Saturday, 25 February 2017

फागुन


 है खिल खिल गये उपवन महकाते संसार
 फूलों  से  लदे  गुच्छे   लहराते  डार   डार
सज रही रँग बिरँगी पुष्पित सुंदर  वाटिका
भँवरें  अब   पुष्पों  पर  मंडराते  बार  बार
......
छाई   चहुँ   ओर  बहार  ही  बहार  है
महकता चमन भी अपना गुलज़ार है
छलकती खुशियाँ अब आँगन  में मेरे
चलती फागुन की जब मस्त बयार है

रेखा जोशी

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