लम्बी होती
परछाईयाँ
परछाईयाँ
दिला रही एह्साह
शाम के ढलने का
हूँ उदास पर शांत
ज़िंदगी की ढलती शाम
आ रही करीब
धीरे धीरे लेकिन
उम्र के इस पड़ाव पर
उम्र के इस पड़ाव पर
पा रहीं सुकून
मिला जो हमें
इक दूजे का साथ
साँझ के बढ़ते
अंधेरे में
इक दूजे का साथ
साँझ के बढ़ते
अंधेरे में
रहे सदा हमारा
हाथों में हाथ
हाथों में हाथ
रेखा जोशी
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