डूब रहा सूरज ढल रही शाम
हुआ सिंदूरी आसमान
ऐसी चली हवा ले उड़ी संग अपने
पत्ता पत्ता
छोड़ अपना अस्तिव
टूट कर बिखर गये
चले गये सब जाने कहाँ
देख रहा खड़ा अकेला
असहाय पेड़ सूनी सूनी शाखायें
कर रही इंतज़ार नव बहार का
होगा फिर फुटाव नव कोपलों का
होंगी हरी भरी डालियाँ फिर से
उन पर खिलेंगे फूल फिर से
आयेँगी बहारें फिर से
होगी नव भोर फिर से
उड़ेंगे नीले अम्बर पर पंछी फिर से
सात घोड़ों से सजेगा रथ दिवाकर का
हुआ सिंदूरी आसमान
ऐसी चली हवा ले उड़ी संग अपने
पत्ता पत्ता
छोड़ अपना अस्तिव
टूट कर बिखर गये
चले गये सब जाने कहाँ
देख रहा खड़ा अकेला
असहाय पेड़ सूनी सूनी शाखायें
कर रही इंतज़ार नव बहार का
होगा फिर फुटाव नव कोपलों का
होंगी हरी भरी डालियाँ फिर से
उन पर खिलेंगे फूल फिर से
आयेँगी बहारें फिर से
होगी नव भोर फिर से
उड़ेंगे नीले अम्बर पर पंछी फिर से
सात घोड़ों से सजेगा रथ दिवाकर का
नाचेंगी अरूण की रश्मियाँ
मुस्कुराती रहेगी ज़िंदगी
बार बार
रेखा जोशी
मुस्कुराती रहेगी ज़िंदगी
बार बार
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment