Saturday, 18 July 2015
थे ढूँढ़ते हम रहे शाम ओ सहर उनको
खुद से खुद की आज हमारी बात हो गई
करते रहे सजन इंतज़ार रात हो गई
थे ढूँढ़ते हम रहे शाम ओ सहर उनको
पिया खो गये कहीं ज़िंदगी मात हो गई
रेखा जोशी
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