Monday 12 October 2015

दिखा दो शक्ति प्रेम की हे माँ अम्बे

हे माँ अम्बे
जगत जननी
पीड़ा तुम्हारी
समझ सकती हूँ मै
इक दूजे के खून के प्यासे
दो भाईयोँ को देख
दर्द से तिलमिला उठी
यह कोख मेरी
.
हे माँ अम्बे
माँ हो न
रचना जो की उनकी
महसूस कर सकती हूँ मै
तड़प तुम्हारे मन की
क्या गुज़रती होगी
सीने में तुम्हारे
रक्त से सनी
लाल धरा देख कर
बमों के धमाको से
जब गूँजता आसमान
नीले गगन पे
जब छाती कालिमा धुएँ की
अपने ही भाईयों से
दम तोड़ती संतान तेरी
.
हे माँ अम्बे
अब सुन ले पुकार
दिखा दे ममता संसार को
आज अपने गर्भ की
आँसू उनके पोंछ दे
खून बन जो टपक रहे
सांस सुख की ले सकें
फिर नीले अम्बर तले
घृणा आपस की मिटा के
दिखा दो शक्ति प्रेम की

रेखा जोशी

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