उड़ायें गे पतंग लिये हाथ में डोर
मुस्कुराया बसन्त गली गली में शोर
उड़ें गी उमंगे छू लेंगी आसमान
लहरायें गगन में चले न कोई ज़ोर
,
गुलाबों का मौसम आया बगिया में बहार
है कुहकती कोयलिया अब अंबुआ की डार
हर्षौल्लास से थिरकते झूम रहे आज सब
है मदमस्त चल रही यहाँ फागुन की बयार
रेखा जोशी
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