Tuesday, 27 October 2015

जहाँ टेकने पड़ते घुटने वक्त के आगे


मत देखो ख़्वाब 
जो कभी 
पूरे हो नही सकते 
सुन्दर हो कितने भी 
रेत के महल 
आखिर इक दिन तो
 है गिरना  उन्हें 
कभी कभी 
ज़िंदगी भी हमें 
है ले लाती 
ऐसी राह पर 
जहाँ टेकने पड़ते 
घुटने 
वक्त के आगे 
और बस सिर्फ 
है करना पड़ता 
इंतज़ार
न जाने कब तक 

रेखा जोशी 

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