरी हुई वहीं दुबकी बैठी रही ,बड़ी होने के नाते मुझे लगा कि हम कब तक छुप कर बैठे रहें गे ,हौंसला कर मै घर की और चल दी और मेरे पीछे पीछे रेनू भी घर आ गई । जैसे ही मैने घर के अंदर कदम रखा एक ज़ोरदार चांटा मेरे गाल पर पड़ा ,सामने मेरी मम्मी खड़ी थी । मै हैरानी से उनका मुहं देखती रह गई ,''यह क्या गलती रेनू ने की और पिटाई मेरी '' बहुत गुस्सा आया मुझे अपनी माँ पर । अब बताओ बच्चो मेरी माँ ने गलत किया न ,मुझे मालूम है तुम सब मेरे साथ हो ,मेरी मम्मी ने आखिर मुझे क्योकर मारा जबकि गलती मेरी छोटी बहन से हुई थी ,बहुत रोई थी उस दिन मै ।
आज जब भी मै पीछे मुड़ कर उस घटना को याद करती हूँ तो फर्श पर बिखरे वो आईने के टुकड़े मेरी आँखों के सामने तैरने लगते है और अब मै समझ सकती हूँ कि वह चांटा मेरी मम्मी ने मुझे मार कर मुझे मेरी ज़िम्मेदारी का मतलब समझाया था ,अपने मम्मी पापा की अनुपस्थिति में बड़ी होने के नाते मुझे अपने घर का ध्यान रखना चाहिए था ,मुझे अपनी बहन रेनू को ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुपने से रोकना चाहिए था । वह चांटा मुझे मेरी लापरवाही के कारण पड़ा था
होती है
पीड़ा
कितनी
जब
शूल से
चुभते है
पल कुछ
आते है
जीवन में
क्षण
ऐसे भी
जब छा
जाता है
तिमिर
चहुँ ओर
सूझती नही
कोई भी
राह
जब बन
जाते है
फूल भी
कांटे
चाह हो
उड़ने की
जब
पंख कट
जाते है
है दुःख
ही
दुःख
जीवन में
जलता है
हृदय
अपमानित
होता है
जब यहाँ
सत्य
सम्मानित
होता है
असत्य
कहलाता
मूर्ख
जब साधू
कठिन
होता है
जीना
शूल सा
कुछ
चुभता है
दिल में
जब बुराई
मनाती है
खुशियाँ
और
अच्छाई
रोती है
हाँ
दीप
हूँ मै
प्रज्वलित
हो कर
भरता
हूँ मै
उजाला
जहाँ
रहता हो
घना अँधेरा
रोशन कर
वहाँ
लाता हूँ
खुशियाँ
दीप
ज्ञान का
इक तुम
जलाओ
दीप्त कर
हर अज्ञानता
रोशन कर
लौ प्रेम की
ज्योति
जग में
फैलाओ
तुम
मेरे हो
यह
सोच कर
तुम्हे
चाहा
तुम्हे
अपनाया
तुम से
प्यार किया
बंदगी की
तुम्हारी
पर तुमने
न समझी
पीड़ा
इस दिल की
जाना
यही
है प्यार
इक फरेब
और
मुहब्ब्त
इक धोखा
है इसमें
बस
आँसूओं का
सौदा
१इस बात का सदा ध्यान रखें कि आपके घर के किसी भी नल से पानी बहना याँ टपकना नही चाहिए वह इसलिए कि पानी का बहने याँ टपकने से आपकी जेब हल्की हो सकती है ,अपने घर के सभी नल ठीक करवा ले | २ अगर आपका व्यवसाय होटल याँ भोजन ,भोजन सामग्री के साथ जुड़ा हुआ है तो वहां का प्रवेश दुवार का मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए | ३ अगर आपका व्यवसाय मनोरंजन याँ खेलकूद से जुड़ा हुआ है तो वहां के मुख्य प्रवेश दुवार का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए ४ अन्य व्यवसायों के लिए प्रवेश दुवार का मुख उत्तर दिशा में शुभ माना जाता है | ५ अपने घर का कीमती समान ओर तिन्जोरी ऐसी अलमारी में रखे जो सदा पश्चिम याँ दक्षिण की दीवार की तरफ लगी होनी चाहिए ताकि उसके दरवाज़े खुले वह पूर्व याँ उत्तर दिशा की तरफ खुले
वह अपने हाथों की लकीरो को बदल देते है जो मेहनत को ही अपना नसीब बना लेते है छोड़ जाते है वह वक्त की धारा को भी पीछे वैभव और समृद्धि उनके अंक में खेलते है
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें रौशन हुआ शहर दीप सब जगह जलते है फुलझड़ी कहीं तो पटाखे कहीं चलते है शुभकामनाएँ दीपावली की मित्रजनो को खुशियों के मेले आज हर जगह लगते है