Tuesday, 29 September 2015

बड़े मियां दीवाने [मेरी पुरानी रचना ]

पिछले मास बाऊ जी ने सत्तर वर्ष पूरे कर लिए ,पूरे दस वर्ष  हो गये रिटायर्ड हुए लेकिन अफसर शाही का भूत अभी तक सर से नहीं उतरा \साठ वर्ष तक तो अपने पूरे स्टाफ को हमेशा एड़ियों के बल पर खड़े रखा ,और कान सदा 'येस सर ,येस सर 'सुनने के आदी हो चुके थे \बहुत मुश्किल हो गयी रिटायर्ड होने पर \अब किस पर अपना हुकुम चलायें ,पावर का नशा तो सर चढ़ कर बोलता है ,भला वो घर में चुप कैसे बैठ सकते थे \अपने आठ साल के पोते को  बाहर बरामदे में खेलते देख बाऊ जी की गरजती हुई आवाज़ ने पूरे घर की शांति को भंग कर दिया ,''बदमाश कहीं का सारा दिन बस खेलना ,छोड़ गेंद इधर आ ,मेरे पास ,मे तुम्हे पढाऊँ गा\जल्दी से आओ,गधा कहीं का जब देखो खेलने में लगे रहते हो ,तुमने स्कूल का काम पूरा किया है या नहीं \

दादा की रोबीली आवाज़ से डर कर उनका पोता झट से अपनी माँ के आँचल में छुप गया \वो छोटा बच्चा ही क्यों ,घर के सब सदस्य बाऊ जी को देख ऐसे कांपते थे मानो किसी आतंकवादी को देख लिया हो \उनकी रोबीली आवाज़ तो घर की चारदीवारी को भी चीरती हुई अड़ोसी पड़ोसियों के दिलों की धडकने भी तेज़ कर देती है \बाऊ जी की डांट फटकार सुन कर उनकी बड़ी बहू कमरे से ही बोली 'बाऊ जी यह इसका खेलने का समय है '\बहू के यह शब्द सुनते ही बाऊ जी का गुस्सा मानो सातवे आसमान को छूने लगा \वह पोते को छोड़ बहू को बुरा भला कहने लगे 'यह माएँ ही बच्चो को बिगाडती है ,ये नहीं समझती कि लड़कों को जीता खीँच कर रखो उतना ही अच्छा,मुझे क्या बड़े हो कर जब उनको परेशान करें गे तब इन्हें समझ आये गी \
 तभी बाऊ जी का छोटा बेटा कालेज से घर आ गया ,उसे देखते ही बाऊ जी का गुस्से का रुख उसकी ओर हो गया ,और आ गई उसकी शामत ,वह जोर से दहाड़ते हुए उस पर बरसने लगे ,'नालायक आदमी तुम्हे कुछ भी याद नहीं रहता है \उनका बेटा हतप्रभ सा बाऊ जी के मुहं कि तरफ देखने लगा और धीरे से बुदबुदाने लगा\ तभी कडकती हुई आवाज़ आई ,'बदतमीज़ ,मेरे से जुबान लडाता है तुम्हे कहा था ना कि मेरा कम्प्यूटर सही करना है ,लकिन नही ,हरामखोर ,मुफ्त कि रोटियां तोड़ते हो और ऊपर से बाप को गालियाँ देते हो '\ 'मैने आपको कब गाली दी 'अंदर ही अंदर बेटा तिलमिला उठा \ आवाज़ ऊँची करते हुए बाऊ जी चिल्ला पड़े 'हाँ ,हाँ तू दे मुझे गाली ,अभी पुलिस को बुलाता हूँ ,तुझे बालों से खींचते हुए जब ले के जाये गे ,तब तुम्हारी अक्ल ठिकाने आये गी \बस अब तो बेटे का सब्र का प्याला टूट चूका था \वह भी अब झगड़ने के मूड में आ चुका  था ,''बुलाओ ,बुलाओ पुलिस को' पूरे जोर शोर से उसने जवाब दिया ,''हमेशा धमकिया देते रहते हो ,अभी बुलाओ पुलिस को ''\
 बात बिगड़ते देख बाऊ जी की धर्मपत्नी भी जंग में कूद पड़ी ,''चुप रहो बेटा ,अपने पिता के आगे नहीं बोलते ,वह बड़े है ,कुछ तो लिहाज़ करो ',लेकिन बाऊ जी कब चुप होने वाले थे ,उल्टा अपनी पत्नी पर ही बरस पड़े ,'सब तुम्हारे लाड प्यार का नतीजा है ,जो हमारा घर बर्बाद हो रहा है ,तुमने पूरे घर को तबाह कर के रख दिया है \पत्नी हक्की बक्की  सी अपने पति का मुहं देखने लग गई \ वह आज सोचने पर मजबूर हो गई ,अपने ही बच्चों के पिता क्यों उन्हें अपना दुश्मन बना रहे है \यह तो अपने बच्चों से बहुत प्यार किया करते है फिर इनका व्यवहार ऐसा कैसे हो गया \ शायद यह उनके प्यार की मार है जो घर परिवार के हर सदस्य को रोज़ पडती है \ शायद वह अपने बच्चों में एक सम्पूर्णता देखना चाहते है जो उन्हें दिखाई नहीं देती या वह पुरुष का अहम है जो उनके हर रिश्ते में आड़े आता है \बाऊ जी की मानसिकता कुछ भी हो ,लेकिन उनका यह व्यवहार उन्हें अपनों से दूर जरूर ले  जा रहा है और वह इसे समझ नहीं पा रहे \ भावावेश में पत्नी का चेहरा आँसूओं  से भीग गया \ आखिरकर वह बोल ही पड़ी ,''काश कोई उन्हें समझा पाता,बड़े मियां दीवाने ऐसे न बनो '। 

रेखा जोशी 

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