Friday, 9 October 2015

झाँक रहा दूर नभ से

साया
छा गया
खामोशियों का कैसा
जियरा घबरा गया
देख कर  वीराना घना
छोड़ कर तरुवर का साथ
दूर उड़ गये पत्ते कहीं
दम  घुटने लगा
सांस रुकने लगी
फिर भी ठूठ सा तना रहा
आंधी तूफान से खेलता
पहाड़ सी मुसीबतों को झेलता
आस लिये  नव सृजन की
झाँक रहा दूर  नभ से
रश्मियाँ बिखेर रहा
सबका जीवन दाता
दिवाकर चमक रहा

रेखा जोशी



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