Monday, 29 February 2016

मुक्तामणि छंद

मूल छंद
दिल में  पाले साँप है ,मुख पर प्यार जताते 
घोले जीवन ज़हर है समझ नहीं हम पाते । 
रक्षा भगवान तुम करो ,नाग बहुत ज़हरीले 
काटे यह किस मोड़ पर, इनके बोल सुरीले 

 मुक्तक 
दिल में  पाले साँप है ,मुख पर प्यार जताते 
घोले जीवन ज़हर है समझ नहीं हम पाते । 
रक्षा भगवान तुम करो ,बैठे फन फैला कर
काटे यह किस मोड़ पर,कब यह घात लगाते 

रेखा जोशी 

Sunday, 28 February 2016

सपनों में सजे मेरे ज़िंदगी अरमान

महक उठा आज फिर सतरंगी  आसमान
भर ली सपनो  ने  आज फिर  ऊँची उड़ान
चाँद  सितारों को  लेकर  आया  ज़मीं  पर
 सपनों  में    सजे  मेरे   ज़िंदगी  अरमान

 रेखा जोशी

इक दिन उठेगा तेरा दाना पानी

कुछ नहीं मिलता किसी को तकरार से
जी दो  दिन  की  ज़िंदगी यहाँ प्यार से
इक   दिन   उठेगा  तेरा    दाना   पानी
चला   जायेगा   छोड़  सब    संसार से

रेखा जोशी

Saturday, 27 February 2016

ज़िंदगी जीने की कला

राम चरित मानस और महाभारत हमारे धर्म के दो  ऐसे महान ग्रन्थ है जिनसे हम  बहुत कुछ सीख सकते है | राम चरित मानस में जहाँ  भगवान श्री राम के आदर्श चरित्र को पूजा जाता है वहाँ महाभारत में योगेश्वर श्री कृष्ण के चरित्र के भिन्न भिन्न स्वरूप दर्शाये गये हैं । यहाँ मै चर्चा   करुँगी ,महाज्ञानी ,महापंडित रावण की ,हर वर्ष हम सब दशहरे को उसका पुतला जला के बुराई पर अच्छाई की  जीत का उत्सव मनाते है ,अगर हम देखें तो उस बुराई की जड़ को पानी तो लक्ष्मण ने दिया था ,श्रूपनखा की नाक काट कर ,अपमानित व्यक्ति अपने अपमान को कैसे सहन कर  सकता है । वैसे ही महाभारत में द्रौपदी ने दुर्योद्धन को अन्धे  का बेटा  अन्धा कह कर उसका  अपमान किया था ,इन दोनों प्रसंगों से हम सब को  भी सीख  लेनी चाहिए। अगर हम इन दोनों ग्रन्थों का  गहन अध्ययन करते है तो हमें बहुत से उदहारण मिलेंगे  जिनसे हम ज़िंदगी जीने की कला सीख सकते है।

रेखा जोशी


Friday, 26 February 2016

न करो तुम पाप कन्या भ्रूण हत्या कर

है    माँ    दुर्गा   का   अवतार   बेटियाँ
है   माँ   बाप   से   करें   प्यार  बेटियाँ
न करो तुम पाप कन्या भ्रूण हत्या कर
माँगे   जीने    का    अधिकार   बेटियाँ

रेखा जोशी 

Thursday, 25 February 2016

World of dreams.[One of my published post ]


We live in present. Past is gone in the world of dreams and our dreams to be fulfilled lies in the lap of future. Our brain is always thinking one or the other thing when we are awake and in the state of sleep it takes us to the world of dreams. As said by the psychologists dreams are nothing but our unfulfilled desires and that to in abstract and complex form. It is observed by many of us that there are some significant dreams which have a great impact on our lives. The formula of benzene was seen by a scientist kekuly in the form of a hexagon ring of six snakes with tail of one in the mouth another in his dream. There are a number of examples where the dreams of many persons came true Is it the power of human brain to peep into the future? It is a known fact that our brain emits waves which can be measured by an instrument and the mapping of such waves is known as EEG which measures the frequency of brain waves. For the normal functioning of brain the frequency of waves is fourteen cycles per seconds which is reduced to seven cycles per second when we are asleep, the state of brain when we dream, where the rapid eye movement takes place. The deeper we are in sleep, the lesser is the frequency and the more relaxed a person is. The most important phase is that where the rapid eye movement takes place. It is observed that by meditation we can relax our mind achieve the phase of REM while we are awake and dream of whatsoever we want in our life, we will get success in that Such is the power of our brain, which can create our own future. So relax, think positive, dream your future and get success in your life..

Rekha joshi 

Wednesday, 24 February 2016

दो पाटों में जीवन


बना कर रख संतुलन
कहीं वन कहीं उपवन
कभी  धूप  कभी छाँव
दो   पाटों   में  जीवन

रेखा जोशी 

स्फुरित हुआ तन मन उषा ने ली अँगड़ाईं

स्वर्णिम   हुई  अवनी   सुहानी   भोर  आई
चहुँ ओर पुष्पित उपवन ने महक  बिखराई
अरुण  की  लालिमा  से  जगमगाया  अंबर
स्फुरित  हुआ  तन मन उषा ने ली  अँगड़ाईं

रेखा जोशी 

Tuesday, 23 February 2016

किन राहों पर भटक रहे नादान


चले  अपने  घर से करने सवेरा
आतंकियों  के  संग  लाया  डेरा
किन राहों पर भटक रहे नादान
छाया वहाँ  पर अन्धकार घनेरा

रेखा जोशी


कलम की धार

ऐसा कहते है कि जहाँ माँ सरस्वती का वास होता है वहाँ माता लक्ष्मीजी का पदार्पण नही होता ,माँ शारदे का पुजारी लेखक ,नई नई रचनाओं का सृजन करने वाला ,समाज को आईना दिखा उसमे निरंतर बदलाव लाने की कोशिश में रत ,ज़िन्दगी भर आर्थिक कठिनाइयों से झूझता रहता है |

अभी हाल ही की बात है मेरे एक लेखक मित्र के घर कन्या ने जन्म लिया और उन दिनों वह घोर आर्थिक स्थिति से गुज़र रहे थे ,उस वक्त उन्होंने चाय और पकौड़े बेच कर अपना और अपने परिवार का पोषण किया । एक लेखक के समक्ष आर्थिक संकट एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सदा उसके आस पास मंडराता रहता है जिससे बाहर आना उसके लिए कभी भी संभव नही हो पाता और वह सारी ज़िंदगी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में ही जुटा रहता है| 

आर्थिक संकट के साथ साथ आये दिन उसे कई अन्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता रहता है खुदा न खास्ता अगर उसने व्यंग में ही किसी नेता याँ राजनेता के बारे में अपने आलोचनात्मक विचार प्रकट कर दिए तो उसे उनकी नाराज़गी का भी शिकार होना पड़ सकता है | समाज में पनप रही अनेक कुरीतियों को लेखक याँ लेखिका अगर अपनी सृजनात्मक कलम द्वारा उन्हें उजागर कर बदलाव लाना चाहते है तो वह सीधे सीधे समाज के ठेकेदारों की आँखों की किरकिरी बन जाते है ,ऐसा ही हुआ था लेखिका तस्लीमा नसरीन के साथ ,जब उसके खिलाफ देश निकाले का फतवा तक जारी कर दिया गया था |

इसमें कोई दो राय नही कि कलम की धार तलवार से भी तेज़ होती है | रचनाकार द्वारा सृजन की गई शक्तिशाली रचना समाज एवं देश में क्रान्ति तक ला सकती है | गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ,शरतचंद्र जी ,मुंशी प्रेमचंद जैसे अनेक लेखक हिंदी साहित्य में जीती जागती मिसाल है जिन्होंने समाज में अपनी लेखनी के माध्यम से जागृति पैदा की थी | समय बदला ,समाज का सवरूप बदला नये लेखकों की बाढ़ सी आ गई ,लेकिन आज भी अपनी लेखनी के जादू से रचनाकार समाज को एक धीरे धीरे अच्छी दिशा की ओर ले जाने में कामयाब हो रहा है ,भले ही इसके लिए उसे अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है |

रेखा  जोशी 

Monday, 22 February 2016

समझो माँ के दर्द को ,आँचल उसके प्यार

मेरे भाई बन्धु सुन  ,होना है तैयार 
समझो माँ के दर्द को  ,आँचल उसके  प्यार 
गोदी अपनी खिलाया आया तुमको याद 
ज्वाला सीने रही जल , सुन लो आज पुकार

रेखा जोशी 

अखण्ड भारत हमारा ,देंगे इस पर जान

भारत माता पुकारे   ,नैनो में भर नीर 
दुश्मन घर में हमारे ,हरने को है चीर 
अखण्ड भारत हमारा ,देंगे इस पर जान 
टुकड़े होने न देंगे ,कट जायेगे वीर 

रेखा जोशी 

है याद हमें कुर्बानी भारत के उन वीरों की


है  खून  बहाया  जवानों  ने  जहाँ  जहाँ  धरा पर
आओ नमन करें शहीदों को शीश वहाँ  नवा कर
है  याद  हमें   कुर्बानी   भारत  के उन   वीरों की
लगा दी बाजी प्राणों की नभ पर ध्वज लहरा कर

रेखा जोशी




Sunday, 21 February 2016

मन मंदिर में आन बसे तुम

रहना   सदा  साथ मेरे  तुम
समाये  हर  श्वास  मेरे तुम 
हाथ  जोड़  हम  करें  वंदना 
मन मंदिर में आन बसे तुम 

 रेखा जोशी 

Saturday, 20 February 2016

रहें महकती सदा प्रेम की राहें

प्रियतम
आओ  चलें हम
मुहब्बत की
खूबसूरत राहों पर
देखो वह
बाहें फैलाये हमे
है  बुला  रही
और हम उन पर
चलते ही  रहें निरंतर

दुनिया से दूर
खोये रहे हम
इक  दूजे में  सदा
ज़िंदगी भर
थामें इक  दूजे का हाथ
कदम से कदम मिला कर
चलते ही  रहें निरंतर

भूल कर
दुनिया के  सारे गम
बस  मै और तुम
निभाते रहें साथ
मंजिल मिले न मिले
है कोई नही  गम
बस रहें महकती सदा
प्रेम की राहें
और हम
चलते ही  रहें निरंतर

 रेखा जोशी



जिन खोज तीन पाया [मेरी पूर्व प्रकाशित रचना ]

मंदिर से निकलते ही पास वाले पार्क में लोगों की भीड़ देखी तो वहीँ रुक गई ,उत्सुकता वश मै भी भीड़ का एक हिस्सा बन कर वहां खड़ी हो गयी ,तभी चमत्कारी बाबा की जय ,चमत्कारी बाबा की जय के नारे हवा में गूंजने लगे | भगवा चोला पहने , आधा चेहरा दाढ़ी में छुपाये एक आदमी तरह तरह के जादुई करिश्में कर के लोगों को दिखा रहा था |कभी अपने हाथों में फूल ले आता तो कभी तलवार निकाल लाता,कभी उसके मुहं पर खून सा लाल रंग आ जाता तो कभी उसके हाथ लाल हो जाते| लोग अभी भी उसकी जय जयकार कर रहे थे ,भीड़ में से कुछ लोग निकल कर उस पाखंडी बाबा के पैर छू रहे थे |

मै सोचने पर मजबूर हो गयी ,कैसे एक आदमी,हाथों की सफाई से और छोटे मोटे वैज्ञानिक प्रयोगों दुवारा भोले भालेलोगों को बेवकूफ बना रहा है |तभी शुरू हो गया समस्याए सुलझाने का सिलसिला |.भीड़ में से एक औरत उठी ,बाबा के पैर छू कर अपने बेटे के केरियर के बारे में पूछने लगी |बाबा तो जैसे अन्तर्यामी हो झटपट कई उपाय बता दिए ,उसके बाद तो प्रश्नों की झड़ी सी लग गई जिसका समाधान बाबा ने चुटकियों में कर दिया |बस बहुतहो गया था ,अब एक क्षण भी रुकना मेरे लिए नागवार था ,यह पाखंडी बाबा कैसे लोगों को मूर्ख पे मूर्ख बनाये जा रहा है ,और क्यों यह लोग आँखे मूंदे उस की बातों पर विश्वास किये जा रहें है |इस धरती पर कैसे कैसे लोग रहते है ?

मै भीड़ से निकल कर बाहर को आ गई और घर की तरफ चल पड़ी ,रास्ते में सोचने लगी ,इतना विशाल और विराट, ब्रह्मांड उसमें हमारी यह धरती और उसपर रहने वाले हम सब प्राणी ,इस पूरी सृष्टि में हमारी हस्ती ही क्या है ? भानुदेव से बंधी , अपनी अपनी कक्षाओं में बाकी ग्रहों सहित यह धरा सदियों से परिक्रमा करती आ रही है और आगे भी करती रहे गी| चाँद पर कदम रखने के बाद ,दुनिया भर के वैज्ञानिक सितारों से आगे विस्तृत अन्तरिक्ष के विभिन्न पिंडों की खोज में लगे हुए है और इस धरती पर भारतवासी अन्धविश्वासो में घिरे हुए है

अचानक लाउडस्पीकर की ऊँची आवाज़ मेरे कानो में पड़ी ,देखा तो सड़क के किनारे एक पंडाल के बाहर कुछ लोग खड़े थे और पंडाल के अंदर कोई भजन गा रहा था ,”मुझमें राम तुझमें राम सबमें राम समाया ”भजन खत्म होते ही ,किसी आदमी की आवाज़ कानों में पड़ी ,”स्वामी जी जब सब के अंदर एक ही ईश्वर का अंश है तो कोई चोर ,डाकू तो कोई अमीर या गरीब क्यों होता है?मेरे कान चौकन्ने हो कर उन की बाते सुनने लगे,”बेटा ,यह सब कर्मों का खेल है ,हमारे अंदर की आवाज़ हमे बताती है ,सही और गलत के बारे में ,उसे सुना अनसुना करके हम जैसा कर्म करते है वही हमारी पहचान बन जाती है |”एक ठहरी हुई आवाज़ मेरे कानो में आई,”अगर हम कोई अच्छा कर्म करते है ,तो हमे अंदर से और अच्छा कर्म करने की प्रेरणा मिलती है उसी ऊर्जा से हम कुछ और बदिया कर्म करना चाहें गे |”

यह सुनते ही मेरी बुद्धि  के बंद दरवाज़े खुलने लगे ,पदार्थ का सूक्ष्मतर कण जिसे इलेक्ट्रोन कहते है जिसे बाँधा हुआ है अणु की नाभि ने ,वो अपनी कक्षा में नाभि के चारों ओर परिक्रमा करता रहता है| बाहर से उर्जा मिलने पर वह अपनी कक्षा छोड़ उपर की कक्षा में चला जाता है ,अधिक उर्जा मिलने पर वह एक एक कर के सारी कक्षाए पार करता हुआ मुक्त हो जाता है ,ठीक वैसे ही जब हम कोई अच्छा कर्म करते है ,हमे उर्जा मिलती है कुछ और अच्छा कर्म करने की और हम भी एक एक कर के विभिन्न कक्षाओं को पार करते हुए अंत में बंधन मुक्त हो जाते है| गीता में भी श्री कृष्ण ने हमे कर्म का ही सन्देश दिया है | गीता के इस श्लोक को याद करते हुए मै अपने घर पहुंच चुकी थी | ”कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |मा कर्मफलहेतुभुर्मा ते संड्गो-स्त्वकर्मणि ||”

रेखा जोशी 

Friday, 19 February 2016

क्या हुआ जो मिला काँटों भरा जीवन हमें

जाने अनजाने  कुछ  तो ज़िंदगी कह गई
दिये जो अपनों ने   दर्द  ज़िंदगी  सह गई
क्या हुआ जो मिला काँटों भरा जीवन हमें
उलझ कर जिसमें हमारी ज़िंदगी रह गई

रेखा जोशी 

Thursday, 18 February 2016

सिखायेंगे उन को सबक देश द्रोह जो कर रहे


कदम से कदम मिलाकर आगे वतन बढ़ायेंगे
ह्रदय  में हम सभी के प्रेम के सुमन खिलायेंगे 
सिखायेंगे  उन को सबक देश द्रोह जो कर रहे 
भाँति  भाँति के फूलों से यह उपवन सजायेंगे 

रेखा जोशी

तन्हा सिर्फ तन्हा

है संघर्ष यह जीवन 
कब गुज़रा बचपन
याद नही
आया
होश जब से
तब  से
हूँ भाग रहा
संजों रहा खुशियाँ
सब के लिए
थे अपने कुछ
कुछ थे पराये
आज निस्तेज
बिस्तर पर पड़ा 
हूँ समझ रहा 
अपनों को
और
परायों को
था कल भी
और
हूँ आज भी
संघर्षरत
तन्हा सिर्फ तन्हा

रेखा जोशी

शमा जले रात भर यहाँ पर

करो  न  बातें  हज़ार  सजना 
कभी सुनो तुम पुकार सजना 
शमा जले रात भर  यहाँ   पर 
मिला नहीं अब करार सजना 

रेखा जोशी 

Wednesday, 17 February 2016

स्वस्थ तन में बसता सदा स्वस्थ मन

है बहुत  कठिन
योग साधना
तन या मन की
संम्पूर्ण ध्यान लगा
है डूबना पड़ता
साधना में
स्वस्थ तन में
बसता सदा
स्वस्थ मन
ऐसी साधना से ही
जुड़ पाती आत्मा
परमपिता  परमात्मा से

रेखा जोशी

अनंत यात्रा पर वह निकल गया

इस जगत ने  बहुत कपट छल किया
दुनिया  छोड़   पकड़  कमंडल  लिया
छोड़   सब   मोह    माया    के  बंधन
अनंत  यात्रा   पर  वह  निकल  गया

रेखा जोशी 

है बेलगाम अभिव्यक्ति हो रही आज भारत में

वीर  सिपाही  सीमा  पर  है  करते प्राण कुर्बान
धर्म  जाति  से  ऊपर उठों  राष्ट्र बनाना महान
है बेलगाम अभिव्यक्ति हो रही आज भारत में
आओ  मिटा सब  भेदभाव रखें तिरंगे का मान

रेखा  जोशी

लाल गुलाब सा महकता रहे जीवन तुम्हारा

लाल  गुलाब  सा   महकता रहे  जीवन तुम्हारा
खुशियों  से  सदा  चहकता  रहे  जीवन तुम्हारा
जीवन   में   तुम्हारे   सदा   आती    रहें   बहारें  
प्यार  की महक से  खिलता रहे जीवन तुम्हारा
,,
तकदीर  से  मिले  तुम  तो  ज़िंदगी  मिली है
तकदीर   से   हमें   जीवन   में  ख़ुशी  मिली  है
खिल खिल गये यहाँ पर  उपवन महक उठे जो
जब  खिलखिला  रही  बगिया में  कली खिली है

रेखा जोशी 

Tuesday, 16 February 2016

धरती हमारी गोल गोल [पूर्व प्रकाशित रचना ]

स्कूल से आते ही राजू ने अपना बस्ता खोला और लाइब्रेरी से ली हुई पुस्तक निकाल कर अपनी छोटी बहन पिंकी को बुलाया ,तभी माँ ने राजू को आवाज़ दी ,बेटा पहले कपड़े बदल कर ,हाथ मुह धो कर ना खा लो ,फिर कुछ और करना ,तभी पिंकी ने अपने भाई के हाथ में वह पुस्तक देख ली |ख़ुशी के मारे वह उछल पड़ी ,”आहा ,आज तो मजा आ जायेगा ,भैया मुझे इसकी कहानी सुनाओ गे न ”| ”हाँ पिंकी ,यह बड़ी ही मजेदार कहानी है ” ,पुस्तक वही रख कर राजू बाथरूम में चला गया |

हाथ मुह धो कर ,दोनों ने जल्दी जल्दी खाना खाया और अपने कमरे में बिस्तर पर बैठ कर पुस्तक उठाई |अपनी तीन वर्षीय ,छोटी बहन का हीरो भाई राजू उस किताब को लेकर बहुत ही उत्साहित था ”पिंकी यह कहानी हमारी धरती की है ” ,उसने जोर जोर से पढना शुरू किया ,”बात पन्द्रहवी सदी के अंत की है ,जब भारत को खोजते खोजते क्रिस्टोफर कोलम्बस अपने साथियों सहित सुमुद्री मार्ग से अमरीका महाद्वीप में ही भटक कर रह गया था |उस समय सुमुद्रीय यात्राएं बहुत सी मुसीबतों से भरी हुआ करती थी ,ऐसी ही एक ऐतिहासिक यात्रा ,सोहलवीं सदी के आरम्भ में स्पेन की सेविले नामक बंदरगाह से एक व्यापारिक जहाजी बेड़े ने प्रारंभ की |इस बेड़े की कमान मैगेलान नामक कमांडर के हाथ में थी |

राजू पिंकी को यह कहानी सुनाते सुनाते उस जहाज में पिंकी के संग सवार हो यहां वहां घूमने लगा |”मजा तो आ रहा है न पिंकी , देखो हमारे चारो ओर सुमुद्र ही सुमुद्र ,इसका पानी कैसे शोर करता हुआ हमारे जहाज से टकरा कर वापिस जा रहा है ,अहा चलो अब हम दूसरी तरफ से सुमुद्र को देखतें है ,अरे यहाँ तो बहुत सर्दी है”राजू ख़ुशी के मारे झूम रहा था | ,”हाँ भैया देखो न ,मै तो ठंड के मारे कांप रही हूँ भैया वापिस घर चलो न ,”पिंकी ठिठुरती हुई बोली | ”उस तरफ देखो ,वहां दिशासूचक लगा हुआ है, हमारा जहाज दक्षिण ध्रूव की तरफ बढ़ रहा है ,तभी तो इतनी सर्दी है यहाँ ,”राजू ने पिंकी का हाथ पकड़ लिया,”चलो हम नीचे रसोईघर में चलते है ,कुछ गर्मागर्म खाते है थोड़ी ठंड भी कम लगे गी ,”रसोईघर में पहुंचते ही राजू परेशान हो गया वहां मोटे मोटे चूहे घूम रहे थे और वहां खाने का सारा सामान खत्म हो चुका था यहाँ तक की भंडारघर भी खाली हो चुका था ,मैगेलान के सारे साथी भुखमरी के शिकार हो रहे थे ओर मैगेलान उन्हें हिम्मत देने की कोशिश कर रहा था ,राजू और पिंकी की आँखों में उन बेचारों की हालत देख कर आंसू आरहे थे ,मालूम नही और कितने दिनों तक यह भूखे रहेगे ,तभी किसी ने आ कर बताया कि कुछ दूरी पर छोटे छोटे टापू दिकाई दे रहें है । 

,मैगेलानने झट से नक्शा निकाला और यह पाया कि वह फिलिपिन्ज़ के द्वीप समूहों कि तरफ बढ़ रहे है यह समाचार सुनते ही पूरे जहाज में ख़ुशी की लहरें उठने लगी ,सब लोग जश्न मनाने लगे ,लेकिन वहां पहुंचते ही वहां के रहने वाले आदिवासियों ने उन सब को घेर लिया और उनके कई साथियों को मार गिराया |मरने वालो में उनका नेता मैगेलान भी शामिल था ,बचे खुचे लोग बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा कर ,अपने एक मात्र बचे हुए जहाज विक्टोरिया में बैठ ,एक बार फिर से सुमुद्र के सीने को चीर अपनी यात्रा पर निकल पड़े |लगभग तीन वर्ष बाद वह जहाज अपनी ऐतिहासिक यात्रा पूरी कर उसी बन्दरगाह पर पहुंचा जहां से वह यात्रा प्रारम्भ हुई थी | धरती हमारी गोल गोल ,यह कहते हुए राजू नींद से जाग गया और पिंकी उसे जोर जोर से हिला रही थी ,”भैया पूरी कहानी तो सुनाओ ,आगे क्या हुआ ? , मेरी प्यारी बहना पहली बार इस अमर यात्रा ने प्रमाणित कर दिखाया कि हमारी धरती गोल है |

रेखा जोशी 

ह्रदय में विश्वास और आशा के साथ साथ

अपनी धुन में पथिक दुर्गम पथ पर  चल रहा 
ऊँची   नीची  काँटों   की   राह   पर  बढ़  रहा 
ह्रदय  में  विश्वास  और आशा के  साथ साथ 
शनै  शनै  मंजिल  की  ओर वह  डग भर रहा 

रेखा  जोशी 

जहाँ मुहब्बत के कदम का निशान पाया

तुम्हे  पा   कर  हमने   सारा  जहान पाया
हैं  मिल  गये  पँख  हमने  आसमान पाया
आँखें     मूँदे     चले     तेरे      पीछे   पीछे
जहाँ मुहब्बत के  कदम का निशान  पाया

रेखा जोशी 

Monday, 15 February 2016

खूब निभाई यारी पीठ पर खंजर घोंप कर

माना  दोस्त  तुम्हे  हमने   जाने  क्या  सोच  कर
क्यों  मिले  गले  तुम जीवन की  राह  में रोक कर
देख ली  दुश्मनी  तुम्हारी    दोस्ती   की   आड़   में  
खूब   निभाई   यारी   पीठ   पर  खंजर   घोंप कर

रेखा जोशी


जल कर आग में सब तो राख हो गया

सुलगती चिता सा यह दिल  सुलगता क्यों 
सब  खत्म  होने के बाद  फिर धुआँ क्यों
जल  कर आग में सब  तो राख  हो गया 
फिर  सीने  में  धधकती  यह ज्वाला क्यों 

रेखा जोशी 

बयार चलती मस्त साँस में घुलती जाये


छंद 
बयार  चलती  मस्त साँस में घुलती जाये
धड़के मोरा जिया , आज घर साजन  आये 
खिलते बगिया सुमन छटा अब उपवन  छाई
अँगना आये पिया  ख़ुशी घर  मोरे  आई 

मुक्तक 
बयार  चलती  मस्त साँस में घुलती जाये
धड़के मोरा जिया , आज घर साजन  आये 
खिलते बगिया सुमन छटा अब उपवन  छाई 
अँगना आये पिया  संग वो खुशियाँ लाये 

रेखा जोशी 

Sunday, 14 February 2016

आया बसंत आँगन में चले मस्त बयार

आया  बसंत  आँगन  में  चले  मस्त  बयार 
मिलजुल  कर रहना सीखें  सबसे करें प्यार 
खिलता तन मन आज उड़ती चुनरिया पीली 
है  पीली   पीली  सरसों    खेत   में  उसपार

रेखा जोशी 

Saturday, 13 February 2016

अब करें पुष्प अर्पित विधा गीतिका


गीतिका

रस  भरे गीत गाती विधा गीतिका
मन लुभाती सुशोभित विधा गीतिका
...
साज़  बिखरा  रहे धुन सुरीली यहाँ 
तान यह छेड़ हर्षित विधा गीतिका
.... 
शीश मंदिर झुका कर करें हम नमन 
अब  करें  पुष्प अर्पित विधा गीतिका
... 
हर्ष मन में भरे अंग  पुलकित ह्रदय 
दे खुशियाँ प्रफुल्लित विधा गीतिका
... 
सुर सुरीले बजें तार दिल के बजे 
गीत संगीत मोहित विधा गीतिका

रेखा जोशी 

Friday, 12 February 2016

छीना उस वीर को बर्फीले पहाड़ों ने हमसे


रख  हथेली  पर  प्राण  सिपाही तैनात सीमा पर 
अपने देश की खातिर वह  हुआ शहीद  सीमा पर 
छीना  उस  वीर  को  बर्फीले  पहाड़ों   ने  हमसे 
अपने घर  से बहुत दूर मर मिटा वीर  सीमा पर 

 रेखा जोशी 

चाहते अपनी रही यहाँ अधूरी

बहुत मिला जीवन में फिर भी कम  है
नही   हमे   इसका   भी   कोई  गम है
चाहते   अपनी     रही    यहाँ    अधूरी   
इन्हें   करें   पूरा   अपने   में   दम   है 

रेखा जोशी

मुस्कुराती रहेगी ज़िंदगी बार बार



डूब रहा  सूरज ढल रही शाम 
हुआ सिंदूरी आसमान 
ऐसी चली हवा ले उड़ी संग अपने 
पत्ता पत्ता
छोड़ अपना अस्तिव
टूट कर बिखर गये  
चले गये सब जाने कहाँ 
देख रहा खड़ा अकेला 
असहाय पेड़ सूनी सूनी  शाखायें 
कर रही इंतज़ार नव बहार का
होगा फिर फुटाव नव कोपलों का
होंगी हरी भरी डालियाँ फिर से
उन पर खिलेंगे फूल फिर से 
आयेँगी बहारें फिर से 
होगी नव भोर फिर से 
उड़ेंगे नीले अम्बर पर पंछी फिर से 
सात घोड़ों से  सजेगा रथ दिवाकर का 
नाचेंगी अरूण की रश्मियाँ 
मुस्कुराती रहेगी ज़िंदगी 
बार बार 


रेखा जोशी 



Thursday, 11 February 2016

सभी मित्रों को बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाये


करे राधा पुकार 
संग सखियाँ हज़ार 
मनमोहन बजा  दे 
तू बंसी इक बार 

सभी मित्रों को बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाये

रेखा जोशी 

सदा खुश रहो साजन ज़िंदगी के हर मोड़ पर

न चाहते हुए भी हमे उनसे प्यार हो गया 
लब खुले भी नही आँखों से इज़हार हो गया 
...
खुदा बचाये इस नामुराद मुहब्बत से हमे
न जाने कैसे दिल फिर इसका शिकार हो गया

... 
हमने तो चाहा उन को सदा दिल औ जान से 
न जाने क्यों उनसे हमारा तकरार हो गया 
... 
देते रहे हम को साजन   धोखे ज़िंदगी भर 
न जाने हमें क्यों एतबार बार बार हो गया 
... 
सदा खुश रहो साजन ज़िंदगी के हर मोड़ पर 
जीवन में हमारे तो अब अन्धकार हो गया 

रेखा जोशी 

Wednesday, 10 February 2016

राधा का मनमोहन गोपियों का भी दुलारा

देवकीनंदन कृष्ण कन्हैया सभी का प्यारा
राधा  का मनमोहन गोपियों का भी दुलारा 
नाम तेरे से पिया विष का प्याला मीरा ने
ममतामयी यशोदा की वह आँखों का तारा 

रेखा जोशी 

फूलों सी अँगना में महकती बेटियाँ

बाबुल के अँगना में चहकती बेटियाँ
फूलों सी अँगना  में  महकती बेटियाँ
है  बाँटती  वह खुशियाँ  दोनों घरों में
माँ बाप के प्यार से निखरती बेटियाँ

रेखा जोशी 

कब तक सहेंगे यह दर्द ए दिल हम

शमा पर  मिटता  परवाना क्यों  है
दर्द  से  यह  रिश्ता  पुराना  क्यों है
कब तक सहेंगे यह दर्द ए दिल हम
न   जाने   बेदर्द   ज़माना  क्यों   है

रेखा जोशी 

Tuesday, 9 February 2016

रँग लिये तितलियों ने पँख अपने

है पुष्प  से  चुराये   रँग   अपने
रँग  लिये तितलियों  ने पँख अपने
चलने लगी मस्त  पवन बसंती
ले  उड़ी  पराग कण संग अपने

रेखा जोशी 

आन बान औ शान तिरंगे का रखने को तैयार है

रख  हथेली  पर  प्राण  सिपाही मरने को तैयार है 
अपने देश की खातिर वह  मर मिटने को तैयार है 
अपने माँ बाप बीवी बच्चों से बहुत  दूर सीमा पर 
आन बान औ शान  तिरंगे का रखने को तैयार है 

रेखा जोशी

फूल उपवन में खिलने लगे मधुमास के आते ही

सपने  मेरे  महकने  लगे  मधुमास  के  आते ही 
फूल उपवन में खिलने लगे मधुमास के आते ही 
गुनगुनाने लगी हवायें  झूम उठी   फ़िज़ाये  यहाँ 
तार दिल  के भी बजने लगे मधुमास के आते ही 

रेखा जोशी 

Monday, 8 February 2016

मुस्कुराती बहारें खिली अब यहाँ

.प्यार की महक छाने लगी अब यहाँ 
गुनगुनाती खुशियाँ  मिली अब यहाँ  
.... 
हाथ थामें पिया का चले  जा रहे 
रात बगिया रही महकती अब यहाँ 
.... 
ज़िंदगी गा रही प्यार के गीत अब 
मुस्कुराती बहारें खिली  अब  यहाँ 
..... 
दीप अब जगमगाने लगे इस राह 
आज  रोशन हुई ज़िंदगी अब यहाँ 
.... 
 छोड़ कर आज दामन न जाना सजन 
प्यार में ज़िंदगी बहकती अब यहाँ  

रेखा जोशी 

Sunday, 7 February 2016

टूटते आईने से बिखरते रिश्ते


जीवन 
की डोर  से  
होते   बँधे   रिश्ते
जीवन भर निभाते 
सच्चे  झूठे  रिश्ते
कभी हँसाते कभी रुलाते 
लेकिन कोई न  समझा
इन खूबसूरत 
रिश्तों का मोल
आँख भर आती
और 
चटख जाते 
दर्द मिलता जब 
टूटते आईने  से    
तब बिखर जाते रिश्ते

रेखा जोशी







Saturday, 6 February 2016

ज़िंदगी को मुस्कुराना आ गया

प्यार में दिल को लुभाना आ गया
आज फिर मौसम सुहाना आ गया 
...
रूठ  कर हमसे  न जाना तुम कहीं 
प्यार  से  साजन  मनाना आ गया 
.... 
मिल गई हमको ख़ुशी आये पिया 
ज़िंदगी  को  मुस्कुराना  आ गया 
.... 
तुम हमें जो मिल गये दुनिया मिली 
आज नैनों को लजाना आ गया 
.... 
चाह अब हम को नहीं है और  की 
अब हमें भी  घर  बसाना आ गया 

रेखा जोशी 

गीतिका


ज़मीं से पकड़ आसमां ले गया 
मुक्क़दर  कहाँ से कहाँ ले गया 
.... 
खिली है चमन में बहारें यहाँ 
ख़ुशी है जिधर वह  वहाँ ले गया 
.....
नशा आज छाया था कुछ इस तरह
चले हाथ थामे जहाँ ले गया 
.... 
जला कर हमारा जहाँ  चल दिये 
मिटा प्यार के सब निशाँ ले गया 
… 
नहीं कोई ' मेरा यहाँ क्या करे 
सजन साथ में कहकशाँ ले गया 

रेखा जोशी 


Friday, 5 February 2016

सपने सुहाने अब हमें लगने लगे है आज


जगने लगे  सपने   हमारे  ज़िंदगी  गुलज़ार 
अब प्यार का करने लगे साजन यहाँ इकरार 
सपने  सुहाने  अब  हमें  लगने  लगे  है आज 
अब  बाद  मुद्द्तों  के  हमें  तेरा  हुआ  दीदार 

रेखा जोशी 

कहीं न पाया प्यार , है मची जगत में धूम

घूम लिये चाँद तारे ,घूम लिया संसार 
घूम ली दुनिया सारी ,कहीं न पाया प्यार 
कहीं न पाया प्यार ,  है मची जगत में धूम 
मिलता नही करार , खोजें जिसे घूम घूम 

रेखा जोशी 

झूमने लगा तन मन मेरा चले मस्तानी पवन

महकने लगा अंगना मेरा  खिलते  लाल पुष्प 
है सुसज्जित उपवन पेड़ पर झूलते लाल पुष्प 
झूमने लगा  तन मन मेरा चले मस्तानी पवन 
उड़  उड़ जाये  मेरा जियरा महकते लाल पुष्प 

रेखा जोशी

जगमगाने लगी चाँद सूरज सी दुनिया

आँगन  उतर  आये  सितारे  मेरे  लिये
खिल उठी  बगिया  में  बहारें मेरे  लिये
जगमगाने  लगी चाँद सूरज सी दुनिया
लाये  संग  तुम  सब  नज़ारे  मेरे  लिये

रेखा जोशी 

कहा कृष्ण ने अर्जुन से ज्ञान चक्षु खोल अपने


रंग  बिरंगे
इस जीवन में 
होना पड़ता 
रू ब रु 
आशा और निराशा से 
मनाता जश्न  जीत पर 
तो कोई 
रोता  हार पर अपनी
बसंत और पतझड़ 
एक सिक्के के 
दो पहलू
रात दिन सुख दुःख तो
है जीवन का चक्र
गुज़रते इस जीवनक्रम से सब 
हँसते रोते 
तोड़ कर चक्रव्यूह 
जीवन मरण का 
मन अपने को साध ले
बन ज्ञानी पुरुष सरीखे 
सावन हरे न भादों सूखे
कहा कृष्ण ने 
अर्जुन से 
ज्ञान चक्षु खोल अपने
बन स्थित प्रज्ञ
हर हाल में

रेखा जोशी