Thursday, 8 October 2015

बीनता सपने टुकड़ों में

सुबह सुबह
ठिठुरती सर्दी
कूड़े का ढेर
बीनता सपने टुकड़ों में
फलों के रोटी के
नही सोऊँगा खाली पेट
सिर पर हमारे होगी छत
कह रहा वो मांगता वोट
दे दूँगा वोट उसे 
जीते हारे मेरी बला से
सपने जो दिखाये 
उसने हमे 
सच तो होगे इक दिन  
हमारे 

रेखा जोशी

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