Thursday, 16 July 2015

निरीह खड़ा देख रहा न जाने राह किसकी

उमड़ घुमड़
छाई  घटा जब
पड़ती ठंडी फुहार
शीतल पवन थरथराता तन
बरसा सावन रिमझिम रिमझिम
हुई बरसात झमाझम
भीगा सारा घर आँगन
था चहुँ और जलथल जलथल
झूम रहा मस्ती में यौवन
हर्षाया सबका तन  मन
चमक रहे नैन सबके
था उनका आज संसार
देख रहा दूर खड़ा
वेदना से भरा
सूखा  तरुवर कोने से
आया था उस पर भी यौवन
था कभी हरा भरा उसका भी तन
झूमता लहराता
था पवन के झोंको के संग संग
छोड़ गये साथ उसके
वह हरे हरे  पत्ते
आज बूँद बूँद टपक रहा
शाखाओं से उसकी जल
निरीह खड़ा देख रहा
न जाने राह किसकी

रेखा जोशी




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