Wednesday, 30 September 2015

हम डूब रहे सागर में आन बचाओ

जीना प्रभु  लाचार हुआ राह दिखाओ 
मेरे  प्रभु तुम अपना अब हाथ बढ़ाओ 
… 
आशीष हमे दो प्रभु हम शीश झुकाते 
हे नाथ हमारे मन में आस जगाओ 
… 
संसार दुखों का घर उपकार करो तुम 
अब दीन दुखी को प्रभु तुम आप उठाओ 
.... 
माना तुम नैया सब की पार लगाते 
हम  डूब रहे सागर में आन बचाओ 
.... 
हम हाथ यहाँ जोड़ तुम्हे आज पुकारें 
विनती सुन गिरते जन को राम सँभालो 

रेखा जोशी 

अँजुली भर के बरसी बदरिया गगन से

लब  खामोश दिल की  ज़ुबाँ बनते आँसू
आये  न   पिया  आँखों   से  बहते  आँसू
अँजुली  भर के  बरसी  बदरिया गगन से
है    छलकते    नैना   नीर    भरते  आँसू

रेखा जोशी 

Tuesday, 29 September 2015

बड़े मियां दीवाने [मेरी पुरानी रचना ]

पिछले मास बाऊ जी ने सत्तर वर्ष पूरे कर लिए ,पूरे दस वर्ष  हो गये रिटायर्ड हुए लेकिन अफसर शाही का भूत अभी तक सर से नहीं उतरा \साठ वर्ष तक तो अपने पूरे स्टाफ को हमेशा एड़ियों के बल पर खड़े रखा ,और कान सदा 'येस सर ,येस सर 'सुनने के आदी हो चुके थे \बहुत मुश्किल हो गयी रिटायर्ड होने पर \अब किस पर अपना हुकुम चलायें ,पावर का नशा तो सर चढ़ कर बोलता है ,भला वो घर में चुप कैसे बैठ सकते थे \अपने आठ साल के पोते को  बाहर बरामदे में खेलते देख बाऊ जी की गरजती हुई आवाज़ ने पूरे घर की शांति को भंग कर दिया ,''बदमाश कहीं का सारा दिन बस खेलना ,छोड़ गेंद इधर आ ,मेरे पास ,मे तुम्हे पढाऊँ गा\जल्दी से आओ,गधा कहीं का जब देखो खेलने में लगे रहते हो ,तुमने स्कूल का काम पूरा किया है या नहीं \

दादा की रोबीली आवाज़ से डर कर उनका पोता झट से अपनी माँ के आँचल में छुप गया \वो छोटा बच्चा ही क्यों ,घर के सब सदस्य बाऊ जी को देख ऐसे कांपते थे मानो किसी आतंकवादी को देख लिया हो \उनकी रोबीली आवाज़ तो घर की चारदीवारी को भी चीरती हुई अड़ोसी पड़ोसियों के दिलों की धडकने भी तेज़ कर देती है \बाऊ जी की डांट फटकार सुन कर उनकी बड़ी बहू कमरे से ही बोली 'बाऊ जी यह इसका खेलने का समय है '\बहू के यह शब्द सुनते ही बाऊ जी का गुस्सा मानो सातवे आसमान को छूने लगा \वह पोते को छोड़ बहू को बुरा भला कहने लगे 'यह माएँ ही बच्चो को बिगाडती है ,ये नहीं समझती कि लड़कों को जीता खीँच कर रखो उतना ही अच्छा,मुझे क्या बड़े हो कर जब उनको परेशान करें गे तब इन्हें समझ आये गी \
 तभी बाऊ जी का छोटा बेटा कालेज से घर आ गया ,उसे देखते ही बाऊ जी का गुस्से का रुख उसकी ओर हो गया ,और आ गई उसकी शामत ,वह जोर से दहाड़ते हुए उस पर बरसने लगे ,'नालायक आदमी तुम्हे कुछ भी याद नहीं रहता है \उनका बेटा हतप्रभ सा बाऊ जी के मुहं कि तरफ देखने लगा और धीरे से बुदबुदाने लगा\ तभी कडकती हुई आवाज़ आई ,'बदतमीज़ ,मेरे से जुबान लडाता है तुम्हे कहा था ना कि मेरा कम्प्यूटर सही करना है ,लकिन नही ,हरामखोर ,मुफ्त कि रोटियां तोड़ते हो और ऊपर से बाप को गालियाँ देते हो '\ 'मैने आपको कब गाली दी 'अंदर ही अंदर बेटा तिलमिला उठा \ आवाज़ ऊँची करते हुए बाऊ जी चिल्ला पड़े 'हाँ ,हाँ तू दे मुझे गाली ,अभी पुलिस को बुलाता हूँ ,तुझे बालों से खींचते हुए जब ले के जाये गे ,तब तुम्हारी अक्ल ठिकाने आये गी \बस अब तो बेटे का सब्र का प्याला टूट चूका था \वह भी अब झगड़ने के मूड में आ चुका  था ,''बुलाओ ,बुलाओ पुलिस को' पूरे जोर शोर से उसने जवाब दिया ,''हमेशा धमकिया देते रहते हो ,अभी बुलाओ पुलिस को ''\
 बात बिगड़ते देख बाऊ जी की धर्मपत्नी भी जंग में कूद पड़ी ,''चुप रहो बेटा ,अपने पिता के आगे नहीं बोलते ,वह बड़े है ,कुछ तो लिहाज़ करो ',लेकिन बाऊ जी कब चुप होने वाले थे ,उल्टा अपनी पत्नी पर ही बरस पड़े ,'सब तुम्हारे लाड प्यार का नतीजा है ,जो हमारा घर बर्बाद हो रहा है ,तुमने पूरे घर को तबाह कर के रख दिया है \पत्नी हक्की बक्की  सी अपने पति का मुहं देखने लग गई \ वह आज सोचने पर मजबूर हो गई ,अपने ही बच्चों के पिता क्यों उन्हें अपना दुश्मन बना रहे है \यह तो अपने बच्चों से बहुत प्यार किया करते है फिर इनका व्यवहार ऐसा कैसे हो गया \ शायद यह उनके प्यार की मार है जो घर परिवार के हर सदस्य को रोज़ पडती है \ शायद वह अपने बच्चों में एक सम्पूर्णता देखना चाहते है जो उन्हें दिखाई नहीं देती या वह पुरुष का अहम है जो उनके हर रिश्ते में आड़े आता है \बाऊ जी की मानसिकता कुछ भी हो ,लेकिन उनका यह व्यवहार उन्हें अपनों से दूर जरूर ले  जा रहा है और वह इसे समझ नहीं पा रहे \ भावावेश में पत्नी का चेहरा आँसूओं  से भीग गया \ आखिरकर वह बोल ही पड़ी ,''काश कोई उन्हें समझा पाता,बड़े मियां दीवाने ऐसे न बनो '। 

रेखा जोशी 

श्राद कर हम याद उन्हें करते

करें अपने  पितरों का  सम्मान
है   मिली   हमें  उनसे  पहचान
श्राद  कर  हम  याद उन्हें करते
जो  सदा  हमारा  रखते  ध्यान

रेखा जोशी


महक रहा पुष्पित उपवन फूलों की डालियों से

कुहकती कोयलिया गीत मधुर वह गाती जाये
शीतल  पवन  गोरी  की  चुनरी लहराती  जाये
महक रहा पुष्पित उपवन फूलों की डालियों से
मिलने  असीम  सागर से नदी  बलखाती जाये

रेखा जोशी 

Monday, 28 September 2015

कुछ भी नही है ज़िंदगी में प्रेम प्रीती के सिवा

दीपक जला कर प्रेम का संदेश हम देंगे यहाँ 
इक दिन सभी जन प्रेम और'प्यार समझेंगे यहाँ 
कुछ भी नही है ज़िंदगी में प्रेम प्रीती के सिवा 
हम आज सबको प्यार से अपना बना लेंगे यहाँ 

रेखा जोशी 

चलता चल संगी साथी मिलें राह में

चलता  चल  संगी  साथी   मिलें  राह  में
रुकना  मत   तुम  हो  शूल  भले  राह  में
बैठ  जाना  मत  बीच  राह  थक हार तुम
मन में अगर विश्वास फूल खिलें राह में

रेखा जोशी 

Sunday, 27 September 2015

काश छोड़ा न होता घर अपना

दूर अपने घर से 
जाने कहाँ आ गया मै 
आँखे बिछाए बैठी होगी वह 
निहारती होगी रस्ता मेरा 
और मै 
पागल छोड़ आया उसे 
बीच राह पर 
खाई थी कसम 
सातों वचन निभाने की 
कैसे करूँ पश्चाताप 
तोड़ा दिल प्रियतमा का 
न निभा कर अपना वादा 
 हो जाती आँखें नम 
 आती जब याद उसकी 
 काश न छोड़ा होता 
अपना घर 

रेखा जोशी

उड़ना चाहूँ आसमान में पाँव पड़ी जंजीर

उड़ना चाहूँ आसमान  में पाँव पड़ी जंजीर 
जो चाहूँ वो न पाऊँ यह कैसी मेरी तकदीर 
रहे अधूरे सब सपने  देखे  जो  चाहतों  ने  
भाग्यविधाता लिखी क्यों मेरे भाग्य में पीर 

रेखा जोशी 

जीवन में जैसा करे गा वैसा ही भरे गा

मत कर तू  अभिमान  बंदे  जीवन  है   छलावा
करनी अपनी छुपा कर मत करना तुम दिखावा
जीवन   में   जैसा   करे गा  वैसा   ही    भरे  गा
पाये  सब  कर्मो  का  फल    काहे  का  पछतावा

रेखा जोशी

Friday, 25 September 2015

बिन तुम्हारे हम तो अकेले ही थे भले

कब  चाहा  तुम  आओ जीवन में हमारे
खुशियाँ तुम तो पाओ जीवन में तुम्हारे
बिन  तुम्हारे  हम  तो अकेले ही थे भले
नही  चाहिये  अब  तो जीवन  में  सहारे

रेखा जोशी 

Wednesday, 23 September 2015

न जाने कहाँ ले चले ज़िंदगी


निभाना यहाँ पर हमें प्यार है 
बनी  बीच में आज दीवार है 
… 
रहें हम सदा प्यार से सब यहाँ
सजन ज़िंदगी का यही सार है
....
न जाने कहाँ ले चले  ज़िंदगी
बिना प्यार जीना यहाँ भार है 
खता क्या हुई रूठ हमसे गये
हुई  ज़िंदगी आज बेज़ार है
....
उड़ाये पवन संग आँचल  यहाँ
सुनो प्यार की मधुर झंकार है

रेखा जोशी




छुपा के हर गम मुस्कुराहट में हमने

मिले  गम  हमें जाने के बाद तुम्हारे
यादों  में  रहे  सदा  आस पास हमारे 
छुपा के हर गम मुस्कुराहट में हमने 
जिये जा  रहे हम ले कर याद  सहारे 
रेखा जोशी

Tuesday, 22 September 2015

हो जीवन हमारा निर्मल जलधारा सा

बाँटे सभी को  प्यार जीवन  में हमारे
खुशियाँ आयें  हज़ार जीवन में हमारे
हो जीवन हमारा निर्मल जलधारा सा
न आये अब  ठहराव जीवन में हमारे

रेखा जोशी 

Monday, 21 September 2015

लिप्त हुआ देख पाप की दलदल में सारा संसार

जग भागे  दौलत के पीछे देख हास कर रहा हूँ
रिश्ते नाते छोड़ पीछे देख परिहास कर रहा हूँ
लिप्त हुआ देख पाप की दलदल  में सारा संसार
देख दीवानगी दुनिया की अट्टहास  कर रहा हूँ

रेखा  जोशी 

है मूरत वह तो ममता और दया की

है परिवार अपने   का  आधार  नारी
परिवार  अपने  से करती प्यार नारी
है मूरत वह तो  ममता और दया की
सदा  सम्मान पाने की हकदार नारी

रेखा जोशी

सागर मंथन से पाये दोनों गरल और सुधा

मोहिनी रूप  धरा  विष्णु  ने असुरों को रिझाया 
छल कर असुरों से अमृत देवताओं को  पिलाया 
सागर  मंथन  में  पाये  दोनों  गरल  और  सुधा 
धारण कर कंठ में विष शिव ने विश्व को बचाया 
रेखा जोशी 

कर रहे अभिनंदन नील नभ पर पंछी

ओस की बूँदों से है नहाया उपवन
स्वर्णिम उषाकिरणो ने सजाया गगन
कर रहे अभिनंदन नील नभ पर पंछी
भोर की शीतल पवन ने हर्षाया मन
रेखा जोशी

देख के सिंगार आलौकिक अनुपम

है  आँचल  में  उसके  चाँद सितारे
रश्मियाँ दिवाकर की छटा निखारे
देख के सिंगार आलौकिक अनुपम
मंत्र  मुग्ध  से  हम उसे  है  निहारें

रेखा जोशी

Sunday, 20 September 2015

गूँजती वादियों में आवाज़ गोलियों की

पर्वतों   के  खूबसूरत   नज़ारे   रो    दिये

बीज नफरत के यहां  पर किसने बो दिये

गूँजती  वादियों  में  आवाज़ गोलियों की

सहमें से बच्चों ने खिलौने अपने खो दिये

रेखा जोशी





क्षमा करें दिल से किसी को खुद पर करें उपकार [क्षमा वाणी दिवस पर ]

क्षमा वाणी दिवस पर 
आओ मिल कर ज़िंदगी में हम सबसे करें प्यार
हम जीवन  में अपनी गलतियों को करें स्वीकार  
हो जाती गलती किसी से  क्योकि हम है इंसान 
क्षमा करें दिल से किसी को खुद पर करें उपकार 

रेखा जोशी 

Friday, 18 September 2015

ज़िंदगी की शाम अब साजन महकनी चाहिये

ज़िंदगी   की  शाम अब साजन महकनी चाहिये
साज़ पर इक प्यार की धुन भी मचलनी चाहिये
जोश भर कर ज़िंदगी का अब मज़ा ले लो सजन
साथ  लहरें  भी  नदी  की  अब  उछलनी चाहिये

रेखा जोशी 

है जाना उस पार सभी को

कर रहे अठखेलिया
नील नभ पर
लहराते बादल
अरुण की
रश्मियों को चूमते
बन सेतु धरा गगन में
है खोल दिये ज्ञान चक्षु
एहसास  हुआ
लोक परलोक का
सीढ़ी दर सीढ़ी कर उत्थान
चैतन्य आत्मा का
है जाना उस पार सभी को
आज नहीं तो कल

रेखा जोशी


Thursday, 17 September 2015

फलता पुण्य ही अंत में


क्यों तुम यहाँ करते पाप
पाप  पुण्य  छोड़ते   छाप
फलता  पुण्य  ही अंत  में
फल  पाप का भरते आप

रेखा जोशी 

आओ करें स्वागत आशा और निराशा का

भोर होते ही
छुप जायेगा
वह चमकीला  सितारा
आसमान का
लीन  हो जायेगा
सूरज की सुनहरी  किरणों में
किस जीत का मना रहे जश्न
और रो रहे किस हार पर तुम
बसंत की मनाते  ख़ुशी या
पतझड़ का मनाते  शोक
रात दिन सुख दुःख तो
है जीवन का चक्र
है गुज़रना इस क्रम से
आशा और निराशा को
आओ करें  स्वागत
आशा और निराशा का
इस रंग बिरंगे
जीवन में

रेखा जोशी




इधर फूल महका रहे आज बगिया

नहीं तुम मिले मै गमन कर रहा हूँ 
यहाँ  रात में अब शयन कर रहा हूँ 
… 
न तस्वीर से ही मुलाकात होती 
मिलो सामने यह जतन कर रहा हूँ 
.... 
 पिरोये न शब्द' पठन कर रहा हूँ 
बहुत आस से मै सृजन कर रहा हूँ
.... 
मिलो गर कभी तुम सजन हम पुकारें 
तुझे आज पा लूँ मनन कर रहा हूँ 
.... 
इधर फूल महका रहे आज बगिया 
उधर शूल भी  सँग चुभन कर रहा हूँ 

रेखा जोशी 

Tuesday, 15 September 2015

साथ अपने है आज अपना मनोबल

जी  रहे   हम  दर्द   सीने  में छुपाये
इस  जहाँ  में  अपने  भी  हुये पराये
साथ अपने है आज अपना मनोबल
हौंसले    हमारे  से  जी  के  दिखायें

रेखा जोशी 

तमसो मा ज्योतिर्गमय--

मेरे पड़ोस में एक बहुत ही बुज़ुर्ग महिला रहती है ,उम्र लगभग अस्सी वर्ष होगी ,बहुत ही सुलझी हुई ,मैने न तो आज तक उन्हें किसी से लड़ते झगड़ते देखा  और न ही कभी किसी की चुगली या बुराई करते हुए सुना है ,हां उन्हें अक्सर पुस्तकों में खोये हुए अवश्य देखा है| गर्मियों के लम्बे दिनों की शुरुआत हो चुकी थी ,चिलचिलाती धूप में घर से बाहर निकलना मुश्किल सा हो गया था ,लेकिन एक दिन,भरी दोपहर के समय मै उनके घर गई और उनके यहाँ मैने एक छोटा सा  सुसज्जित  पुस्तकालय ,जिसमे करीने से रखी हुई अनेको पुस्तकें थी ,देखा  |उस अमूल्य निधि को देखते ही मेरे तन मन में प्रसन्नता की एक लहर दौड़ने लगी ,''आंटी आपके पास तो बहुत सी पुस्तके है ,क्या आपने यह सारी पढ़ रखी है,''मेरे  पूछने पर उन्होंने कहा,''नही बेटा ,मुझे पढने का शौंक है ,जहां से भी मुझे कोई अच्छी पुस्तक मिलती है मै खरीद लेती हूँ और जब भी मुझे समय मिलता है ,मै उसे पढ़ लेती हूँ ,पुस्तके पढने की तो कोई उम्र नही होती न ,दिल भी लगा रहता है और कुछ न कुछ नया सीखने को भी मिलता रहता है ,हम बाते कर ही रहे थे कि उनकी  बीस वर्षीय पोती हाथ में मुंशी प्रेमचन्द का उपन्यास' सेवा सदन' लिए हमारे बीच आ खड़ी हुई ,दादी क्या आपने यह पढ़ा है ?आपसी रिश्तों में उलझती भावनाओं को कितने अच्छे से लिखा है मुंशी जी ने |

आंटी जी और उनकी पोती में पुस्तकों को पढ़ने के इस जज़्बात को देख बहुत अच्छा लगा | अध्ययन करने के लिए उम्र की कोई सीमा नही है उसके लिए तो बस विषय में रूचि होनी चाहिए |मुझे महात्मा गांधी की  लिखी पंक्तियाँ याद आ गयी ,'' अच्छी पुस्तके मन के लिए साबुन का काम करती है ,''हमारा आचरण तो शुद्ध होता ही है ,हमारे चरित्र का भी निर्माण होने लगता है ,कोरा उपदेश या प्रवचन किसी को इतना प्रभावित नही कर पाते जितना अध्ययन या मनन करने से हम प्रभावित होते है ,कईबार महापुरुषों की जीवनियां पढने से हम भावलोक में विचरने लगते है  और कभी कभी तो ऐसा महसूस होने लगता है जैसे वह हमारे अंतरंग मित्र है |

अच्छी पुस्तकों के पास होने से हमें अपने प्रिय मित्रों के साथ न रहने की कमी नही खटकती |जितना हम अध्ययन करते है ,उतनी ही अधिक हमें उसकी विशेषताओं के बारे जानकारी मिलती है | हमारे ज्ञानवर्धन के साथ साथ अध्ययन से हमारा  मनोरंजन भी होता है |हमारे चहुंमुखी विकास और मानसिक क्षितिज के विस्तार के लिए अच्छी  पुस्तकों ,समाचार पत्र आदि का बहुत महत्वपूर्ण  योगदान है |ज्ञान की देवी सरस्वती की सच्ची आराधना ,उपासना ही हमे अज्ञान से ज्ञान की ओर ले कर जाती है |हमारी भारतीय संस्कृति के मूल धरोहर , एक उपनिषिद से लिए गए  मंत्र  ,''तमसो मा ज्योतिर्गमय   '',अर्थात हे प्रभु हमे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ,और अच्छी पुस्तकें हमारे ज्ञान चक्षु खोल हमारी बुद्धि में छाये अंधकार को मिटा देती है | इस समय मै अपनी पड़ोसन आंटी जी के घर के प्रकाश पुँज रूपी पुस्तकालय में खड़ी पुस्तको की उस अमूल्य निधि में से पुस्तक रूपी अनमोल रत्न की  खोज में लगी हुई थी ताकि गर्मियों की लम्बी दोपहर में मै  भी अपने घर पर बैठ कर आराम से उस अनमोल रत्न के प्रकाश से  अपनी बुद्धि को प्रकाशित कर सकूं |

रेखा जोशी 

खुशनसीब हूँ मिले तुम से दोस्त


दोस्ती  की  है  तो  निभाना दोस्तो

प्यार  अपने   से  महकाना  दोस्तों

हूँ  खुशनसीब  दोस्त मिले  तुम से

यह दिल दोस्ती का दिवाना दोस्तों

रेखा जोशी

प्यार अपने से तुम महकाना दोस्ती


बने  मीत  मेरे  तो  निभाना  दोस्ती

उपवन  के  फूलों सी खिलाना दोस्ती

चलो  दोस्तों  के अब  दोस्त बन जाये

 प्यार अपने  से तुम महकाना दोस्ती

रेखा जोशी 

Monday, 14 September 2015

खिल गई यह ज़िंदगी तुम जो मिले

जग  गया  संसार चिड़िया चहकती
खिल  गये है  फूल बगिया महकती 
खिल गई यह ज़िंदगी तुम जो मिले 
अब यहाँ फूलों भरी डालि'यां झुकती

रेखा जोशी 

करो तुम मेरा सम्मान हूँ मै भारत की शान

हुआ जख्मी
तन मन मेरा
गाते जब भारतवासी
अंग्रेजी के तराने
अपने ही देशवासियों ने
बना दिया मुझे
गरीबों की भाषा
ग्रस्त किया मुझे
हीन भावना से उन्होंने
उड़ाया उपहास मेरा
बड़े बड़े कार्यालयों में
भूल गये इतिहास तुम
था बाँधा  मैने सबको
आज़ादी  की लड़ाई में
उठाया है  ऊपर  मुझे
साहित्यकारों की कहानियों ने
करो तुम मेरा सम्मान
हूँ मै भारत की शान
हिन्द के माथे की हूँ बिंदी
नाम  मेरा है हिंदी

रेखा जोशी



Sunday, 13 September 2015

यह जलन तेरी राख कर देगी जला कर तुम्हे


 प्रेम  का  दीप  जलाओ  जब किसी से मिलते तुम
जलाओ मत  जिया देख कर किसी को फलते तुम
यह  जलन  तेरी  राख  कर  देगी  जला  कर  तुम्हे
हर्षा  लो  मन  देख  बगिया  में  फूल  खिलते  तुम

रेखा जोशी 

Saturday, 12 September 2015

विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई

विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई 
भारत की शान है हिंदी 

इस सदी के महानायक हिंदी फिल्मों के सरताज आदरणीय अमिताभ बच्चन जी की एक फिल्म नमक हलाल का एक संवाद था ,”आई केन टाक इंग्लिश ,आई केन वाक् इंग्लिश एंड आई केन लाफ इंग्लिश बिकाज़ इंग्लिश इज ए फन्नी लैग्वेज ,भैरो बिकम्स बायरन एंड बायरन बिकम्स भैरों ,देयर माइंड इज नैरो ” जी हाँ अच्छी टांग तोड़ अंग्रेजी बोली थी उन्होंने उस फिल्म में और ऐसी ही टूटी फूटी हास्यप्रद अंग्रेजी बोल कर हमारे ही देश भारत के वासी अपने पढ़े लिखे होने का सबूत देते है ,कितनी शर्म की बात है कि अपनी मातृ भाषा हिंदी में बात न कर के हम विदेशी भाषा बोल कर गर्व महसूस करते है,और ऐसा करने के लिए मजबूर हो जाते है हिंदी भाषी स्कूलों से शिक्षित हुए हमारे देश के कई युवावर्ग जो अपने आप को अंगेजी भाषा बोलने वालों के समक्ष हीन भावना से बचने की कोशिश में उपहास का पात्र बन जाते है ,जबकि हम सहजता से हिंदी में बोल कर अपनी बात को सरलता से अभिव्यक्त कर सकते है |
 क्या हमारी मानसिकता अभी भी अंग्रेजों की गुलाम बनी हुई है ?क्या पढ़े लिखे होने का अर्थ केवल अंग्रेजी का ज्ञान होना है ?क्या बुद्धिजीवी सिर्फ अंग्रेजी भाषी ही हो सकते है ?ऐसे कई अनगिनत प्रश्न है जो भारत की प्रगति के आड़े आ रहे है ,इसके लिए कौन दोषी है ?कब तक इस देश की विकलांग शिक्षा प्रणाली को हम घसीटते जाएँ गे ? क्या कभी हिंदी भाषी सरकारी स्कूलों में पढने वाले छात्रों और अंग्रेजी भाषी स्कूलों में पढने वाले छात्रों के बीच बढ़ती हुई खाई भर पाए गी ? हमारी शिक्षा प्रणाली में स्नातक होने के लिए छात्रों को अंग्रेजी विषय लेना और उसमे उतीर्ण होना आवश्यक है ,क्यों अंग्रेजी की तरह ही हिंदी भाषा को भी शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत मुख्यधारा में नही लाया जा सकता जबकि इस दुनिया का हर देश अपनी शिक्षा प्रणाली में अपने देश की भाषा को प्राथमिकता देते है ,जैसा की रूस में शिक्षा ग्रहण करने के लिए रूसी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है और ,चीन में शिक्षा लेने के लिए चीनी भाषा आनी चाहिए तो भारत में हिंदी को क्यों नही प्राथमिकता दी जाती ?जब तक हमारी शिक्षा प्रणाली में हिंदी को उचित स्थान नही मिलता तब तक हिंदी सम्मानजनक रूप से मुख्य धारा में उचित स्थान कैसे प्राप्त कर सकती है |
 हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसने अनेकता में एकता को बाँध रखा है ,गीतकार इकबाल का लिखा गीत सारे ”जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा”की पंक्ति ,”हिंदी है हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा ”ने स्वतंत्रता की लड़ाई के समय सभी धर्मों के लोगों को एकजुट कर महत्वपूर्ण योगदान दिया था ,इस में कोई दो राय नही कि सम्मान की हकदार है हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी, हमारे भारत की शान है हिंदी ,केवल यही एक भाषा है जिसे अनेक राज्यों में बोला जाता है|आज़ादी के बाद हमारे संविधान ने इसे राज भाषा का मान दिया जिसके अनुसार सभी राजकीय कार्य हिंदी भाषा में ही होने चाहिए ,लेकिन इस भाषा का उपयोग करते समय कई बार ऐसे जटिल शब्द प्रयोग में लाये जाते है जिनके अर्थ समझना थोड़ा कठिन हो जाता है| अगर इस भाषा को जटिल न बना कर हम इसे सरल और व्यवहारिक रूप में इस्तेमाल करें तो न केवल इसका रूप निखरेगा बल्कि इस भाषा को अधिक से अधिक लोग इस्तेमाल करेने लगेंगे |
… 
हिंदी हमारी
पहचान अपनी
जान हमारी
……………
राष्ट्र की भाषा
मिले सम्मान इसे
है मातृ भाषा
……………..
आन है यह
भारत हमारे की
शान है यह
। 
जय भारत जय हिंदी

रेखा जोशी 


गैरों की क्या कहें जब अपने हुये पराये

दिल के जज़्बात अपनी  भीगी पलके छिपायें 
हाल ऐ दिल अपना   किसी  को  कैसे दिखायें 
न  दोगे  दगा   कभी  माना सदा तुम्हे अपना
गैरों  की  क्या  कहें  जब अपने    हुये   पराये

रेखा जोशी

चहुँ ओर बगिया में छाई हरियाली

गीतिका 

झूला झूलें अब हिचकोले पवन के
जियरा धड़काये हिचकोले पवन के
.
आई बरसात यह सँग लाई खुशियाँ
चुनरियाँ उड़ाये हिचकोले पवन के
..
रिमझिम रिमझिम बरसे घटा सावन की
सँग  फुहारें  पड़े हिचकोले पवन के
..
चहुँ ओर बगिया में छाई हरियाली
सँग मोर नाचते हिचकोले पवन के
..
बादलो की ओट से निकला है चाँद
चाँदनी  शर्माये   हिचकोले पवन के


रेखा जोशी

शमा जलती रही महफ़िल सजाने वोह आयें है

शमा  जलती  रही  महफ़िल  सजाने  वोह आयें  है 
यहाँ  अब  रात  में  किसने सजन दीपक जलाये हैं 
चले  आये  हमारी आज महफ़िल में सनम फिर से 
बड़ी  मुश्किल से प्रियतम आज घर वापिस आयें है

रेखा जोशी 

Friday, 11 September 2015

सृजनात्मक कलम के समक्ष चुनौतियाँ

ऐसा कहते है कि जहाँ माँ सरस्वती का वास होता है वहाँ माता लक्ष्मीजी का पदार्पण नही होता ,माँ शारदे का पुजारी लेखक ,नई नई रचनाओं का सृजन करने वाला ,समाज को आईना दिखा उसमे निरंतर बदलाव लाने की कोशिश में रत ,ज़िन्दगी भर आर्थिक कठिनाइयों से झूझता रहता है |अभी हाल ही की बात है मेरे एक लेखक  मित्र के घर कन्या ने जन्म लिया और उन दिनों वह घोर आर्थिक स्थिति से गुज़र रहे थे ,उस वक्त उन्होंने चाय और पकौड़े  बेच कर अपना और अपने परिवार का पोषण किया ।
 एक लेखक के समक्ष आर्थिक संकट एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सदा उसके आस पास मंडराता रहता है जिससे बाहर आना उसके लिए कभी भी संभव नही  हो पाता  और वह सारी ज़िंदगी अपनी  मूलभूत आवश्यकताओं  को पूरा करने में ही जुटा रहता है| आर्थिक संकट के साथ साथ आये दिन उसे कई अन्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता रहता है खुदा न खास्ता अगर उसने व्यंग में ही किसी नेता याँ राजनेता के बारे में  अपने आलोचनात्मक विचार प्रकट कर दिए  तो उसे उनकी नाराज़गी का भी शिकार होना पड़  सकता है | समाज में पनप रही अनेक कुरीतियों को लेखक याँ लेखिका अगर अपनी सृजनात्मक कलम द्वारा उन्हें उजागर कर बदलाव लाना चाहते  है तो वह  सीधे सीधे समाज के ठेकेदारों की आँखों की किरकिरी बन जाते है ,ऐसा ही हुआ था लेखिका तस्लीमा नसरीन के साथ ,जब उसके खिलाफ देश निकाले का फतवा तक जारी कर दिया गया था |
इसमें कोई दो राय नही कि कलम की धार तलवार से भी तेज़ होती है | रचनाकार द्वारा सृजन की गई शक्तिशाली रचना समाज एवं देश में क्रान्ति तक  ला सकती है | गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ,शरतचंद्र जी  ,मुंशी प्रेमचंद जैसे अनेक लेखक हिंदी साहित्य में  जीती जागती मिसाल है जिन्होंने समाज में अपनी लेखनी के माध्यम से जागृति पैदा की थी | समय बदला ,समाज का स्वरूप बदला नये लेखकों की बाढ़ सी आ गई ,लेकिन आज भी अपनी लेखनी के जादू से रचनाकार समाज को एक धीरे धीरे अच्छी दिशा की ओर ले जाने में कामयाब हो रहा है ,भले ही इसके लिए  उसे अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है |

रेखा जोशी 

Thursday, 10 September 2015

खिलती नन्ही परी इस अँगना मिली ख़ुशी


प्यारी कली खिली  इस अँगना मिली  ख़ुशी 
आई  बहार  अब इस  अँगना  मिली    ख़ुशी
बस   माँगते  यही  न  कभी  रोग  हो  तुम्हे 
खिलती नन्ही परी इस अँगना  मिली  ख़ुशी

रेखा जोशी 

छा गई जब घटा याद तुम को किया

आधार छंद पर गीतिका

मापनी - 212 212 212 212 

तुम न आये सजन शाम ढलने लगी 
अब मिलन की पिया आस बुझने लगी 
.... 
है अँधेरा यहाँ छा रहा अब सजन 
चाँदनी भी यहाँ अब बिछुड़ने लगी 
.... 
जब दिया तोड़ दिल ज़िंदगी क्या करें 
नैन बहने लगे साँस थमने  लगी 
.... 
दीप जगमग  यहाँ आज बुझ ही गये 
रोशनी चाँद की भी सिमटने  लगी 
.... 
छा गई जब घटा याद तुम को किया 
बदरिया तिमिर की आज छटने लगी 

रेखा जोशी 










Wednesday, 9 September 2015

कट जायेगा अब सफर यह ज़िंदगी का


हाथ थाम  साथ  सजना  चलें  हम  दोनो
कदम से कदम अब मिला चलें हम दोनों
कट जायेगा अब  सफर यह  ज़िंदगी  का
जब   साथ  पा कर तेरा   चलें  हम  दोनों

रेखा जोशी


अब बहारें यहाँ पर महकने लगी

हर घड़ी ज़िंदगी की चहकने लगी
ज़िंदगी अब हमारी  सँवरने  लगी
...
खूबसूरत  सजी  वादियाँ अब यहाँ
अब  बहारें यहाँ पर महकने  लगी
...
झुक गई डालियाँ पुष्प खिलने लगे
अब  उमंगें  यहाँ पर उछलने  लगी
....
खिल  गये  खूबसूरत  नज़ारे  यहाँ
अब हवायें यहाँ पर  मचलने  लगी

देख तुम को सजन चाँद शरमा गया
चाँद  की  चाँदनी  भी  चमकने लगी

रेखा जोशी


Tuesday, 8 September 2015

ज़मीं के ऊपर खुला आसमान होगा

इक  दिन  पूरा  हमारा  अरमान  होगा

चाँद  और  सितारों  भरा  जहान  होगा

उड़ने लगेगें सुनहरी पँख लगा कर हम

ज़मीं  के   ऊपर खुला आसमान  होगा

रेखा जोशी 

Monday, 7 September 2015

तकदीर से मिले तुम तो ज़िंदगी मिल गई

तकदीर  से  मिले  तुम  तो  ज़िंदगी  मिल गई 
जब  छा  गया  उजाला  तो  रोशनी  मिल  गई 
खिल खिल गये यहाँ पर उपवन महक उठे तब 
बगिया महक उठी दिल को  हर ख़ुशी मिल गई 

रेखा जोशी 

राहें जुदा जुदा है मंज़िल भले वही हैं

गीतिका

चाहे कहीं चलो तुम हम भी चले वही  हैं 
राहें जुदा  जुदा है  मंज़िल  भले  वही  हैं

दीपक  जले  वफ़ा  के  मिलते  रहे सहारे
पायें   सदा  यहाँ  पे  शिकवे गिले वही हैं 
....
शरमाई '  चाँदनी  जब   नैना   झुके  हमारे
बरसात फूलों'  ने  की  साजन  मिले वही हैं

पाई ख़ुशी खिला दिल खिल खिल गये नज़ारे
खिलती कली कली अब  दिल जब खिले वही है

अब  ज़िंदगी  हमारी  कर  दी  है' नाम  तेरे
तकदीर  ने  दिये  है  हम  को  सिले  वही है

रेखा जोशी







उपवन खिले खिले है अब छा रही बहारें

आये अगर बलम तुमअँगना कहीं हमारे 
उपवन खिले  खिले है अब छा रही बहारें 
ठंडी  चली  हवायें  मौसम  न आज भाये 
आओ  चले जहाँ  पर  कोई  नहीं  पुकारे 

रेखा जोशी 

तकदीर ने मिलाया दे दो हमें सहारे

तेरी   हसीन  नज़रे  साजन  हमें  पुकारें
जाने न कब सजन यह नैया लगे किनारे 
तू  पास आ  हमारे  हमने  तुम्हे  बुलाया 
तकदीर  ने  मिलाया  दे  दो   हमें  सहारे 

रेखा जोशी 

Sunday, 6 September 2015

ईमानदारी और नैतिकता

[मेरी पुरानी रचना ]

कितने ईमानदार है हम ?इस प्रश्न से मै दुविधा में पड़ गई ,वह इसलिए क्योकि अब ईमानदार शब्द पूर्ण तत्त्व न हो कर तुलनात्मक हो चुका है कुछ दिन पहले मेरी एक सहेली वंदना के पति का बैग आफिस से घर आते समय कहीं खो गया ,उसमे कुछ जरूरी कागज़ात ,लाइसेंस और करीब दो हजार रूपये थे ,बेचारे अपने जरूरी कागज़ात के लिए बहुत परेशान थे |दो दिन बाद उनके  घर के बाहर बाग़ में उन्हें अपना बैग दिखाई पड़ा ,उन्होंने उसे जल्दी से उठाया और खोल कर देखा तो केवल रूपये गायब थे बाकी सब कुछ यथावत उस  बैग में वैसा ही था ,उनकी नजर में चोर तुलनात्मक रूप से ईमानदार था ,रूपये गए तो गए कम से कम बाकी सब कुछ तो उन्हें मिल ही गया ,नही तो उन्हें उन कागज़ात की वजह से काफी परेशानी उठानी पड़ती|

वह दिन दूर नही जब हमारा देश चोरों का देश बन कर रह जाए गा ,कोई छोटा चोर तो कोई बड़ा चोर ,कोई अधिक ईमानदार तो कोई कम ईमानदार ,लेकिन अभी भी हमारे भारत में ईमानदारी पूरी तरह मरी नही ,आज भी समाज में ऐसे लोगों की कमी नही है जिसके दम पर सच्चाई टिकी हुई है | वंदना अपनी नन्ही सी बेटी रीमा की ऊँगली थामे जब बाज़ार जा रही थी तभी उसे रास्ते में चलते चलते एक रूपये का सिक्का जमीन पर पड़ा हुआ मिल गया,उसकी बेटी रीमा ने  झट से उसे उठा कर ख़ुशी से उछलते हुए  वंदना से कहा ,''अहा,मम्मी मै तो इस रूपये से टाफी लूंगी,आज तो मज़ा ही आ गया ''| अपनी बेटी के हाथ में सिक्का देख वंदना उसे समझाते हुए बोली  ,''लेकिन बेटा यह सिक्का तो तुम्हारा नही है,किसी का इस रास्ते पर चलते हुए गिर गया होगा  ,ऐसा करते है हम  मंदिर चलते है और इसे भगवान जी के चरणों में चढ़ा देते है ,यही ठीक रहे गा ,है न मेरी प्यारी बिटिया |''

वंदना ने अपनी बेटी को  ईमानदारी का पाठ तो पढ़ा दिया लेकिन आज अनेक घोटालों के पर्दाफाश हो रहे इस देश में ईमानदारी और नैतिकता जैसे शब्द खोखले,  निरर्थक और अर्थहीन हो चुके है,एक तरफ तो हम अपने बच्चों से  ईमानदारी ,सदाचार और नैतिक मूल्यों की बाते करते है और दूसरी तरफ जब उन्हें समाज में पनप रही अनैतिकता और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है तब  हमारे बच्चे ,इस देश के भविष्य निर्माता टूट कर बिखर जाते है ,अपने परिवार  से मिले आदर्श संस्कार उन्हें अपनी ही जिंदगी में आगे बढ़ कर समाज एवं राष्ट्र हित के लिए कार्य करने में मुश्किलें पैदा कर देते है ,उनकी अंतरात्मा उन्हें बेईमानी और अनैतिकता के रास्ते पर चलने नही देती और घूसखोरी ,भ्रष्टाचार जैसे भयानक राक्षस मुहं फाड़े  इस देश के भविष्य का निर्माण करने वाले नौजवानों को या तो निगल जाते है या उनके रास्ते में अवरोध पैदा कर  उनकी और देश की प्रगति पर रोक लगा देते है ,कुछ लोग इन बुराइयों के साथ समझौता कर ऐसे भ्रष्ट समाज का एक हिस्सा बन कर रह जाते है और जो लोग समझौता नही कर पाते वह सारी जिंदगी घुट घुट कर जीते है | 

रीमा की ही एक सहेली के भाई ने सिविल इंजिनीयरिंग की डिग्री प्राप्त कर बहुत उत्साह से कुछ कर दिखाने का जनून लिए पूरी लग्न और निष्ठां से  एक सरकारी कार्यालय में नौकरी से अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की ,लेकिन उसकी वही निष्ठां और लग्न सरकारी कार्यालयों के  भ्रष्ट तंत्र में उसकी एक स्थान से दूसरे स्थान पर हो रही तबादलों का कारण बन गई ,उसे एक जगह पर टिक कर कुछ करने का मौका ही नही मिल पाया और आज यह हाल है की बेचारा अवसाद की स्थिति में पहुंच चुका  है |एक होनहार युवक का अपने माँ बाप दुवारा दी गई नैतिकता और ईमानदारी की शिक्षा के कारण उसका ऐसे भ्रष्ट वातावरण में  दम घुट गया |यह केवल एक युवक का किस्सा नही है ,हमारे देश में हजारों , लाखों युवक और युवतिया बेईमानी ,अनैतिकता ,घूसखोरी के चलते क्रुद्ध ,दुखी और अवसादग्रस्त हो रहे है ,लेकिन क्या नैतिकता के रास्ते पर चल ईमानदारी से जीवन यापन करना पाप है ?,याँ फिर हम इंतज़ार करें उस दिन का जब सच्चाई की राह पर चलने वाले इस भ्रष्ट वातावरण के चलते हमेशा हमेशा  के लिए खामोश हो जाएँ और यह  देश चोरों का देश कहलाने लगे|

  रेखा जोशी

निछावर हम पर कर देते जान माँ बाप

अपने बच्चों का सदा रखें ध्यान माँ बाप
निछावर हम  पर कर देते  जान माँ बाप
होती   नेह    की  बरसात  सदा   नैनों से
पूरे   करते    हमारे   अरमान   माँ   बाप

रेखा जोशी



Saturday, 5 September 2015

इरादों में दम उनके तन से भले लाचार

इरादों में दम उनके तन से भले लाचार
बदकिस्मत वोह जो उनका नहीं पाते प्यार
चेहरे पर झुरियाँ आँखों से छलकता  नेह
ज़िंदगी के मोड़ पर हैं सम्मान के हक़दार

रेखा जोशी 

एक सबक --[संस्मरण ]


एक सबक --[संस्मरण ] मेरी पुरानी रचना 

यह घटना लगभग तीस वर्ष पहले की है ,गर्मियों की छुटियों में मै अपने दोनों बेटों के साथ फ्रंटीयर मेल गाड़ी से अमृतसर से दिल्ली जा रही थी ,भीड़ अधिक होने के कारण बहुत मुश्किल से हमे स्लीपर क्लास में दो बर्थ मिल गई ,नीचे की बर्थ पर मैने अपना बिस्तर लगा लिया और बीच वाली बर्थ पर अपने बड़े बेटे का बिस्तर लगा दिया ,उस समय मेरे बड़े बेटे की आयु आठ वर्ष की थी और दूसरे बेटे की छ वर्ष ,यात्रा के दौरान दोनों बच्चे बहुत उत्साहित थे ,कभी वह बीच वाली सीट पर चढ़ जाते कभी नीचे उतर जाते दोनों मिल कर खूब धमाचौकड़ी मचा रहे थे ,बच्चे तो खेल रहे थे लेकिन मुझे उन पर बहुत क्रोध आ रहा था । मैने जल्दी से उन्हें खाना खिलाया और और छोटे बेटे को नीचे की सीट पर लिटा लिया और बड़े बेटे को उपर बीच वाली सीट पर सोने के लिए भेज दिया । बहुत अधिक गर्मी होने कारण नींद नही आ रही थी ,गाडी तीव्र गति से चल रही थी और मै लाईट बंद कर नीचे अपने छोटे बेटे के साथ बर्थ पर लेट गई ,गर्मी के कारण अचानक मुझे बहुत घबराहट हुई और मैने थोड़ी हवा के लिए खिड़की खोल दी और खिड़की की तरफ ही मुहं कर के लेट गई ,तभी किसी ने मेरे दोनों काने पर हाथ फेरा ,मै एकदम से उठी और आव देखा न ताव झट से अपने बड़े बेटे के गाल पर चांटा जड़ दिया ,''क्या बात है न खुद सोते हो न मुझे सोने देते हो ,शरारत की हद होती है ,''मैने अपना सारा गुस्सा उस पर उतार दिया ,लेकिन उसने चुपचाप मेरी तरफ देखा और खिड़की की तरफ इशारा कर कहा ,''मम्मी वह देखो '' खिड़की की तरफ देखते ही मेरे पाँव तले जमीन ही खिसक गई ,वहाँ ,सफेद कपड़ों में और सफेद पगड़ी पहने एक हट्टा कट्टा आदमी लटक रहा था ,उस समय गाड़ी इतनी तेज़ गति से चल रही थी कि अगर वह गिर जाता तो मालूम नही उसका क्या हाल होता । भगवान् का लाख लाख शुक्र है कि मैने तब अपने कानो में बालियाँ याँ कोई अन्य जेवर नही पहन रखे थे ,नही तो वह आदमी मेरे कानो से बालियाँ खीच कर ले जाता और मुझे चोट लगती वह अलग ,मेरे देखते ही देखते वह वहां से गायब हो गया । मेने तब पूरे डिब्बे का चक्कर लगाया और सबको अपनी आपबीती सुनाई ,जिस किसी की भी खिडकी खुली थी वह बंद करवाई ताकि किसी के साथ कोई हादसा न होने पाए । उसके बाद मैने पूरा डिब्बा छान मारा लेकिन मुझे कहीं भी टी टी दिखाई नही दिया ,परन्तु उसके बाद उस डिब्बे में बैठे सभी यात्री सतर्क हो गए । इस घटना से मुझे जिंदगी भर के लिए एक सबक मिल गया ,उसके बाद मै सफर के दौरान कभी भी किसी तरह का कोई भी जेवर नही पहनती ।

रेखा जोशी 

Friday, 4 September 2015

कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनयें

कान्हा सभी को लुभाये तेरी मुरलिया
खेलें  अनेक  लीलायें  तेरी   मुरलिया
धुन  सुन बंसी को बाँवरी हुई गोपियाँ
कृष्णा  मन  को हर्षाये  तेरी मुरलिया

रेखा जोशी 

Thursday, 3 September 2015

है विश्वास तुम्हे खुद पर

है होता दुःख
देख तुम्हे कैद दीवारों में
जो बना रखी खुद तुमने
क्यों दे रहे  हो पीड़ा
खुद को
अपने ही हाथों
क्यों  कैद कर लिया
खुद को
क्यों पिंजरे में
मुहँ छिपाये बैठे तुम 
अपने पँख लपेटे
कब तक बुनते रहोगे जाल
अपने इर्द गिर्द
तोड़ दो अब बंधन सब
भर लो उड़ान
फैला कर अपने पँख
उन्मुक्त
दूर ऊपर आकाश में
है विश्वास तुम्हे खुद पर
जानते हो तुम
है मंज़िल तुम्हारी उड़ान
है उड़ना तुम्हे
उठो फैलाओं  पँख अपने
और
निकल पड़ो फिर से
ज़िंदगी की
इक लम्बी उड़ान भरने

रेखा जोशी

जीना तब सीखा हमने साथ चले जब तुम

हमने अब  पाया यह  संसार   सजन  अपना 
जो साथ मिला तुमसा दिलदार सजन अपना 
जीना तब सीखा  हमने साथ  चले  जब  तुम 
आ  दूर चले हम  लेकर  प्यार  सजन अपना 

रेखा जोशी 

Wednesday, 2 September 2015

भोली सूरत खाली हाथ माखन नहीं खायो

देवकीनंदन   माखनचोर  ग्वालों   का प्यारा 
राधिका  का  मनमोहना गोपियों का  दुलारा 
भोली  सूरत  खाली  हाथ माखन नहीं खायो  
नटखट  मोहना यशोदा  की आँखों  का तारा

रेखा जोशी 

है आज भरा जीवन मुझ में

आदरणीय श्री हरिवंशराय बच्चन जी की रचना मधु कलश से

मै  थिर होकर कैसे बैठूँ
जब हो उठते पाँव चपल
मे मौन खड़ी किस भांति रहूँ
जब है बज उठते पग पायल

जब मधुघट के आधार बने
कर क्यों न झुकें झूमें घूमें
किस भांति रहूँ मै मुख मूँदें
जब उड़ उड़ जाता है अंचल
....
मै नाच रही मदिरालय में
मै और नहीं कुछ कर सकती
है आज गया कोई मेरे
तन में प्राणों में यौवन भर

है आज भरा जीवन मुझ में
है आज भरी मेरी गागर

 हरिवंशराय बच्चन


चल माझी नदिया के उस पार लेकर

हृदय   में  समाया    नेह  अपार   लेकर
राह    निहारे    नैनो   में   प्यार   लेकर
मिलन की आस लिये दूर खड़ा  प्रियतम
चल  माझी  नदिया  के  उस  पार लेकर

रेखा जोशी 

Tuesday, 1 September 2015

कृष्ण प्रेम की जयकार से गूँजत संसार

यमुना के तट पर मनमोहन गोपाला 
गोकुल में कान्हा संग गेंद खेलत ग्वाला 
… 
खेलत गेंद मोहन नटखट नंदलाला
थी आगे चली गेंद पीछे भागत ग्वाला
..
छवि नाग की देख गेंद फेंक यमुना में
फिर यमुना के पानी  में कूदत गोपाला 
..
जा पहुँचे पाताल मनमोहन कन्हैया
था जहाँ पे भयंकर नाग सोवत कालिया 
..
था हुआ घमासान तभी जल के भीतर
नाग कालिया ने ज़हरीली भरत फुंकार
..
काला हुआ जल कान्हा श्याम कहलाये
मर्दन कर कालिया का गेंद आवत लाये
..
बँसी की मधुर धुन पर फिर हुआ चमत्कार
कृष्ण प्रेम की जयकार से गूँजत संसार 

रेखा जोशी