Friday, 5 February 2016

कहा कृष्ण ने अर्जुन से ज्ञान चक्षु खोल अपने


रंग  बिरंगे
इस जीवन में 
होना पड़ता 
रू ब रु 
आशा और निराशा से 
मनाता जश्न  जीत पर 
तो कोई 
रोता  हार पर अपनी
बसंत और पतझड़ 
एक सिक्के के 
दो पहलू
रात दिन सुख दुःख तो
है जीवन का चक्र
गुज़रते इस जीवनक्रम से सब 
हँसते रोते 
तोड़ कर चक्रव्यूह 
जीवन मरण का 
मन अपने को साध ले
बन ज्ञानी पुरुष सरीखे 
सावन हरे न भादों सूखे
कहा कृष्ण ने 
अर्जुन से 
ज्ञान चक्षु खोल अपने
बन स्थित प्रज्ञ
हर हाल में

रेखा जोशी 






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