शायद मेरी आयु पूर्ण हो गई
देहरादून की सुंदर घाटी में स्थित प्राचीन टपकेश्वर मन्दिर , शांत वातावरण और उस पावन स्थल के पीछे कल कल बहती अविरल पवित्र जल धारा, भगवान आशुतोष के इस निवास स्थल पर दूर दूर से ,आस्था और विश्वास लिए ,पूजा अर्चना करने हजारो लाखों श्रदालु हर रोज़ अपना शीश उस परमेश्वर के आगे झुकाते है और मै इस पवित्र स्थान के द्वार पर सदियों से मूक खड़ा हर आने जाने वाले की श्रधा को नमन कर रहा हूँ |लगभग पांच सौ साल से साक्षी बना मै वटवृक्ष इसी स्थान पर ज्यों का त्यों खड़ा हूँ ।
|आज मेरी शाखाओं से लटकती ,इस धरती को नमन करती हुई ,मेरी लम्बी लम्बी जटायें जो समय के साथ साथ मेरा स्वरूप बदल रहीं है , मुझे अपना बचपन याद दिला रही है ,उस बीते हुए समय की,जब इस पवित्र भूमि का सीना चीर कर ,मै अंकुरित हुआ था ,अनगिनत आंधी तूफानों ,जेष्ठ आषाढ़ की तपती गर्मियों और सर्दियों की लम्बी ठंडी सुनसान रातों की सर्द हवाओं के थपेड़े सहते सहते मै आज भी वहीँ पर,चारो ओर ,अपनी लम्बी जड़ों के सहारे ,टहनियां फैलाये हर आने जाने वाले भक्तजन को ,चाहे तपती धूप हो या बारिश हो ,कैसा भी मौसम हो ,उनको अपनी घनी शाखाओं की ठंडी छाया देता हुआ अटल सीना ताने खड़ा हूँ |
मैने माथे पर बिंदिया लगाये ,सजी धजी उन सुहागनों की पायल की झंकार के साथ वह हर एक पल जिया था जिन्होंने अपने सुहाग की दीर्घ आयु की कामना करते हुए भोले बाबा के इस मंदिरमें नतमस्तक होकर भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त किया था और आज भी पायल की सुरीली धुन पर अनगिनत सुंदर सजीले चेहरे मेरे सामने अपने आंचल में श्र्धाकुसुम लिए छम छम करती 'ॐ नमः शिवाय 'के उच्चारण से इस शांत स्थल को गुंजित कर मंदिर के भीतर जाने के लिए एक एक सीढ़ी उतरते हुए उस पभु ,जो देवों के देव महादेव है उनके चरणों में अर्पित कर अपनी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करने का आशीर्वाद लेते देख रहा हूँ |कोई नयी नवेली दुल्हन अपने पति संग ,अपनी होने वाली संतान की आस लिए और कोई अपने प्रियतम को पाने की आस लिए ,हर कोई अपने मन में कल्याण स्वरूप भगवान विश्वनाथ की छवि को संजोये उस प्राचीन मंदिर के पावन शिवलिंग पर टपकती बूंद बूंद जल के साथ दूध और जल अर्पित कर विश्वास और आस्था को सजीव होते हुए मै सदियों से देख रहा हूँ |
आज जब मै बूढ़ा हो रहा हूँ ,एक एक कर मेरी शाखाओं के हरेभरे पत्ते दूर हवा में उड़ने लगे है, और वह दिन दूर नही जब मै धीरे धीरे सिर्फ लकड़ी का एक ठूठ बन कर रह जाऊं गा और पता नही कब तक मे अपनी चारों तरफ फैलती जड़ों के सहारे जीवित रह सकूँ गा ,शायद अब मेरी आयु पूरी हो चली है लेकिन मुझे इस बात का गर्व है कि मैने अपनी जिंदगी के पांच सौ वर्ष इस पवित्र ,पावन प्राचीन शिवालय कि चौखट पर एक प्रहरी बन कर जिए है ,मेरा रोम रोम आभारी है उस परमपिता का जिन्होंने मुझे सदियों तक अपनी दया दृष्टि में रखा ,मुझे पूर्ण विश्वास है कि सबका कल्याण करने वाले भोलेनाथ बाबा एक बार फिर से मुझे अपने चरणों में स्थान देने की असीम कृपा करेंगे |
रेखा जोशी
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