है खिल खिल गये उपवन महकाते संसार
फूलों से लदे गुच्छे लहराते डार डार
सज रही रँग बिरँगी पुष्पित सुंदर वाटिका
भँवरें अब पुष्पों पर मंडराते बार बार
......
छाई चहुँ ओर बहार ही बहार है
महकता चमन भी अपना गुलज़ार है
छलकती खुशियाँ अब आँगन में मेरे
चलती फागुन की जब मस्त बयार है
रेखा जोशी
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