साया
छा गया
खामोशियों का कैसा
जियरा घबरा गया
देख कर वीराना घना
छोड़ कर तरुवर का साथ
दूर उड़ गये पत्ते कहीं
दम घुटने लगा
सांस रुकने लगी
फिर भी ठूठ सा तना रहा
आंधी तूफान से खेलता
पहाड़ सी मुसीबतों को झेलता
आस लिये नव सृजन की
झाँक रहा दूर नभ से
रश्मियाँ बिखेर रहा
सबका जीवन दाता
दिवाकर चमक रहा
रेखा जोशी
छा गया
खामोशियों का कैसा
जियरा घबरा गया
देख कर वीराना घना
छोड़ कर तरुवर का साथ
दूर उड़ गये पत्ते कहीं
दम घुटने लगा
सांस रुकने लगी
फिर भी ठूठ सा तना रहा
आंधी तूफान से खेलता
पहाड़ सी मुसीबतों को झेलता
आस लिये नव सृजन की
झाँक रहा दूर नभ से
रश्मियाँ बिखेर रहा
सबका जीवन दाता
दिवाकर चमक रहा
रेखा जोशी
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