मिल जायें दो किनारे यह कभी सम्भव नहीं गगन को धरती छू ले यह कभी सम्भव नहीं रेल की पटरी सा जीवन हमारा है यहां संग संग चलते हम मिलन कभी सम्भव नहीं
रेखा जोशी
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