रुकता नही वक्त कभी
चलती है ज़िंदगी संग इसके
तुम अकेले क्यों खड़े
रुके क्यों हो तुम
रुकता नही सूरज
और न ही रुकते
चाँद सितारे
फिर तुम किसका
कर रहे इंतज़ार
रुकना है मृत्यु
उठो चलो समझो तुम
अपने होने का अस्तित्व
बह जाओ संग धारा के
तुम में है वो फन
खिला सकते हो तुम
फूल ही फूल राहों में
महका सकते हो तुम
वन उपवन
चलती है ज़िंदगी संग इसके
तुम अकेले क्यों खड़े
रुके क्यों हो तुम
रुकता नही सूरज
और न ही रुकते
चाँद सितारे
फिर तुम किसका
कर रहे इंतज़ार
रुकना है मृत्यु
उठो चलो समझो तुम
अपने होने का अस्तित्व
बह जाओ संग धारा के
तुम में है वो फन
खिला सकते हो तुम
फूल ही फूल राहों में
महका सकते हो तुम
वन उपवन
रेखा जोशी
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