कर रहे अठखेलिया
बन सेतु धरा गगन में
है खोल दिये ज्ञान चक्षु
एहसास हुआ
लोक परलोक का
सीढ़ी दर सीढ़ी कर उत्थान
चैतन्य आत्मा का
है जाना उस पार सभी को
आज नहीं तो कल
रेखा जोशी
नील नभ पर
लहराते बादल
अरुण की
रश्मियों को चूमतेलहराते बादल
अरुण की
बन सेतु धरा गगन में
है खोल दिये ज्ञान चक्षु
एहसास हुआ
लोक परलोक का
सीढ़ी दर सीढ़ी कर उत्थान
चैतन्य आत्मा का
है जाना उस पार सभी को
आज नहीं तो कल
रेखा जोशी
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