Thursday, 15 October 2015

नवगीत

हाथ पाँव दूर दोनों
नही पहचानते
अलग अलग दोनों
इक दूजे से
.
अनभिज्ञ
आँख कान
दिल और दिमाग
अलग अलग दोनों
इक दूजे से
.
फिर शुरू हुई तकरार
दोनों में
खींच रहे मानव को
सोचना काम  दिमाग का
लेकिन
दिल है कि मानता नही
खेलअपना  दिखाता
डाल  पर्दा सोच पर
भावना में बहा कर
अपनी बात मनवाता
अनजान रहा दिमाग
बेबस हुई सोच
दिल और दिमाग
अलग अलग दोनों
इक दूजे से
.
उलझन ही उलझन
सुलझती नहीं
किया वार फिर दिल ने
घेर लिया सोच को
जज़्बातों ने
धुंधुला गये नयन
बेबस हुई सोच
सुन्न हुआ दिमाग
न जाने रहेगी कब तक
तकरार जारी दोनों में

दिल और दिमाग
अलग अलग दोनों
इक दूजे से

.
रेखा जोशी 

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