Sunday, 27 September 2015

काश छोड़ा न होता घर अपना

दूर अपने घर से 
जाने कहाँ आ गया मै 
आँखे बिछाए बैठी होगी वह 
निहारती होगी रस्ता मेरा 
और मै 
पागल छोड़ आया उसे 
बीच राह पर 
खाई थी कसम 
सातों वचन निभाने की 
कैसे करूँ पश्चाताप 
तोड़ा दिल प्रियतमा का 
न निभा कर अपना वादा 
 हो जाती आँखें नम 
 आती जब याद उसकी 
 काश न छोड़ा होता 
अपना घर 

रेखा जोशी

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