रात अँधेरी
आसमान में
आज
तन्हा है चाँद
उसकी
चांदनी बिखर कर
चांदनी बिखर कर
छिटक गई
दूर
उसे छोड़ अकेला
नभ पर
उसे छोड़ अकेला
नभ पर
भर दिया उसने
आंचल धरा का
पर
तन्हा हो कर भी
तन्हा हो कर भी
नही है तन्हा
चाँद
विचर रहा आसमान में
ले कर
संग संग अपने
मुस्कुराती
मुस्कुराती
चांदनी
रेखा जोशी
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