Monday, 26 September 2016

न जाने कब ज़िन्दगी की शाम हो जाये

ज़िन्दगी अपनी यूँही तमाम हो जाये
ख़्वाब न कहीं तेरे नाकाम हो जायें
कर ले यहाँ पूरी सभी हसरते अपनी
न जाने कब ज़िन्दगी की शाम हो जाये
,
चलो ज़िंदगी का अब कर लें दीदार
जी लें हर लम्हा  जीत मिले या हार
आगे आगे हम  पीछे चलती मौत
न जाने कब छोड़ कर चल दें संसार

रेखा जोशी

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