जिंन्दगी के हर मोड़ पर हम चले थे हमसफर छोड़ कर तुम हमें अकेला अब चले गये किधर विरह की यह पीर अब साजन किसे हम बताये कोई नही अब संगी साथी सूनी ये डगर
रेखा जोशी
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