Saturday, 5 September 2015

एक सबक --[संस्मरण ]


एक सबक --[संस्मरण ] मेरी पुरानी रचना 

यह घटना लगभग तीस वर्ष पहले की है ,गर्मियों की छुटियों में मै अपने दोनों बेटों के साथ फ्रंटीयर मेल गाड़ी से अमृतसर से दिल्ली जा रही थी ,भीड़ अधिक होने के कारण बहुत मुश्किल से हमे स्लीपर क्लास में दो बर्थ मिल गई ,नीचे की बर्थ पर मैने अपना बिस्तर लगा लिया और बीच वाली बर्थ पर अपने बड़े बेटे का बिस्तर लगा दिया ,उस समय मेरे बड़े बेटे की आयु आठ वर्ष की थी और दूसरे बेटे की छ वर्ष ,यात्रा के दौरान दोनों बच्चे बहुत उत्साहित थे ,कभी वह बीच वाली सीट पर चढ़ जाते कभी नीचे उतर जाते दोनों मिल कर खूब धमाचौकड़ी मचा रहे थे ,बच्चे तो खेल रहे थे लेकिन मुझे उन पर बहुत क्रोध आ रहा था । मैने जल्दी से उन्हें खाना खिलाया और और छोटे बेटे को नीचे की सीट पर लिटा लिया और बड़े बेटे को उपर बीच वाली सीट पर सोने के लिए भेज दिया । बहुत अधिक गर्मी होने कारण नींद नही आ रही थी ,गाडी तीव्र गति से चल रही थी और मै लाईट बंद कर नीचे अपने छोटे बेटे के साथ बर्थ पर लेट गई ,गर्मी के कारण अचानक मुझे बहुत घबराहट हुई और मैने थोड़ी हवा के लिए खिड़की खोल दी और खिड़की की तरफ ही मुहं कर के लेट गई ,तभी किसी ने मेरे दोनों काने पर हाथ फेरा ,मै एकदम से उठी और आव देखा न ताव झट से अपने बड़े बेटे के गाल पर चांटा जड़ दिया ,''क्या बात है न खुद सोते हो न मुझे सोने देते हो ,शरारत की हद होती है ,''मैने अपना सारा गुस्सा उस पर उतार दिया ,लेकिन उसने चुपचाप मेरी तरफ देखा और खिड़की की तरफ इशारा कर कहा ,''मम्मी वह देखो '' खिड़की की तरफ देखते ही मेरे पाँव तले जमीन ही खिसक गई ,वहाँ ,सफेद कपड़ों में और सफेद पगड़ी पहने एक हट्टा कट्टा आदमी लटक रहा था ,उस समय गाड़ी इतनी तेज़ गति से चल रही थी कि अगर वह गिर जाता तो मालूम नही उसका क्या हाल होता । भगवान् का लाख लाख शुक्र है कि मैने तब अपने कानो में बालियाँ याँ कोई अन्य जेवर नही पहन रखे थे ,नही तो वह आदमी मेरे कानो से बालियाँ खीच कर ले जाता और मुझे चोट लगती वह अलग ,मेरे देखते ही देखते वह वहां से गायब हो गया । मेने तब पूरे डिब्बे का चक्कर लगाया और सबको अपनी आपबीती सुनाई ,जिस किसी की भी खिडकी खुली थी वह बंद करवाई ताकि किसी के साथ कोई हादसा न होने पाए । उसके बाद मैने पूरा डिब्बा छान मारा लेकिन मुझे कहीं भी टी टी दिखाई नही दिया ,परन्तु उसके बाद उस डिब्बे में बैठे सभी यात्री सतर्क हो गए । इस घटना से मुझे जिंदगी भर के लिए एक सबक मिल गया ,उसके बाद मै सफर के दौरान कभी भी किसी तरह का कोई भी जेवर नही पहनती ।

रेखा जोशी 

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