Thursday, 17 September 2015

इधर फूल महका रहे आज बगिया

नहीं तुम मिले मै गमन कर रहा हूँ 
यहाँ  रात में अब शयन कर रहा हूँ 
… 
न तस्वीर से ही मुलाकात होती 
मिलो सामने यह जतन कर रहा हूँ 
.... 
 पिरोये न शब्द' पठन कर रहा हूँ 
बहुत आस से मै सृजन कर रहा हूँ
.... 
मिलो गर कभी तुम सजन हम पुकारें 
तुझे आज पा लूँ मनन कर रहा हूँ 
.... 
इधर फूल महका रहे आज बगिया 
उधर शूल भी  सँग चुभन कर रहा हूँ 

रेखा जोशी 

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